सुकमा

बचपन से सीखा हुनर जवानी में दो वक्त की रोटी का बना सहारा
06-Sep-2023 10:13 PM
बचपन से सीखा हुनर जवानी में दो वक्त की रोटी का बना सहारा

मिट्टी से भगवान का रूप देकर उल्लूर के नागेश की संवरने लगी जिंदगी

मोहम्मद इमरान खान

भोपालपटनम, 6 सितंबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। धुर नक्सल प्रभावित क्षेत्र उल्लूर संजय पारा के दुर्गम नागेश भगवान की मूर्तियां बनाकर अपनी जिंदगी सवार रहे हैं।  बचपन से सीखा हुआ हुनर अब जाकर जवानी में पालन पोषण का सहारा बना है, यह कहानी है उल्लूर के रहने वाले नागेश दुर्गम की।

ब्लॉक मुख्यालय से छ: किलोमीटर दूर उल्लूर के रहने वाले दुर्गम नागेश बताते हंै कि वे बचपन से मिट्टी से खिलौने बनाकर खेलते थे, 10 साल की उम्र में घर में गाय, बैल, खिलौने बनकर अपने दोस्तों के साथ खेलते थे, इसी तरह धीरे-धीरे उन्होंने भगवान की मूर्तियां बनाना शुरू किया। उनसे गांव के लोग औने-पौने दाम में मूर्तियां ले जाया करते थे।

कुछ साल बाद गांव में गणेश स्थापना के लिए उन्हें मूर्ति बनाने को कहा गया। उनका वह पहला आर्डर था, उन्होंने गांव के लिए बड़ी मेहनत से मूर्ति बनाई और वे सफल हुए, उसके बाद आसपास के गांव वाले गणेश व दुर्गाेत्सव में उनसे मूर्तियां बनाने लगे, धीरे-धीरे अब वे तीन साल से ब्लाक मुख्यालय में आकर मूर्तियां बनाकर बेच रहे हंै।

उल्लूर के नागेश क्लब ग्राउंड में पंडाल लगाकर मूर्तिया तैयार कर रहे हंै। उनकी मेहनत व लगन लोगों के लिए प्रेरणा साबित हो रही है। नागेश के साथ दो लडक़े दुर्गम संतोष, हरीश पिन्नापल्ली भी इनका हाथ बांटने इनके पंडाल में काम कर रहे हंै।

नागेश बताते हैं कि उनका छोटा सा परिवार है, उनकी पत्नी व दो बच्चे हैं। माता-पिता का देहांत कुछ साल पहले हुआ है। उनके यह डेढ़ एकड़ खेती है, इस काम के साथ खेती का काम भी करते हंै। खेत में जो फसल आता है उन्हें साल भर खाने के काम में आता है।

पाई-पाई जमा कर खरीदी पेंटिंग मशीन

मूर्तियों को कलर कर उभरने के लिए नागेश ने पाई-पाई पैसा जमा कर 10 हजार में पेंट करने की मशीन खरीदी है। काम चालू किए शुरुआती समय में हाथ से मूर्तियों में कलर लगाया करते थे। पांच साल पहले उन्होंने मूर्तियां बेचकर थोड़े थोड़े पैसे जमा किया, उसके बाद उन्होंने तेलंगाना के मंचिरियाल शहर जाकर दस हजार में कम्प्रेशर मशीन ली है, तब जाकर वे बड़ा काम कर रहे हैं।

मेले में लगती है स्टॉल

आस पास के मेले मड़ाई में इनकी स्टाल लगती है। वे बताते हंै कि मेलों में भगवान की छोटी-छोटी मूर्तियां गणेश, दुर्गा, लक्ष्मी, गौरी, और मिट्टी से बने खिलौना बनाकर बेचते हैं। जिसकी कीमत पचास रुपए से लेकर दो सौ रुपए तक की होती है। यह बेचकर वे एक हजार से दो हजार तक का फायदा काम लेते हंै।

पत्नी बंटाती हैं काम में हाथ

दुर्गम नागेश ने बताया कि उनकी जीवन साथी सुशील दुर्गम उनके हर काम में हाथ बटाती है। खेती कार्य से लेकर मूर्ति बनाने के काम मे उनका भरपूर सहयोग रहता है। घर के काम के बाद वे बिना थके पति का सहयोग करती हैं।

 

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