कोण्डागांव
शंभू यादव
कोण्डागांव, 6 जुलाई (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। जिले का एक गांव आजादी के 75 साल बाद भी मूलभूत सुविधाओं के लिए जूझ रहा है। यह गांव बारिश में टापू बन जाता है। इससे होने वाली परेशानी को दूर करने ग्रामीणों ने चंदा इकट्ठा कर संसाधन जुटाए। इस संसाधन और श्रमदान कर मारकंडे नाले पर लकड़ी का पुल बनाया।
मारकंडे नाले पर लकड़ी से बनाए गए पुल के उस पार गांव का सबसे नजदीकी बाजार सिलाटी है, हालांकि यह बाजार पड़ोसी राज्य ओडिशा अंतर्गत शामिल है। ग्रामीणों ने ओडिशा के मार्ग पर ही पुल बनाया है, क्योंकि सबसे नजदीकी बाजार केवल 2 किमी के अंतराल पर है और पंचायत मुख्यालय गांव से लगभग 7 से 9 किमी की दूर पर।
जानकारी अनुसार, विकासखंड माकड़ी के अनंतपुर पंचायत अंतर्गत जंगल की छांव में बसा है कोटरलीबेड़ा। पंचायत मुख्यालय से कोटरलीबेड़ा तक कोई भी सडक़ नहीं है।
गांव के पंच बलराम एलमा, ग्राम पटेल दलसाय यादव कोटवार दिलीप बघेल व बाबूलाल बघेल समेत अन्य ग्रामीणों ने बताया कि, कोटरलीबेड़ा में 52 मकान है, जिसमें बच्चे, महिलाएं, युवा, बुजुर्ग समेत कुल 350 लोग निवासरत हंै, जिसमें 200 से अधिक मतदाता शामिल हैं। इस गांव की सुध लेने वाला कोई नहीं है।
ग्रामीणों के अनुसार, विधानसभा चुनाव से पूर्व छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम को ग्रामीणों ने समय से अवगत करवाया था। वस्तुस्थिति जानने के लिए मोहन मरकाम उनके गांव तक भी पहुंचे थे, कोटरलीबेड़ा गांव तक पहुंचने के लिए कोई सडक़ नहीं होने से मोहन मरकाम को 7 से 9 किमी जंगल के रास्ते पैदल चले, चुनावी वादों की तरह ग्रामीणों को विकास पहुंचाने का वादा भी किया गया। अब 5 साल पूरे होने को है, अगला विधानसभा चुनाव होने वाले है, फिर भी समस्या जस की तस बनी हुई है। मोहन मरकाम के अलावा ग्रामीणों ने क्षेत्र के सांसद, इसी क्षेत्र से मंत्री रही लता उसेंडी को उनके मंत्री कार्यकाल के दौरान, कोण्डागांव कलेक्टर, जिला पंचायत सीईओ समेत जिसके पास भी अर्जी किया जा सके, उन तक अपनी आवाज पहुंचाने की कोशिश की गई, फिर भी समस्या वैसी की वैसी ही बनी हुई है।
हाथों में औजार लेकर नाले पर बना डाला लकड़ी का पुल
हाथों में पारंपरिक औजार लेकर लकड़ी से मारकंडे नाला पर पुल बना रहे ग्रामीणों से जब चर्चा की गई तो उन्होंने बताया, कोटरलीबेड़ा गांव के एक तरफ मारकंडे नाला, तो दूसरी ओर मेंढर नाला, इसी तरह तीसरी तरफ भी नाला है। तीन तरफ से नाला व गांव के लिए जंगल से एक पगडंडी मार्ग बरसात के दिनों में गांव को टापू बना देता है।
शासन प्रशासन के पास अर्जी देने के बाद भी समस्या का समाधान नहीं हुआ तो स्थानीय ग्रामीणों ने अपनी जरूरतों को पूरा करने लकड़ी का पुल बना लिया। इस पुल को बनाने के लिए पहले प्रत्येक घर से 100 रुपए का आर्थिक सहयोग दिया गया। इन रुपए के सहयोग से एक ट्रैक्टर किराया कर आसपास के जंगल से सूखी लकडिय़ां इकट्ठा की गई, जिसे मारकंडे नाला के पास जमा किया गया। सूखी लकडिय़ों से मारकंडे नाला में छोटा सा पुल बनाया गया है, जिससे नजदीकी बाजार आया जाया जा सके। यह पुल भी तेज बारिश के बहाव में बह जाती है। इसलिए लकड़ी का पूल सीमित समय के लिए ही है।
5 साल के बच्चों को भी जाना होता है 7 किमी दूर आंगाकोना, गांव में नहीं हैं पीएस एमएस
ग्रामीणों की माने तो गांव में लगभग 47 बच्चे हैं जिनमें से 30 से 35 बच्चे स्कूल जाते हैं। इन बच्चों का जीवन भी काफी संघर्ष में है। ग्रामीणों की माने तो, गांव में प्राथमिक - माध्यमिक शाला तो दूर, कोई आंगनबाड़ी भी नहीं है। ऐसे में कक्षा पहली से लेकर आठवीं तक की शिक्षा के लिए स्कूली बच्चों को कोटरलीबेड़ा से 7 किमी दूर आंगाकोना गांव तक पैदल जाना होता है। बरसात के दिन में इस मार्ग पर स्थित नाले में बारिश का पानी तेज हो जाने से सभी बच्चों को आंगाकोना गांव में ही किसी के भी घर शरण लेना पड़ता हैं। जब बारिश का पानी कम हो जाता है, तब जाकर बच्चे अपने घर पहुंच पाते हैं।
गर्भवती माताएं प्रसव से एक माह पूर्व छोड़ देती है अपना घर
2 दिनों पहले गांव की 25 वर्षीय बुधंती बघेल ने अपने ही घर में अपने तीसरे बच्चे को जन्म दिया है। बुधंती बघेल को संस्थागत प्रसव का लाभ इसलिए नहीं मिल पाया, क्योंकि गांव तक 102 महतारी एक्सप्रेस एंबुलेंस नहीं पहुंच पाती है। प्रसव के बाद जच्चा-बच्चा को मोटर साइकिल से अंतनपुर अस्पताल में स्वास्थ्य सुविधा मुहैया करवाई गई है। फिलहाल मां और बच्चा स्वस्थ हैं और अपने घर पर हैं।
ग्रामीणों ने दावा किया है कि, यदि कोई महिला गर्भवती होती है तो प्रसव से लगभग 1 माह पूर्व उसे अनंतपुर या अनंतपुर के आसपास के किसी भी गांव में परिजनों के घर छोड़ दिया जाता है। ताकि समय आने पर गर्भवती महिला को स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध हो सके। ऐसा इसलिए क्योंकि कोटरलीबेड़ा गांव के लिए कोई भी सडक़ नहीं है। यदि कोई ग्रामीण अन्य तरह की बीमारी से जूझ रहा होता है तो मोटर साइकिल या डोला बनाकर उसे जंगल के मार्ग 7 किमी दूर मुख्य मार्ग तक पहुंचाया जाता है, जिसके बाद बड़ी वाहन या एंबुलेंस की सुविधा उपलब्ध हो पाती है।
वनभूमि होने से वन विभाग को दिया गया है जिम्मा, मनरेगा मद से बनेगी सडक़- जिपं सीईओ
ग्रामीणों की समस्या को लेकर जिला पंचायत सीईओ प्रेम प्रकाश शर्मा ने कहा कि, ग्राम पंचायत अनंतपुर के कोटरलीबेड़ा के समस्या के बारे में शासन-प्रशासन पूर्ण रूप से अवगत है। उनकी समस्या के समाधान के लिए वन विभाग को निर्देशित किया गया है। सडक़ का कार्य जंगल के अंदर होना है जिस कारण यह कार्य वन विभाग के माध्यम से किया जाएगा। सडक़ सर्वे कार्य पूर्ण हो जाने से मनरेगा मद से वन विभाग के माध्यम से निर्माण कार्य भी पूरा करवा दिया जाएगा। इसी तरह आंगनबाड़ी और स्कूल समेत अन्य सुविधाओं को भी जल्द पूर्ण करने की कवायद की जा रही है।