मनेन्द्रगढ़-चिरिमिरी-भरतपुर
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
मनेन्द्रगढ़, 30 जनवरी। विजय सिंह 4 दशकों से रंगकर्म एवं साहित्य साधना के चितेरे कवि के रूप में उभरकर सामने आए हैं। विज्ञान और कृषि क्षेत्र के ज्ञानी विजय का साहित्य जगदलपुर की वादियों के इर्द-गिर्द घूमता है। उनकी रचनाएं प्राकृतिक पहाड़ों, जंगलों की उस परिभाषा को गढ़ते हैं जो सामान्यत: सामाजिक सोच से परे होती हैं। यही कारण है कि प्रकाशक ने समकाल की आवाज के अंतर्गत उनके काव्य संग्रह विजय सिंह की चुनी हुई कविताओं को राष्ट्रीय प्रकाशन श्रृंखला में शामिल कर प्रकाशित किया है।
उक्ताशय के विचार अंचल के वरिष्ठ साहित्यकार एवं वनमाली सृजन केन्द्र के संयोजक बीरेंद्र श्रीवास्तव ने विजय सिंह की चुनी हुई कविताएं काव्य संग्रह पर आयोजित पुस्तक चर्चा में व्यक्त किए। साहित्यकार गौरव अग्रवाल ने कहा कि विजय सिंह बस्तर की उस माटी से जुड़े लेखक है जहां शानी एवं लाला जगदलपुरी की रचनाओं ने जन्म लिया है। समकाल की आवाज में उनकी काव्य संग्रह की रचनाएं हमें प्रकृति के नए मूल्यों से पहचान कराती हैं।
अधिवक्ता कल्याण केसरी ने कहा कि प्रकृति चिंतक विजय सिंह की कविताओं में पर्यावरण का स्पष्ट चिंतन दिखाई पड़ता है, ऐसे रचना धर्मी व्यक्तित्व का यह पुस्तक प्रकाशन उनका सामाजिक सम्मान है। संजय सेंगर ने कहा कि विजय बस्तर की मूल चेतना के चितेरे कवि हैं। उनकी रचनाओं में बस्तर का जनजीवन शब्दों से प्रस्तुत होता है।
कृषि विज्ञानी पुष्कर लाल तिवारी ने कहा कि देश के जाने-माने साहित्यकार विजय सिंह एक साहित्यकार के अतिरिक्त एक विराट आभामंडल के धनी व्यक्तित्व हैं। पर्यावरण मित्र सतीश द्विवेदी ने विजय सिंह को एक लेखक ही नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण का कवि निरूपित किया। सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष परमेश्वर सिंह ने कहा कि विजय ऐसे स्वप्नदृष्टा हैं जो अपनी कलम और शब्दों में प्रकृति के संवेदनाओं को हम तक पहुंचाने में सक्षम रहे हैं। वरिष्ठ कवि साँवलिया प्रसाद सर्राफ ने कहा कि विजय सिंह की काव्य रचना बस्तर की बोलती माटी के शब्द हैं। इसी परिपेक्ष में उन्होंने अपनी नवीन कविता मृत्यु एवं चिंतित माँ की प्रस्तुति दी, जिसे बहुत सराहना मिली।
समाज सेवी नरेंद्र श्रीवास्तव ने कहा कि नदी, पहाड़ और जंगल की भाषा जिस दिन मनुष्य समझने लगेगा, एक नए परिवर्तन की ओर हम चल पड़ेंगे। शिक्षा एवं सांस्कृतिक जगत से जुड़े रचनाकारों के इस कार्यक्रम में प्राचार्य राजकुमार पांडेय एवं संगीतज्ञ सरदार हरमहेंद्र सिंह ने भी विजय सिंह के पुस्तक पर अपने विचार रखे।