कोण्डागांव
![नारायणपुर-भाटपाल में ईसाई आदिवासी को दफनाने पर विवाद नारायणपुर-भाटपाल में ईसाई आदिवासी को दफनाने पर विवाद](https://dailychhattisgarh.com/uploads/chhattisgarh_article/1721323143ondagaon-1.gif)
कानूनी रूप से धर्म परिवर्तन करें, देवी-देवताओं का अपमान न करें- भोजराज
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
कोंडागांव, 18 जुलाई। नारायणपुर जिला के बेनूर थाना क्षेत्र अंतर्गत भाटपाल गांव में एक बार फिर मतांतरण का मामला प्रकाश में आया है। जिसके चलते विवाद की स्थिति उत्पन्न हो रही है।
दरअसल गांव में ईसाई धर्म में आस्था रखने वाले की मौत के बाद शव के अंतिम संस्कार को लेकर विवाद हुआ है। इसी बीच 17 जुलाई को कांकेर सांसद भोजराज नाग नारायणपुर पहुंचे। नारायणपुर से वापस लौटने पर सांसद भोजराज नाग ने कोण्डागांव में ‘छत्तीसगढ़’ से विशेष चर्चा की। इस दौरान उन्होंने ‘छत्तीसगढ़’ से चर्चा करते हुए गलत तरीके से धर्म परिवर्तन करने पर कड़ा ऐतराज जताया है।
उन्होंने कहा कि, कानूनी तौर पर धर्म परिवर्तन नहीं किया गया है, कानूनी रूप से धर्म परिवर्तन करें। हमारे देवी-देवताओं का अपमान न करें।
बेनूर परगना के गोंडवाना समाज के लोगों द्वारा कलेक्टर को ज्ञापन देकर मतांतरित परिवार के शव को कब्र से निकालकर गांव से दूर ईसाई कब्रिस्तान में दफनाने की मांग की गई है। गोंडवाना समाज की आपत्ति और गैर-संवैधानिक तरीके से धर्म परिवर्तित कर दूसरे धर्म में आस्था रखने का मामला फिर से तूल पकड़ता जा रहा है। इस मामले में उचित कार्रवाई का निर्देश दिया गया है।
नारायणपुर जिला से कोण्डागांव लौटे कांकेर सांसद भोजराज नाग ने कहा कि, वहां शव दफनाने को लेकर वहाँ के जनजाति समाज के मांझी, मुखिया और गांव के पटेल, गायता से मिला। वहां पर विवाद चल रहा है कि, किसी ने जबरन किसी धर्म विशेष के ईसाई धर्म के पास्टर को बुलाकर शव को दफनाया है। इसको संज्ञान में जैसे ही मेरे पास आया तो मैंने वहाँ के कलेक्टर को बुलाकर और गांव वालों को बुलाकर बातचीत की है और उन्हें कहा है कि जो हमारी पांचवी अनुसूची क्षेत्र में पेसा कानून है और उसके अंतर्गत जो सामाजिक धार्मिक और सांस्कृतिक जो व्यवस्था है उसको बनाए रखें और इस प्रकार की जो गतिविधियां हैं, उन पर रोक लगाएं।
सांसद ने आगे कहा कि, हमारे संविधान में स्पष्ट रूप से जो पांचवी अनुसूची क्षेत्र है, उसमें विशेष प्रावधान है कि, वहां पर रहने वाले जनजाति समुदाय और अन्य समुदाय के लोग जिस प्रकार से सैकड़ों वर्षों से सामाजिक सद्भावना के रूप में सब एक-दूसरे के घर में तीज-त्यौहार है, जो भी पर्व होता है, एक समरसता के साथ मनाते हैं। लेकिन धर्मांतरण होने के बाद, अपने रीति-रिवाज को नहीं मानने के बाद, इस प्रकार की समस्या आती है। मैंने वहां के जिला कलेक्टर से कहा है कि असामाजिक गतिविधियों के द्वारा सामाजिक रीति-रिवाज, परंपरा को तोडऩे का काम कर रहे हैं, ऐसे लोगों पर आप ध्यान देकर व्यवस्था करें।