महासमुन्द
हाईकोर्ट के फैसले से आदिवासी समाज का 32 प्रतिशत आरक्षण कम होकर 20 प्रतिशत हो गया है
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
महासमुंद, 2 नवंबर। आरक्षण में कटौती के विरोध में सर्व आदिवसी समाज ने कल मंगलवार को महासमुंद में जोरदार प्रदर्शन किया। प्रदर्शन में हजारों महिला, पुरुष और बच्चे शामिल हुए। आदिवासियों ने पहले एक बड़ी सभा की। जिसके बाद रैली के रूप मुख्य मार्ग पर निकले और कलेक्टोरेट का घेराव किया। घेराव रोकने भारी तादात में पुलिस बल तैनात था। इसके बावजूद बीटीआई रोड आधे घंटे तक जाम रहा।
इस बीच प्रदर्शनकारियों के प्रतिनिधि मंडल ने जिला प्रशासन को राष्ट्रपति, राज्यपाल, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा और 32 प्रतिशत आरक्षण लागू करने की मांग की। सर्व आदिवासी समाज ने ज्ञापन में कहा है कि छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के फैसले से आदिवासी समाज का 32 प्रतिशत आरक्षण कम होकर 20 प्रतिशत हो गया है।
आदिवासियों का कहना है कि इस फैसले से प्रदेश में शैक्षणिक मेडिकल, इंजीनियरिंग, लॉ, उच्च शिक्षा व नई भर्तियों में आदिवासियों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ेगा। राज्य बनने के साथ 2001 से आदिवासियों को 32 प्रतिशत आरक्षण मिलना था। परंतु नहीं मिला। केन्द्र के कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के द्वारा जारी 5 जुलाई 2005 के निर्देश जनसंख्या अनुरूप आदिवासी 32 प्रतिशत, एससी 12 प्रतिशत और ओबीसी के लिए 6 प्रतिशत सीवडी पदों के लिए जारी किया गया था। आंदोलन के बाद आरक्षण आध्यादेश 2012 के अनुसार आदिवासियों को 32 प्रतिशत, एससी 12 प्रतिशत और ओबीसी के लिए 14 प्रतिशत आरक्षण दिया गया। अध्यादेश को लेकर हाईकोर्ट में अपील की गई। छत्तीसगढ़ शासन द्वारा सही तथ्य नहीं रखने की वजह से हाईकोर्ट ने आरक्षण अध्यादेश 2012 को अमान्य कर दिया। ज्ञापन सौंपने के दौरान आदिवसी समाज ने पांच मांगें रखी हैं, जिनमें पेशा कानून नियम में ग्राम सभा का अधिकार कम न करने, बस्तर व सरगुजा में तृतीय व चतुर्थ वर्ग की भर्ती 100 प्रतिशत स्थानीय लोगों को प्राथमिकता दे।
केन्द्र के द्वारा वन अधिकार संरक्षण अधिनियम 2022 को लागू न करने, हंसदेव अरण्य क्षेत्र में आदिवासी व पर्यावरण संरक्षण के लिए कोल खनन बंद करने, केपी खाण्डे अजा आयोग में नियुक्ति का विरोध शामिल हैं।