राजनांदगांव
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चुनावी शोर थमने में दो दिन बाकी
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 8 अप्रैल। खैरागढ़ उपचुनाव में प्रचार के लिए दो दिन बाकी रह गए हैं। 10 अप्रैल की शाम को प्रचार समाप्त हो जाएगा। इससे पहले समूचे खैरागढ़ विधानसभा में राजनीतिक दलों के दो सौ से ज्यादा पहले और दूसरे पंक्ति के नेताओं का जमावड़ा है। भाजपा और कांग्रेस नेताओं की संख्या लगभग बराबर है। प्रचार और चुनावी उठापटक के मोर्चे पर लगभग दोनों दल से 200 से ज्यादा नेता अलग-अलग इलाकों में तैनात है। 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर तापमान के बीच नेता प्रचार और सभाएं कर रहे हैं। कड़ी धूप और भीषण गर्मी शीर्ष नेताओं की कड़ी परीक्षा ले रही है।
वहीं जनता कांग्रेस पार्टी और निर्दलीय उम्मीदवारों के पक्ष में भी उनके करीबी नेताओं का खैरागढ़ में डेरा जमा हुआ है। नेताओं की संख्या देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि उपचुनाव की अहमियत को लेकर पार्टियों के लिए कितनी मायने रखती है। खासतौर पर सत्तारूढ़ कांग्रेस अपनी साख को कायम रखने के लिए यह चुनाव कड़ी परीक्षा ले रहा है। भाजपा इस चुनाव के जरिये जीत हासिल कर दोबारा राज्य में डेढ़ साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में वापसी का सपना संजोए हुए हैं।
सत्तारूढ़ कांग्रेस के स्टॉर प्रचारक के रूप में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने विधानसभा के हर कोने को नाप लिया है। वह अपनी पार्टी के प्रमुख स्टॉर प्रचारक हैं। वहीं भाजपा ने राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को स्टॉर प्रचारक के रूप में सभाओं की जिम्मेदारी दी है। हालांकि कांग्रेस की तुलना में भाजपा ने केंद्रीय और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को भी स्टॉर प्रचारक के रूप में मैदान में उतारा है। दोनों पार्टियों के लगभग 200 से ज्यादा पहले और दूसरे पंक्ति के नेताओं की सिलसिलेवार सभाएं हो रही है। कांग्रेस ने मंत्रिमंडल समेत सभी विधायकों और पूर्व विधायकों समेत प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम को भी प्रचार का जिम्मा दिया है। इसके अलावा प्रदेश संगठन के पदाधिकारी और समूचे राज्य के जिला तथा ब्लॉक स्तर के नेता भी प्रचार में कूद गए हैं।
भाजपा ने भी मौजूदा विधायकों, पूर्व मंत्रियों और संगठन के बड़े रणनीतिककारों को प्रभारी और चुनाव संचालन की जिम्मेदारी दी है। चुनाव प्रचार की मियाद के अंतिम चरण में पहुंचते ही यह भी साफ हो गया है कि मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच है। इस चुनाव को लेकर दोनों राजनीतिक पार्टी ने हर स्तर पर किलेबंदी की है। राजनीतिक मोर्चाबंदी के दम पर मतदाताओं को रिझाने के लिए बूथों और घरों तक आला नेता और कार्यकर्ता दम लगा रहे हैं।
प्रचार के लिए रणनीतिक तौर पर दोनों पार्टियों की अलग-अलग तैयारियां है। कांग्रेस और भाजपा के आपस में भिड़ते ही दूसरे दल लगभग किनारे हो गए हैं। प्रचार के लिहाज से दोनों दल ही एक-दूसरे पर सियासी तीर छोड़ रहे हैं। इससे पहले राज्य और दीगर प्रदेश से आए नेताओं के खैरागढ़ के उपचुनाव के दंगल में उतरने से पूरे क्षेत्र में सियासी गदर मचा हुआ है। दोनों दल के नेताओं ने एक-दूसरे की रणनीति को धराशाही करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी है। राजनीतिक लड़ाई में दोनों दल ने अपने नेताओं को झोंककर चुनाव को दिलचस्प बना दिया है। कांग्रेस-भाजपा सीधा मुकाबला करते अपना जीत का दावा कर रही है।