बिलासपुर
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 20 मई। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने आदिवासी वर्ग के तीन ऐसे बंदियों को जेल से रिहा करने का आदेश दिया है जो जमानत नहीं करा पाने के कारण पीछे 9 साल से जेल में बंद हैं। इनकी पैरवी के लिए राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण ने पैरवी के लिए वकील उपलब्ध कराया था।
केंद्रीय जेल में 11 अगस्त 2013 से मरवाही का भुवन सिंह विचाराधीन कैदी है। उसने अधिवक्ता रविंद्र शर्मा के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दायर की और बताया कि वह तथा दो अन्य बंदी जयसिंह और सुखसेन गोंड को कोर्ट ने 29 अप्रैल 2016 को सशर्त जमानत दे दी थी। तीनों ही गरीब परिवार से हैं और उनका अपने परिवार से संपर्क नहीं है। उनके लिए जमानत राशि जमा करने वाला कोई संबंधी या परिचित नहीं है। इसके अभाव में उनकी जेल से रिहाई नहीं हो पा रही है।
हाईकोर्ट में इस याचिका की जस्टिस संजय के अग्रवाल और जस्टिस रजनी दुबे की डबल बेंच ने सुनवाई की। प्रारंभिक सुनवाई के बाद केंद्रीय जेल प्रबंधन से रिपोर्ट मांगी गई और हाईकोर्ट की विधिक सहायता समिति से अभिमत लिया गया। बेंच ने तीनों को व्यक्तिगत बांड पर रिहा करने का आदेश दिया है। इसमें कहा गया है कि सीआरपीसी की धारा 389 (1) में इसका प्रावधान है, जिसके तहत किसी दोषी व्यक्ति की सजा को भी लंबित रखा जा सकता है। आगामी अगस्त माह में इन्हें हाईकोर्ट में एक बार उपस्थित होना पड़ेगा, उसके बाद तय की जाने वाली तिथि पर विचारण न्यायालय में हाजिरी देनी होगी।