बीजापुर

बारूद की दहशत से नही ंअब स्कूल की घंटियों से होगी पहचान
08-Sep-2021 11:06 PM
बारूद की दहशत से नही ंअब स्कूल की घंटियों से होगी पहचान

माओवाद इलाकों में खुले 150 स्कूल, जुड़े 5800 नौनिहाल

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

बीजापुर, 8 सितंबर। पिछले 16 सालों से शिक्षा से वंचित सैकड़ों गाँवों में स्कूलों की घंटियां बजते ही बच्चों के आने से फिर से रौनक लौट आयी है। जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग के प्रयासों से दुर्गम और अतिसंवेदनशील गोरना, पेदाजोजेर, कमकानार, पुसनार, मेटापाल, पालनार, मल्लूर सहित 150 स्कूलों के 16 साल बाद खोले जाने से 5800 बच्चों को शिक्षा के अधिकार से जोडऩे में कामयाबी मिली है। यह कामयाबी नक्सली इलाकों में एक बड़े बदलाव की शुरूआत है। जिसके जरिये शिक्षा के बुनियादी अधिकार से वंचित बच्चों को नयी दिशा मिलेगी, वहीं ग्रामीणों को मुख्य धारा में लाने की शासन की मुहिम कामयाब हो रही है।

2005 में माओवाद के खिलाफ सलवा-जुडू़म अभियान और नक्सली आतंक के चलते बीजापुर के 200 से ज्यादा स्कूल दहशत के साये में बंद हो गये। इन गाँवों में स्कूलों के साथ-साथ शासन की सारी योजनाएँ भी ठप हो गई। इन ईलाकों के ग्रामीण माओवादियों के जनताना सरकार के प्रभाव में शासन के सारी योजनाओं और अधिकार से वंचित हो गये। इन हालातों के बीच छत्तीसगढ़ में सरकार बदलने के साथ माओवाद प्रभावित ईलाकों में ग्रामीणों के विश्वास जीतने और मुख्यधारा में लाने की कवायद शुरू हुई और एक सकारात्मक माहौल बनाने का प्रयास किया गया। इन ईलाकों में मैदानी कर्मचारियों के जरिये पढ़े-लिखे युवाओं और ग्रामीणों से संवाद स्थापित कर बच्चों के भविष्य को पटरी पर लाने की मुहिम शुरू की गई। कई दौर की बातचीत और प्रयासों के बाद ग्रामीण स्कूलों को फिर से शुरू करने पर राजी हुये। जिसके बाद जिला प्रशासन ने स्कूल शुरू करने की मुहिम को अमलीजामा पहनाया।

इन इलाकों में स्कूल खोलना एक चुनौती भरे सफर से कम नहीं रहा है। दुर्गम ईलाके, नदी-नाले, पहाड़ों की बाधाओं और माओवादी प्रभाव के बीच इन इलाकों में पहुँच पाना आम तौर पर आसान नहीं है। बारूदी रास्ते और माओवादियों की दहशत किसी भी इंसान के कदम यहां जाने से रोक देती है। इन हालातों में इन चुनौतियों के बीच ग्रामीणों से बात कर सकारात्मक माहौल पैदा कर अविश्वास की खाई को दूर किया गया। जिसके बाद शिक्षा के अधिकार से वंचित हजारो बच्चों के सुनहरे भविष्य की राह आसान हो पायी।

ग्रामीणों की सहमति के बाद जिला प्रशासन ने डी.एम.एफ. मद से स्थानीय पढ़े-लिखे युवाओं को ज्ञानदूत के रूप में 10 हजार रूपये के मानदेय पर नियुक्त किया और बच्चों के बैठने हेतु एक शेड निर्माण की मंजूरी दी। शिक्षा विभाग ने बच्चों के लिए बुनियादी सुविधाएं- कापी, कलम, किताब, डेस और मध्यान्ह भोजन की जरूरतों को पूरा किया। इस कवायद के बाद माओवाद प्रभावित ईलाकों में तेजी से सकारात्मक बदलाव दिखने लगा है। जिसके चलते साल भर के भीतर अंदरूनी और पहुंचविहीन इलाकों में दहशत की दीवारों को जोड़ते हुये 150 स्कूल खुल गये। अब ये इलाके शासन की मुख्यधारा से जुडक़र शांति और विकास की दिशा में नया अध्याय लिखने में महत्वपूर्ण कड़ी बन रही है। 16 साल बाद बजने वाली स्कूल की घंटियाँ बारूद के धमाकों की दहशत को दूर कर एक सुनहरे भविष्य की तस्वीर को स्थापित कर रही है।

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news