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सामुदायिक वन संसाधन अधिकार मिला तो गुड़ी के सामने रख दिए तीर-कमान और कसम ली कि नहीं करेंगे शिकार
27-May-2022 3:10 PM
सामुदायिक वन संसाधन अधिकार मिला तो गुड़ी के सामने रख दिए तीर-कमान और कसम ली कि नहीं करेंगे शिकार

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
जगदलपुर, 25 मई ।
कांगेर वैली नेशनल पार्क में दूरस्थ वनांचल गांव गुडिय़ापदर । गांव में दूर-दूर फैले सिर्फ 29 घर , ऊंचे-ऊंचे साल के पेड़ और चारों तरफ पहाड़ी मैना का कलरव । घनघोर जंगल में स्थित इस गांव के गोंड़ आदिवासी समुदाय के लोगों ने अपने तीर-कमान देवी को समर्पित कर दिए हैं और कसम खा ली है कि अब वे कभी शिकार नहीं करेंगे ।

कांगेर वैली नेशनल पार्क के सुदूर वनांचल गांव गुडिय़ापदर में 29 आदिवासी परिवारों के 120 सदस्यों को जैसे ही पता चला कि उन्हें मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा सामुदायिक वन संसाधन अधिकार मिलने वाला है , उन्होंने जंगल बचाने ऐसी पहल की जिसने मिसाल कायम कर दी है । सदस्यों ने गुड़ी के सामने शपथ ली कि अब कभी जानवर का शिकार नहीं करेंगे , जंगल की फ़ूड चेन और जैव विविधता बनाये रखने में मदद करेंगे ।

गुड़ी देवी से ली अनुमति - देवी माँ अनुमति दो कि हम जानवरों की बलि नहीं दें । हम सालों से चली आ रही अपने पूर्वजों की इस प्रथा को खत्म करना चाहते हैं । गुडिय़ापदर देवी माँ  ने इसकी तत्काल अनुमति दे दी । अनुमति मिलते ही गोंड समुदाय के सदस्यों ने तीर-कमान देवी के सामने अर्पित कर दिए । गुडिय़ापदर में रहने वाले गोंड समुदाय के शंकर बारसे बताते हैं कि सुनने में भले ही काल्पनिक लगे लेकिन हम आदिवासी परिवारों को विश्वास है कि अपनी देवी से बात करते हैं और उनकी अनुमति लेकर ही कोई काम कर सकते हैं।

आदिवासी परिवारों के हित में सरकार द्वारा लिया गया यह निर्णय प्रदेश में एक अनोखा उदाहरण है। छत्तीसगढ़ यह अधिकार देने वाला देश का दूसरा राज्य बन गया है।
 इससे पहले ओडि़सा में इस अधिकार को मान्यता मिली है। गुडिय़ापदार कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के अंदर स्थित लगभग 29 घरों का एक छोटा सा गांव है।  यहां रहने वाले गोंड समुदाय से संबंधित हैं और वर्षा आधारित खेती (चावल, कोदो-कुटकी, दाल और केले) और निर्वाह के लिए लघु वन उपज पर निर्भर हैं।

संरक्षित वन क्षेत्र के गांवों में कई आदिवासी परिवार सैंकड़ों साल से रहते आ रहे हैं । पूर्वजों के समय से चली आ रही प्रथा के चलते वे जंगली जानवरों का शिकार करते हैं । लंबे समय से चले आ रहे शिकार के चलते कई जीव-जंतु विलुप्ति की कगार पर पहुँच गए हैं ।

सीएफआरआर मान्यता देने का मुख्य मकसद है कि वनों की रक्षा वही करें जो उस क्षेत्र को परंपरागत रूप से संरक्षित करते आ रहे हैं। इसलिए वह प्रबंधन का अधिकार भी उन्हें ही सौंपा जाए। इससे जीव जंतुओं को बचाने , जल संरक्षण और जंगल बचाने में मदद मिलेगी।

जंगल में रह रहे आदिवासी समुदाय का भी लाभ -
सीएफआरआर मान्यता मिलने के बाद गुडिय़ापदर गांव में रह रहे आदिवासी समुदाय को भी लाभ होगा । इन्हें सामुदायिक अधिकार मिलेंगे जिससे बाहरी अतिक्रमण को बढ़ावा नहीं मिलेगा । जानवरों का शिकार बंद होने से ईको टूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा, रोजगार बढ़ेगा जिससे इनकी भी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी । बाद में इन्हें सीमित एरिया में खेती के अधिकार देने पर भी विचार किया जाएगा ।
कांगेर वैली में सुनाई देगा पहाड़ी मैना का कलरव - कांगेर वैली नेशनल पार्क पहाड़ी मैना के लिए प्रसिद्ध रहा है । लेकिन धीरे धीरे ये विलुप्ति की कगार पर पहुँच गयी । लेकिन अब इन्हीं आदिवासी परिवारों को
मैना वॉरियर के रूप में तैयार किया जाएगा । जो मैना के लिए नेस्टिंग साइट , खाने के फल और मेटिंग को सुनिश्चित करेंगे । जिससे पहाड़ी मैना की संख्या बढ़ाई जा सके ।

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