दयाशंकर मिश्र

प्रार्थना की अर्जी!
04-Sep-2020 11:35 AM
प्रार्थना की अर्जी!

सरलता को उपलब्ध होना, सबसे कठिन काम है। यह सरलता कुछ और नहीं, सुख-दुख में अपने मन की एक जैसी दशा को प्राप्त कर लेना है। अपने मन को ऐसी जगह ले जाकर खड़ा कर देना जहां से वह लाभ-हानि और सुख-दुख को समान भाव से देख पाए।

जीवन संवाद की शुरुआत एक छोटी-सी कहानी से। सूफी फकीर से किसी ने पूछा, ‘मुझे ईश्वर से बहुत शिकायत है। मैं बहुत धार्मिक व्यक्ति हूं, लेकिन फिर भी ऐसा लगता है कि ईश्वर मेरी बात नहीं सुनता। मेरी मन्नतों के प्रार्थना पत्र लगता है वह देखता ही नहीं! मेरी बात की उसके यहां सुनवाई नहीं। ऐसा क्यों होता है जबकि मैं तो किसी के साथ कुछ भी गलत नहीं करता। मेरी छोटी से छोटी ख्वाहिश भी अधूरी रह जाती है’।

फकीर ने बड़े प्रेम से उसे अपने पास बैठने का संकेत करते हुए कहा, ‘मुझे ऐसा नहीं लगता, फिर भी चलो परख लेते हैं। तुम्हारे परिवार में तुम्हारे पिता, तुम और तुम्हारे बच्चे सभी लोग सेहतमंद हैं। किसी को कोई शारीरिक अक्षमता नहीं। बीमारी नहीं। कोई भूखा नहीं। कोई विवाद नहीं। अब तुम्हें ईश्वर की प्रसन्नता का क्या सबूत चाहिए।

अपनी हर परेशानी के लिए किसी और को दोष देना, भले ही वह ईश्वर क्यों न हो, ठीक नहीं लगता! इससे मन में असंतोष बढ़ता रहता है। अपने कामों के प्रति निष्ठा कम होती है। जीवन के प्रति आस्था प्रभावित होती है। नन्हा पौधा उगते हुए खराब मौसम की शिकायत नहीं करता। स्वयं को हवा, मौसम के अनुकूल बनाता है। हंसते हुए कष्ट सहता है। सब सहते हुए पेड़ बनने की यात्रा पर होता है। हमारी जीवन आस्था भी ऐसी ही हो, तो संकट सरलता से बीतते हैं’।

आप जिस किसी को भी जानते हैं अगर उससे हर छोटी-छोटी बात की शिकायत करेंगे। हर काम उसके ऊपर टालेंगे, तो धीरे-धीरे वह भी आपकी बातों से परेशान होने लगेगा। जब मनुष्य की यह हालत है, तो आप जिसे ईश्वर कहते हैं उसके पास तो प्रार्थना पत्रों का अंबार है।

सूफी फकीर ने यह कहते हुए अपनी बात खत्म की, ‘अपने उन प्रश्नों को ईश्वर की ओर मत भेजो, जिनका उत्तर तुम खुद हासिल कर सकते हो। अपनी हर तकलीफ को भाग्य से मत जोड़ो। जीवन को समझने की कोशिश करो, हम सब सरलता-सरलता कहते हैं, लेकिन सरलता को उपलब्ध होना, सबसे कठिन काम है। यह सरलता कुछ और नहीं, सुख-दुख में अपने मन की एक जैसी दशा को प्राप्त कर लेना है। अपने मन को ऐसी जगह ले जाकर खड़ा कर देना जहां से वह लाभ-हानि और सुख-दुख को समान भाव से देख पाए, सबसे बड़ा काम है।

हमारी प्रार्थना हमसे अलग हटकर होगी, तो उसके पूर्ण होने की संभावना कहीं अधिक है। असल में हम मांगना ही नहीं जानते। घर, गाड़ी, कपड़े, नौकरी, प्रमोशन, तबादले, यही सब तो मांगते रहते हैं! जबकि यह सुख नहीं हैं, सुख के साधन हैं। ऐसे छोटे-छोटे प्रार्थना पत्र जब हमें परेशान करते रहते हैं और हम स्वयं उन पर बहुत अधिक ध्यान नहीं देते, तो जिसके पास हम यह एप्लीकेशन भेज रहे हैं वह तो और अधिक व्यस्त है। इसलिए ईश्वर से कुछ मांगना है तो बड़ा मांगिए। महाभारत में पांडवों की कहानी इसका सबसे सरल और सहज उदाहरण है।’

कोरोना के कारण इस समय समाज पर गहरा संकट है। आर्थिक, शारीरिक, मानसिक। इन संकटों को हम जितना अधिक साझा कर सकते हैं। हमें करना चाहिए। यह सोचकर नहीं कि दूसरे के लिए किया जा रहा है, बल्कि यह सोचते हुए कि ऐसा करके हम अपने संकट कम कर रहे हैं। अपने लिए फूल चाहने वालों को, दूसरों के रास्ते के कांटे निकालते चलना चाहिए। (hindi.news18.com)
-दयाशंकर मिश्र

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