राजनांदगांव
आर्सेनिकयुक्त पेयजल से बीमारी और शारीरिक परेशानियों से जूझते ग्रामीण
भावे से लौटकर प्रदीप मेश्राम
राजनांदगांव, 18 अप्रैल (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। जिले के पठारी इलाके में बसे भावे के 65 परिवार सालों से लौहयुक्त पानी पीने के लिए मजबूर हैं। प्रशासनिक अफसरों से समस्या का समाधान करने की गई गुजारिश के बाद भी ग्रामीणों की समस्या दूर नहीं हुई है। लिहाजा भावे के 300 से अधिक लोग आर्सेनिकयुक्त पानी पीकर कई तरह की शारीरिक कष्टता से जूझ रहे हैं। छुईखदान ब्लॉक के आखिरी छोर में स्थित भावे आदिवासी बाहुल्य गांव है। घने जंगल में बसे इस गांव के लोगों ने कई बार सरकार और प्रशासन से शुद्ध पेयजल मुहैया कराने के लिए पत्र व्यवहार किया है। व्यक्तिगत रूप से गांव के सरपंच और दूसरे जनप्रतिनिधियों ने अफसरों के सामने अपनी समस्याएं गिनाई है। इस संबंध में ग्रामीण स्वास्थ्य यांत्रिकी कार्यपालन यंत्री एसएन पांडे ने ‘छत्तीसगढ़’ से कहा कि ग्रामीणों की दिक्कतों को दूर करने का प्रयास किया जाएगा। यथासंभव शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराया जाएगा।
छुईखदान ब्लॉक से करीब 30 किमी दूर बसा यह गांव पहाड़ों से घिरा हुआ है। गांव के पठार में लोहे की मात्रा अधिक है। गौण खनिज के लिहाज से गांव और जंगल में अलग-अलग किस्म की धातुएं हैं। जिसमें लोहे की मात्रा अधिक है। भावे के लोगों की प्यास नलकूप के जरिये बुझ रही है। पानी सप्लाई के लिए गांव में नल लाइन भी बिछा दिया गया है। नलकूप से निकले पानी में लोहे की मात्रा काफी अधिक होने से ग्रामीण पाचन और चर्मरोग की समस्या से घिरे हुए हैं। पेट में गड़बड़ी होने की शिकायतें ग्रामीणों की जुबानी आम हो गई है। लगातार शरीर में लोहे का पानी पीने से अन्य रोग से ग्रामीण परेशान हैं। गांव के सरपंच नंदू वरकडे और दिनेश टेकाम, आदूराम टेकाम समेत अन्य ग्रामीणों ने प्रशासन से विशुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने की मांग की है। ‘छत्तीसगढ़’ से चर्चा करते ग्रामीणों ने गांव के बुजुर्ग से लेकर युवा और महिलाओं में पानी के चलते हो रही बीमारी पर चिंता जताई है। गांव के मेहत्तर सिरसाम का कहना है कि लाल रंग का पानी पीने के लिए ग्रामीणों के पास कोई विकल्प नहीं है। उन्होंने बताया कि पेयजल की समस्या दूर होने से बीमारियां भी दूर हो जाएगी। पिछले कुछ सालों से युवाओं में चर्मरोग की समस्या बढ़ी है। साथ ही पेट में जलन, खराब पाचन और अन्य शारीरिक रोग से गांव तनाव में है।
गौरतलब है कि भावे जिला मुख्यालय से लगभग 100 किमी के करीब है। ऐसे में यह सुदूर आदिवासी इलाका स्वस्थ रहने के लिए स्वच्छ पेयजल के लिए तरस रहा है। अफसरों के लिए इस गांव में जाना नक्सल खौफ के चलते यदाकदा ही संभव हो पाता है। ग्रामीणों के लिए मुसीबत बरसात के मौसम में भी बढ़ जाती है, जब जलस्तर बढऩे से लौहयुक्त पानी नलकूप में धार पकड़ लेता है। बहरहाल ग्रामीण शुद्ध पानी से गला तर करने का सपना लंबे समय से संयोए हुए हैं। अफसरों की मेहरबानी का भी गांव इंतजार में है।