मनेन्द्रगढ़-चिरिमिरी-भरतपुर
मनेन्द्रगढ़, 6 फरवरी। नवीन एमसीबी जिला बनने के बाद क्षेत्र के विकास में जहां एक ओर तेजी आई है, वहीं आसपास के क्षेत्र एवं स्थानीय कालरी क्षेत्र से रिटायर्ड कर्मी मनेंद्रगढ़ नगर एवं आसपास अपना स्थाई आवास बनाने वालों की संख्या तीव्र गति से बढ़ी है। वहीं शहरी क्षेत्र में मकान बनाने के लिए परिवर्तित भूमि की मांग बढ़ी है, लेकिन शासन की अव्यवहारिक नीति के कारण आम आदमी को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार परिवर्तित भूमि का कोई भी हिस्सा बेचने के लिए कलेक्टर से अनुमति अनिवार्य कर दिया गया है जिससे संबंधित हितग्राहियों को पटवारी, आरआई, तहसीलदार एवं स्थानीय निकायों तथा कलेक्टर कार्यालय के चक्कर लगाकर परेशान होना पड़ता है, जबकि कृषि भूमि के छोटे-छोटे टुकड़े कर आसानी से लोग खरीदी बिक्री कर रहे हैं।
दुर्भाग्य की बात यह है कि परिवर्तित भूमि विक्रय की अनुमति में औपचारिकताएं पूरी करने में एक-डेढ़ वर्ष तक का समय भी लग जाता है जिससे अपनी मजबूरी के कारण भूमि बेचने वाले को समय पर पैसा नही मिल पाता तथा इच्छुक खरीददार को अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है साथ ही नगर विकास की गति भी अवरुद्ध हो रही है। जिले में नगर के आसपास आ परिवर्तित कृषि भूमि को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर आसानी से रजिस्ट्री करवाई जा रही है जिस पर प्रशासन का कोई अंकुश नहीं है। ज्ञातव्य हो डायवर्सन प्रक्रिया में भूमि की सूक्ष्म जांच प्रशासन द्वारा की जाती है। पटवारी, आरआई, तहसीलदार, की रिपोर्ट के बाद ही शासन भूमि परिवर्तन का प्रमाण पत्र जारी करता है। बावजूद इसके परिवर्तित भूमि विक्रय के समय क्रेता एवं विक्रेता दोनों को अनावश्यक परेशान होना पड़ रहा है।
गौरतलब है कि वर्ष 2016 में डॉ. रमन सरकार ने इसी प्रकार के मामले में कोरबा क्षेत्र में परिवर्तित भूमि की खरीदी बिक्री में जन समुदाय की परेशानियों को देखते हुए कलेक्टर की अनुमति को अनावश्यक बताया था तथा कैबिनेट ने निर्णय कर कलेक्टर की अनुमति के औचित्य को समाप्त कर दिया था, क्योंकि वहां भी कोरबा नया जिला बनने के बाद विकास में काफी गति आई थी एवं लोग अपना निजी मकान बनाने में जुटे थे। शासन को ऐसे अनावश्यक और औचित्य हीन नियमों पर पुनर्विचार किए जाने की आवश्यकता है।