राजनांदगांव

बरसों से एक ही जगह पर बीआरसी कार्यरत
13-Dec-2021 11:59 AM
बरसों से एक ही जगह पर बीआरसी कार्यरत

तबादला नीति न होने से डेढ़ दशक से जमे हुए
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 13 दिसंबर। 
जिले में संचालित राजीव गांधी शिक्षा मिशन के ब्लॉक रिसोर्स कोर्डिनेटर सालों से एक ही जगह पर जमे हुए हैं। जिलेभर के बीआरसी का करीब डेढ़ दशक से ज्यादा समय गुजर जाने के बाद भी प्रशासन ने तबादले पर ध्यान नहीं दिया है। राजीव गांधी शिक्षा मिशन के तहत बीआरसी वित्तीय मामलों के साथ स्कूलों का निरीक्षण और निर्माण कार्य के सक्षम अधिकारी होते हैं। पिछले कुछ दिनों से जिले में राजीव गांधी शिक्षा मिशन में कथित रूप से व्याप्त भ्रष्टाचार का मामला सुर्खियों में है। मिशन के जिला समन्यवय भूपेश कुमार साहू पर प्रशासनिक जांच के बाद निलंबित कर दिया गया है। साहू के निलंबन के बाद अब प्रशासनिक हल्के में जिलेभर के बीआरसी को उनके मौजूदा स्थान से अन्य पदस्थ किए जाने की सुगबुगाहट तेज हुई है।

सूत्रों का कहना है कि कई बीआरसी पर उच्च अधिकारियों के साथ समन्यव रखकर कार्य संपादित नहीं करने का आरोप लगता रहा है। सालों से एक ही जगह पदस्थ रहने के कारण बीआरसी राजनीतिक संबंधों के जरिये अपनी पकड़ दिखाकर शीर्ष अफसरों पर अप्रत्यक्ष रूप से धाक जमाने की कोशिश कर रहे हैं।
बताते हैं कि बीआरसी की कार्यप्रणाली को लेकर प्रशासनिक अधिकारी भी वाकिफ है, लेकिन उनकी स्थानीय नेताओं से संबंध से अफसर विभागीय दबाव बनाने में असहज महसूस करते रहे हैं। इस बीच जिले के मोहला, छुईखदान, डोंगरगांव, डोंगरगढ़ व खैरागढ़ समेत अन्य ब्लॉक में बीआरसी अपने पद पर 15 वर्षों से ज्यादा समय से जमे हुए हैं। संविदा में कार्यरत बीआरसी को अन्यत्र पदस्थ करने का कलेक्टर को सीधा अधिकार है। मिली जानकारी के अनुसार भूपेश साहू के निलंबन के बाद अंदरूनी स्तर पर सभी बीआरसी का तबादला करने पर जोर दिया जा रहा है।

नांदगांव बीआरसी रहे रंगारी भ्रष्टाचार के आरोप में हुए थे बर्खास्त
जिला समन्यवय भूपेश साहू के निलंबन से कुछ साल पहले राजनांदगांव बीआरसी दिलीप रंगारी को भ्रष्टाचार के आरोप में सरकार ने हमेशा के लिए बर्खास्त किया। वहीं वह मध्यान्ह भोजन में घोटाले के आरोप में महीनों जेल में रहे। राजीव गांधी शिक्षा मिशन के तहत जिले को हर साल केंद्रीय मद से करोड़ों की राशि प्रदान की जा रही है, परंतु ब्लॉकों में मिशन के करोड़ों रुपए फूंकने के बाद भी नतीजे अपेक्षित नहीं आ रहे हैं। इसके पीछे बीआरसी को लेकर स्पष्ट तबादला नीति को एक प्रमुख वजह माना जा रहा है। बीआरसी के स्थानांतरण का विशेष अधिकार कलेक्टर रखते हैं। कलेक्टर आमतौर पर मिशन के कामकाज को लेकर ज्यादा दखल नहीं देते। जिसके चलते बीआरसी के एक ही जगह जमे होने से अराजकता की स्थिति बन गई है। शिक्षा महकमे में बीआरसी की कार्यप्रणाली को लेकर अंदरूनी शिकायतें भी रही है। ग्रामीण इलाकों में बीआरसी स्वयं को उच्च अफसर के रूप में पेश करते हैं। देहात स्कूलों के प्राचार्य कई बार बीआरसी  के रवैये को लेकर असहज रहते हैं। सूत्रों का कहना है कि बीआरसी बीईओ और प्राचार्यों के समकक्ष स्वयं को मानते हैं। ऐसी स्थिति में काफी परेशानी उच्च अफसरों को उठानी पड़ती है।

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