राजनांदगांव

जिला अस्पताल की सूरते हाल हुई खौफजदा
03-Sep-2021 1:41 PM
जिला अस्पताल की सूरते हाल हुई खौफजदा

   सहमी हालत में स्टॉफ कर रहा काम, रात को हालात और भी खराब   
प्रदीप मेश्राम
राजनांदगांव, 3 सितंबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। शहरी आबादी के बीच बसंतपुर में स्थित जिला अस्पताल की सूरते हाल बेहद खौफजदा हो गई है। पर्याप्त स्टॉफ होने के बावजूद रोगियों ने जिला अस्पताल का रूख करना बंद कर दिया है। मेडिकल कॉलेज का विकल्प होने की वजह से मरीज सीधे पेंड्री जा रहे हैं। मेडिकल कॉलेज से अलग होने के बाद जिला अस्पताल अपने अस्तित्व को लेकर संघर्ष कर रहा है। अस्पताल के लिहाज से तैयार बिल्डिंग ने शो-पीस का रूप धारण कर लिया है। जिला अस्पताल की हालत देखकर हर कोई हैरत में है। शाम ढलने के बाद डर और अंधेरे के आगोश में घिरा यह अस्पताल बदहाली की तस्वीरें बयां कर रहा है।

बताया जा रहा है कि जिला अस्पताल में करीब 71 स्टॉफ नर्सें कार्यरत है। स्टॉफ नर्सों की पर्याप्त तैनाती की तुलना में गिनती के चिकित्सक रह गए हैं। मेडिकल कॉलेज में विशेषज्ञ चिकित्सकों के चले जाने का असर यह हुआ कि जिला अस्पताल पूरी तरह से सूनेपन में डूबा हुआ है। शाम होते ही अस्पताल के वार्डों में दाखिल होने के लिए एक बड़ी हिम्मत दिखानी पड़ती है। कुछ वार्डों में एक भी मरीज नहीं है। वहीं स्टॉफ नर्सों को मरीजों की गैरमौजूदगी से खालीपन से मानसिक तनाव का सामना करना पड़ रहा है। मरीजों की आवाजाही बंद होने से अस्पताल के भीतरी कमरों का सन्नाटापन देखकर स्टॉफ के हाथ-पैर फूल रहे हैं। स्टॉफ के सामने सबसे बड़ी निजी सुरक्षा कड़ी चुनौती बन गई है। जिला अस्पताल के पूरे कमरों में बिस्तरें खाली पड़ी है। वार्डों में रात्रिकालीन ड्यूटीरत स्टॉफ नर्सों को असामाजिक तत्वों के खौफ ने भी परेशान कर रखा है। शाम को अस्पताल के इर्द-गिर्द नशेडिय़ों का अघोषित दबदबा भी बढ़ जाता है। बताया जा रहा है कि अस्पताल के भीतर वार्डों में असामाजिक तत्वों की चहलकदमी बनी हुई है। जिला अस्पताल की करोड़ों की बिल्डिंग शो-पीस बनकर रह गई है। बताया जा रहा है कि जीवनदीप समिति का गठन होने के बावजूद प्रशासनिक रूप से कई निर्णयों पर अमल नहीं हुआ है। सत्तारूढ़ दल के नेताओं को समिति में जगह दी गई है। प्रशासन की कोशिशें अब तक कारगर साबित नहीं हुई है। अस्पताल की तकनीकी मशीनों का उपयोग भी फिलहाल बंद पड़ा हुआ है। बसंतपुर जिला अस्पताल शहरी आबादी के लिहाज से फायदेमंद माना जा रहा है, लेकिन अस्पताल की अंदरूनी अव्यवस्था लचर होने के कारण स्टॉफ को काम करने के लिए कई तरह की व्यवहारिक दिक्कतें भी झेलनी पड़ रही है।

निजी गार्डों की खल रही कमी
जिला अस्पताल की सुरक्षा इन दिनों ताक पर है। अस्पताल की संपत्ति और स्टॉफ की निगरानी के लिए  तैनात किए जाने वाले निजी गार्ड पूरी तरह से मेडिकल कॉलेज शिफ्ट कर दिए गए हैं। मेडिकल कॉलेज रवाना किए गए निजी सुरक्षाकर्मियों की जगह नई भर्ती करने पर प्रशासन का ध्यान नहीं है। स्टॉफ नर्सों को सर्वाधिक निजी गार्डों की कमी से तनाव के बीच काम करना पड़ रहा है। बताया जा रहा है कि निजी गार्डों की उपस्थिति से कर्मियों को कार्य करने में उत्साह बढ़ेगा। वहीं करोड़ों की संपत्तियों की देखभाल भी होगी।

बताया जा रहा है कि अस्पताल के भीतर शाम को बेरोकटोक आवाजाही देखकर स्टॉफ को खुद की सुरक्षा की चिंता खाए जा रही है। पिछले कई दिनों से अनहोनी होने की आशंका लेकर स्टॉफ ने आला चिकित्सकों को भी अवगत कराया है। इसके बावजूद इस संवेदनशील मसले पर अस्पताल प्रबंधन ने ढीला रूख अख्तियार किया हुआ है।

ओपीडी पर्ची वार्ड ब्वाय के हाथों
जिला अस्पताल की प्रशासनिक कार्यक्षमता इस कदर बेपटरी हो गई है कि साफ-सफाई और चिकित्सकीय कार्यों के मददगार माने जाने वाले वार्ड ब्वाय कम्प्यूटर में ओपीडी पर्ची तैयार कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि ओपीडी पर्ची कार्य में लगे चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की कमी का असर वार्डों में पड़ रहा है। चिकित्सक और स्टॉफ नर्सों को वार्ड ब्वायों की अनुपस्थिति से कार्य करने में परेशानी उठानी पड़ रही है। बताया जा रहा है कि ओपीडी पर्ची बनाने के साथ-साथ चतुर्थ श्रेणी कर्मी कम्प्यूटरीकृत काम करने के लिए विवश हैं। अस्पताल प्रबंधन व्यवस्था को भले ही दुरूस्त करने का दावा कर रहा है, लेकिन असल में जिला अस्पताल की हालत देखकर रोगी मेडिकल कॉलेज और निजी अस्पताल की ओर जा रहे हैं।

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