बिलासपुर
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
करगीरोड (कोटा ), 12 अप्रैल। गणगौर त्यौहार भगवान शिव और देवी पार्वती के प्रेम और विवाह को समर्पित है। गणगौर एक ऐसा त्यौहार है, जिसे अग्रवाल समाज की लडक़ी हो या महिला हर कोई मनाता है।
त्योहार के दौरान अविवाहित लड़कियां और विवाहित महिलाएं दोनों ही पूरे रीति-रिवाजों और रीति-रिवाजों के साथ भगवान शिव और माता पार्वती के एक रूप गणगौर की पूजा करती हैं।
इस पूजा में पांच मूर्तियां गणगौर माता, ईसर, कनीराम, रोवा बाई व सोवा बाई की पूजा की जाती है। अग्रवाल समाज की महिलाओं द्वारा गणगौर की पूजन 16 दिन कर विसर्जन स्थानीय बंधवा तालाब में किया गया। यह परंपरा राजस्थान की वर्षों पुरानी चली आ रही है, जिसमें होली के दूसरे दिन से जिस कन्या का विवाह होली के पहले हुआ होता है, वह कन्या अपने मायके में कुंवारी कन्याओं के साथ गणगौर की पूजा विधि विधान से करती हैं।
होली के दूसरे दिन से पूजा प्रारंभ होकर चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन सुबह से पूजन किया जाता है, उसी दिन शाम को गणगौर माता पूजन कर विसर्जन बैंड बाजा और मारवाड़ी गीतों के साथ हर्षोल्लास के साथ गणगौर का त्यौहार मनाया जाता है एवं गणगौर माता का विसर्जन किया जाता है।