रायगढ़

जमीन ले ली और मुआवजा देने भूल गए
20-Jul-2022 3:45 PM
जमीन ले ली और मुआवजा देने भूल गए

दर-दर की ठोकरें खाने पर मजबूर हुए किसान

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायगढ़,  20 जुलाई।
रायगढ़ जिले के तमनार व घरघोड़ा ब्लाक में दो दर्जन से भी अधिक किसानों की सिंचित जमीन रेल कारीडोर में अधिग्रहण होने के बाद भी मुआवजा नहीं मिलने से परेशान किसानों ने अब जिला कलेक्टर के माध्यम से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से इंसाफ की गुहार लगाई है। पीडि़त किसान लंबे समय से अपनी सिंचित जमीनों के मुआवजे के लिये तहसील स्तर से लेकर जिला मुख्यालय भटक रहे हैं, लेकिन उनकी कोई सुनने वाला नहीं है।
रायगढ़ जिले के तमनार ब्लाक के अंतर्गत आने वाले ग्राम चितवाही के परेशान किसानों ने आज एक बार फिर से ज्ञापन के माध्यम से सूचना के अधिकार के तहत निकाली गई।

लिस्ट के साथ एक आवेदन पत्र जिला कलेक्टर को सौंपते हुए यह मांग की है कि किसानों को उनके हक का मुआवजा नही मिलने से वे पहले अपनी खेती की जमीन से वंचित हुए और अब रोजी रोटी के लिये भी भटक रहे हैं। मुआवजा नहीं मिलने से उनके घर की स्थित भी बद से बदतर हो गई है। परेशान किसान एक बार फिर से बड़ी संख्या में गांव से होकर जिला मुख्यालय पहुंचकर जिला कलेक्टर को एक पत्र के माध्यम से गुहार लगाई है कि उनकी बेशकीमत जमीनों के बदले जो मुआवजा मिलना था, वह आज तक सरकारी कार्यालय की फाईलों में दबा हुआ है। अगर उन्हें जमीन के बदले मुआवजा मिल जाता तो वे अपने आय का नया श्रोत तलाशते।

परेशान किसान बताते हैं कि इससे पहले भी उन लोगों ने क्षेत्र के एसडीएम से लेकर स्थानीय नेताओं को भी अवगत कराया था लेकिन सालों से वे रेल कारीडोर के बदले ली गई जमीन का मुआवजा दिलवाने में असफल रहे हैं। पीडि़त किसानों ने बताया कि जो रेल कारीडोर बनाया गया है वह तमनार  से घरघोड़ा ब्लाक होते हुए रायगढ़ एनटीपीसी तक पहुंचा है जिसमें दो दर्जन से भी अधिक किसानों की सिंचित जमीनें अधिग्रहित की गई थी। नियमानुसार उनका मुआवजा आज तक नही मिला है।  

ग्राम चितवाही के युवा टंकेश्वर सिदार ने बताया कि अपने पिता रामप्रसाद सिदार के नाम से प्लाट है, उनके नाम से 82 डिसमिल जमीन पर रेलवे ने अधिग्रहण अपना काम पूरा भी कर चुका है। जबकि आज तलक मुआवजा नहीं मिला है। टंकेश्वर ने यह भी बताया कि गांव के अन्य लोगों को भी मुआवजा नहीं मिला है और उनके द्वारा 2019 से लगातार ज्ञापन दे दे कर थक चुके है, मगर उनकी समस्या का निदान नहीं हो सका है और वे दर-दर की ठोकरें खाने पर मजबूर हो गए हैं।

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