राजनांदगांव

आदिवासी-साहू के 40 फीसदी वोट जिस दल में पड़ेंगे उसकी नैय्या पार
02-Apr-2022 12:29 PM
आदिवासी-साहू के 40 फीसदी वोट जिस दल में पड़ेंगे उसकी नैय्या पार

जातिगत समीकरण में लोधी वोटरों के साथ साहू 25 और आदिवासी 15 फीसदी मतदाता निर्णायक भूमिका में

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 2 अप्रैल।
खैरागढ़ उपचुनाव में जातिगत समीकरण बेहद असरकारक साबित हो रहा है। लोधी बाहुल्य इस सीट पर दो और समाज के मतदाताओं की भूमिका निर्णायक होगी। साहू और आदिवासी वोटरों की भी विधानसभा में खासी संख्या है। भाजपा-कांग्रेस के अलावा अन्य राजनीतिक दल जातिगत समीकरण के दम पर चुनाव प्रचार कर रहे हैं। खासतौर पर सत्तारूढ़ कांग्रेस और विपक्षी भाजपा के बीच जातीय राजनीति चरम पर है।

कांग्रेस और भाजपा लोधी वर्ग से ही प्रत्याशी मैदान पर उतारे हैं।  लोधी समाज के 32 फीसदी वोटरों वाले इस विधानसभा में एक-एक वोट को लेकर संघर्ष बढ़ता दिख रहा है।  खैरागढ़ में दोनों पार्टियों ने पिछड़ा वर्ग की राजनीति को तवज्जो दी है। ओबीसी की सियासत के दम पर भाजपा ने ही 2007 के उपचुनाव में खैरागढ़ में बाजी मारी थी।

कांग्रेस ने भी लोधी कार्ड खेलकर भाजपा को जातीय राजनीति के दम पर मात देने के लिए सियासी चाल खेला है। दोनों ही दल ने लोधी वर्ग को साधने के लिए प्रत्याशी चुनावी रण में भेजा है। इससे परे साहू समाज की भी तादाद विधानसभा के अलग-अलग हिस्सों में बंटी है। साहू समाज के कुल 25 फीसदी मतदाता खैरागढ़ विधानसभा में निर्णायक भूमिका में है। इसी तरह आदिवासी समाज के 15 प्रतिशत मतदाता विधानसभा के नतीजों के प्रभावित कर सकते हैं।

राजनीतिक आंकड़ेबाजी में दोनों समुदाय को साधने के लिए प्रत्याशी पूरा जोर लगा रहे हैं। आदिवासी समुदाय बकरकट्टा-साल्हेवारा इलाके में जमा हुआ है। दोनों ही पार्टियों ने लोधी समाज की संख्या अधिक होने के कारण प्रत्याशियों पर दांव लगाया है। इसके चलते चुनाव रोचक हो चला है।  लोधी, साहू और आदिवासी वोटरों की अहमियत को लेकर राजनीतिक दल बेहद गंभीर है। हर हाल में पार्टियां  तीनों समुदाय से संपर्क कर अपने पक्ष में वोट डालने की अपील कर रहे हैं।

15 फीसदी वोट वाले आदिवासी समुदाय की जंगल क्षेत्र में खासी दखल है। आदिवासियों के समर्थन मिलने के बाद ही उम्मीदवारों की स्थिति मजबूत होगी। वैसे पिछड़े वर्ग में कुछ और मतदाता हैं, जो राजनीतिक दलों की किस्मत चमका सकते हैं। मसलन कुर्मी, पटेल और निषाद समाज के मतदाता भी चुनावी परिणाम को बदलने का दम रखते हैं। यह तय है कि साहू और आदिवासी वोटरों की अनदेखी करना पार्टियों के लिए हार की वजह बन सकती है। ऐसे में प्रचार के दौरान सभी दल दोनों समुदाय से नजदीकी बढ़ाने के साथ चुनाव में साथ खड़ा होने की  गुहार लगा रहे हैं।

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