दयाशंकर मिश्र

मुकाबला!
05-Nov-2020 10:12 PM
मुकाबला!

जब तक दूसरों के मुकाबले सुख को देखना हम बंद नहीं करेंगे। हम भटकते ही रहेंगे। बाजार का उपयोग हमें करना है, वह हमारा इस्तेमाल करने लगा। इससे बचने की जिम्मेदारी हमारी है।

यह पता करना मुश्किल नहीं है कि महत्वाकांक्षा ने हमें सुखी करने की जगह कहीं गहरे में जाकर दुखी किया है! हमारी नजर केवल उन चीजों पर टिकी रहती है, जो बहुत अधिक चमकदार हैं, जबकि हमें कहीं अधिक ध्यान देने की जरूरत है उस ओर जहां मुलायम और कोमल हिस्सा है। आज संवाद की शुरुआत एक छोटी-सी कहानी से करते हैं।

किस्सा नदी के किनारे बसे गांव का है। गांव में बाढ़ आ गई। सबका बहुत नुकसान हुआ। एक आदमी चिंतित होकर बैठा है। गहरी सोच में डूबा हुआ। उसका घर, पशु, जरूरी सामान और खेत सब कुछ बाढ़ में नष्ट हो गए। तभी उसके पास उसका पड़ोसी पहुंचा और उसने बताया कि गांव में किसी का कुछ नहीं बचा। उस व्यक्ति का भी नहीं, जो गांव में सबसे अधिक सक्षम था। उसका भी नहीं जो गांव में हमारा शत्रु था। किसी का कुछ नहीं बचा सबका सब कुछ तबाह हो गया है। कुछ देर तक वह व्यक्ति सूचना देता रहा कि क्या-क्या नष्ट हो गया है किस-किस का। थोड़ी देर बाद चिंतित आदमी उठ खड़ा हुआ और उसने कहा कि असल में सवाल यह नहीं था कि मेरा सब बह गया। सवाल यह भी था कि किसका क्या क्या बचा रह गया! अब तुम कह रहे हो कि सबका सब कुछ नष्ट हो गया, तो अब हम सब बराबरी पर हैं। कहीं कोई दिक्कत नहीं। कोई बड़ा-छोटा नहीं। कोई सबसे पहले नहीं। अब सब बराबरी पर हैं!

सोचने-समझने का तरीका कुछ इसी तरह से हमारे दिमाग में बैठा हुआ है। इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि जीवन के आंगन में सुख उतरा है। दुख आया है। दिमाग में केवल यही है कि किसके हिस्से कितना आया।

दूसरे से मुकाबला करते हुए हम निरंतर हारते ही रहते हैं। इस मुकाबले को बंद करना होगा। इससे जि़ंदगी में कोमलता कम हो रही है। नमी केवल आंखों से कम नहीं होती, वह तो भीतर से सूखती है। जब तक दूसरों के मुकाबले सुख को देखना हम बंद नहीं करेंगे। हम भटकते ही रहेंगे। बाजार का उपयोग हमें करना है, वह हमारा इस्तेमाल करने लगा। इससे बचने की जिम्मेदारी हमारी है। भटकाव की यात्रा पर हमें हर कोई ले जाने को तैयार है।

‘जीवन संवाद’ को रिश्तों, करियर और रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े हर दिन ऐसे अनुभव मिलते हैं जिनमें हर कोई इसलिए दुखी नहीं है कि उसके जीवन में सुख नहीं है। वह दुखी ही केवल इसलिए है, क्योंकि उसके मुकाबले लोग बहुत आगे निकल गए हैं। असल में लोग भी कहीं दूर नहीं निकले हैं बस यही उनका भ्रम है। आगे निकले हुए लोगों से इत्मिनान से बात करने पर समझ में आएगा कि वह तो उसके लिए तरसते हैं जो पीछे छूट गया है!

हमारे जीवन में बढ़ता हुआ कर्ज, हर कीमत पर खुद को सबसे बड़ा दिखाने की इच्छा, हमें ऐसी बंद गली की ओर ले जा रहे हैं, जहां से आगे का रास्ता बहुत साफ नहीं दिखाई देता।

इससे पहले कि यह रास्ते हमेशा के लिए बंद हो जाएं, हमें समय रहते रोशनदान बनाने की जरूरत है।
-दयाशंकर मिश्र

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