राजनांदगांव

आंदोलनों पर प्रतिबंध का प्रयास, निंदनीय व अलोकतांत्रिक- मधुसूदन
27-Apr-2022 3:56 PM
आंदोलनों पर प्रतिबंध का प्रयास, निंदनीय व अलोकतांत्रिक- मधुसूदन

राजनांदगांव, 27 अप्रैल। रैली निकालने व धरना प्रदर्शन करने पर निर्धारित प्रारूप में आवेदन लेना, लोकतंत्र में अपनी तानाशाही को थोपना है, ताकि प्रशासनिक प्रक्रिया की आड़ में आम जनता को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित किया जा सके। उक्ताशय के आरोप लगाते भाजपा जिला अध्यक्ष मधुसूदन यादव ने कहा कि छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार अपने विरुद्ध होने वाले आंदोलनों से इतना भयभीत हो गई है कि अब वह समस्या का समाधान निकालने के बजाय आंदोलनों को ही प्रतिबंधित करने का प्रयास कर रही है, जो घोर निंदनीय एवं अलोकतांत्रिक है।

श्री यादव ने जारी विज्ञप्ति में कहा कि प्रदेशभर में कांग्रेस के विरुद्ध माहौल बन गया है। आम जनता त्रस्त हो गई है और  को उनकी सुध लेने वाला नहीं है तो उनके आंदोलनों को दबाया जा रहा है। उनके नेताओं को धमकाया जा रहा है। रायपुर में आंदोलनरत संविदा विद्युतकर्मियों,  अनियमित कर्मचारियों एवं किसानों को जिस जोर जबर्दस्ती से आंदोलन से उठाया गया और पुलिस बर्बरता का जो तांडव करवाया गया वो पहले कभी छत्तीसगढ़ प्रदेश में कभी नहीं हुआ था।  जबकि ये सभी आंदोलनरत संवर्ग सरकार के जन घोषणा पत्र में किए गए वायदे को पूरा करवाने धरना प्रदर्शन कर रहे थे, न किसी नए मांग को लेकर। जिनको बुरी तरह से मारा गया, डराया गया। इसी परंपरा को बरकरार रखने आंदोलनों को कुचलने भूपेश सरकार ने रैली निकालने एवं प्रदर्शन करने सरकार से अनुमति लेने की अनिवार्यता शुरू की है, जो सरकार की तनाशाही और अलोकतांत्रिक व्यवहार को प्रदर्शित करता है।

श्री यादव ने कहा कि कांग्रेस ने सत्ता में आने के लिए हर तरह से झूठे और बड़े-बड़े वायदे किए थे। जिनको पूरा करने में सरकार असफल हो गई है और जनता के आक्रोश को भांपते वो आंदोलन नहीं कर सके, इसलिए आपातकाल जैसी स्थिति पैदा कर जनता की आवाजों को दबाने का सुनियोजित षडयंत्र है, जो किसी भी हाल में पूरा नहीं होगा। यह एक काला कानून है। जिसका भाजपा पुरजोर विरोध करेगी।  श्री यादव ने कहा कि जिन संविदा विद्युतकर्मियों और अन्य आंदोलनरत कर्मियों पर जबरिया पुलिस कार्रवाई कर उन्हें मारा-पीटा गया, उसकी वे निंदा करते हैं और दोषी अधिकारी-कर्मचारियों पर कठोर कार्रवाई की मांग करते आंदोलन की अनुमति की अनिवार्यता वाले आदेश को वापस लेने की मांग की है।
 

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