राजनांदगांव

खैरागढ़ में भाजपा-कांग्रेस के कई नेता खफा, भीतरघात की आशंका
30-Mar-2022 1:03 PM
खैरागढ़ में भाजपा-कांग्रेस के कई नेता खफा, भीतरघात की आशंका

   असंतुष्टों को मनाने गुजर रहा वक्त  

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 30 मार्च।
कांग्रेस और भाजपा के लिए खैरागढ़ उपचुनाव नाक का सवाल बन गया है।  कांग्रेस ने उपचुनाव को सेमीफाइनल का दर्जा देकर  सियासी जंग छेड़ दी है। भाजपा भी कांग्रेस के इस बयान से जोश में है। इससे पहले दोनों ही दल टिकट की दौड़ से बाहर हुए नेताओं की नाराजगी से परेशान है। कांग्रेस और भाजपा से टिकट के लिए दर्जनभर दावेदार थे। दोनों ही पार्टी के दावेदार अब नाराज होकर घर बैठ गए हैं। भाजपा उम्मीदवार कोमल जंघेल और कांग्रेस की यशोदा वर्मा को रूठों को मनाने में ही  वक्त देना पड़ रहा है।

भाजपा और कांग्रेस में लगभग नाराज नेताओं की संख्या एक जैसी है। भाजपा की परेशानी यह है कि सत्ता से बाहर होने के चलते आला नेताओं की सलाह और दखल को नाराज नेता सुनने तैयार नहीं है। भाजपा में कई ऐसे दावेदार हैं, जिनका क्षेत्रीय समीकरण के लिहाज से वोटों में सीधा असर पड़ सकता है। कोमल जंघेल के खिलाफ छुईखदान और गंडई से लेकर खैरागढ़ में भी असंतुष्ट नेताओं की भरमार है। नाराज नेताओं को साधने के लिए पार्टी ने बृजमोहन अग्रवाल और धरमलाल कौशिक को भी जिम्मा दिया है।

प्रचार की समय-सीमा कम होने के कारण हर दिन बेहद महत्वपूर्ण है। ऐसे में कोमल जंघेल को नाराजगी दूर करने के लिए अतिरिक्त ताकत लगानी पड़ रही है। यही हाल कांग्रेस में भी है। कांग्रेस के कई नेता इस बात से खफा हैं कि टिकट चयन में उनकी पसंद और सलाह को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया गया। हालांकि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सर्वे के आधार पर ही यशोदा वर्मा को उम्मीदवार बनाया है।

कांग्रेस के भीतर कांग्रेस प्रत्याशी के चयन को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। चर्चा है कि वर्तमान नगर पालिका उपाध्यक्ष अब्दुल रज्जाक, पूर्व नेता प्रतिपक्ष मनराखन देवांगन समेत गंडई और छुईखदान के कई नेता नाराज होकर प्रचार से दूर हैं। इस बीच पूर्व विधायक गिरवर जंघेल भी अपनी अनदेखी से खफा हैं। वह टिकट के लिए काफी जोर लगा रहे थे, लेकिन उनकी पिछली हार ने टिकट पाने में अड़चने पैदा कर दी। भाजपा के कार्यकर्ताओं में कुछ काम करने के इच्छा पाले हुए हैं, लेकिन संगठन में उनकी पूछपरख नहीं हो रही है।

भाजपा के क्षेत्रीय कार्यकर्ता इस बात से नाराज हैं कि बाहरी नेताओं को जिम्मा देकर स्थानीय राजनीति में जमे पदाधिकारियों को लगभग किनारे कर दिया गया है। इस तरह शुरूआती प्रचार के दिनों में कांग्रेस-भाजपा अपने ही पार्टी के नेताओं के नाराजगी से जूझ रहे हैं। आने वाले दिनों में रूठे नेताओं को साथ नहीं रखने पर दोनों पार्टी की सियासी समीकरण पर सीधा असर पड़ेगा।

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