बालोद

किल्लेकोड़ा के आधा सैकड़ा से अधिक परिवार पत्थर को तराश कर बना रहे मूर्तियां
14-Mar-2021 6:46 PM
 किल्लेकोड़ा के आधा सैकड़ा से अधिक परिवार  पत्थर को तराश कर बना रहे मूर्तियां

   मूर्ति बनाने की कला बुजुर्गों से, 16 साल पहले शिल्पग्राम का दर्जा    

शिव जायसवाल

बालोद, 14 मार्च (‘छत्तीसगढ़’)। बालोद जिला के वनॉचल क्षेत्र में स्थित ग्राम किल्लेकोड़ा ऐसा गांव है जो कि क्षेत्र सहित देश के विभिन्न राज्यों में मूर्तिकला और शिल्प ग्राम के नाम से जाना जाता है। इस गांव में आधा सैकड़ा से अधिक परिवार के ग्रामीण पत्थर को तराश कर तरह-तरह की मूर्तियां तैयार करते हंै और जिस पत्थर से ये मूर्ति तैयार करते हंै वह पत्थर बेहद अलग तरह का पत्थर है, जिसे क्षेत्र में कुण्डी पत्थर के नाम से जानते हैं, जो कि इसी गांव के पास जंगल में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।

पिछले कई सालों से इस गांव के ग्रामीण इन पत्थरों से मूर्ति बनाने का काम कर रहे हैं। राज्य की महिला एवं बाल विकास मंत्री अनिला भेडिय़ा ने अपने प्रवास के दौरान इन मूर्तिकारों को आगे लाने व सुविधा दिलाने के लिए पूरी प्रयास करने की बातों पर जोर दी है। वनांचल में बसे ग्राम किल्लेकोड़ा के ग्रामीण मूर्ति बनाने के लिए कोई आधुनिक औजारों का नहीं बल्कि लोकल औजारों से पत्थरों को तेराश कर मूर्ति का निर्माण करते हैं। इनके द्वारा बनाई गई मूर्तियां आज देश के कई स्थानों पर स्थापित है। इन ग्रामीणों को मूर्ति बनाने की कला किसी बाहर से नहीं बल्कि अपने बुजुर्गों से मिली है। गांव के बुजुर्ग कई साल पहले इस कुण्डी पत्थर से घरेलू उपयोग का समान जैसे- कोटना, नमक रखने के लिएबर्तन, कटोरा, प्लेट, व छोटी-छोटी मूर्तियां बनाते थे जिससे उन घर-परिवार के सदस्य भी इसमें हाथ बंटाने लगे। समय के साथ-साथ इनकी कलाओं मे निखार आने लगी और ग्रामीण एक से बढक़र एक मूर्तियां या अन्य समान इन पत्थरों से बनाने लगे।

आज इस गांव में आधा सैकड़ा से अधिक परिवार के ग्रामीण पत्थर को ताराश कर तरह-तरह की मूर्तियां तैयार करते हंै, इनकी कला को देख लगभग 16 साल पहले यहां राज्यपाल व राज्य के मुखिया ने पहुंचकर इस गांव को शिल्प ग्राम का भी दर्जा दिया है लेकिन यहां के मूर्तिकारों को कोई खास सुविधा नहीं मिल पाई। ग्रामीण अपनी सुविधा अनुसार अपने स्तर पर पत्थरों से मूर्ति तैयार करते है और बिक्री करते है।

इनके साथ बड़ी विडंबना उस समय हुई जब आज से लगभग 20 साल पहले जंगल से पत्थर उत्खनन पर वन विभाग द्वारा प्रतिबंध लगा दिया गया। जिससे ग्रामीण उस जंगल से इस कुण्डी पत्थर का उत्खनन करने में ंअसमर्थ साबित हो गए। लिहाजा ग्रामीण जंगल में जाकर जो पत्थर पड़ा मिलता है उसी को लाकर मूर्ति बनाने का काम करते हैं।

ग्रामीणों का मानें तो उन्होंने अनुमति के लिए कई बार प्रयास किए लेकिन अनुमति नहीं मिल पाया है। चूंकि यह क्षेत्र राज्य की महिला एवं बाल विकास मंत्री अनिला भेडिय़ा के विधानसभा क्षेत्र है ऐसे में पिछले दिनों मंत्री अनिला भेडिय़ा ने अपने प्रवास के दौरान इन मूर्तिकारों को आगे लाने व सुविधा दिलाने के लिए पूरी प्रयास करने की बातों पर जोर दी है।

आज पत्थरों के अभाव में इन ग्रामीण मूर्तिकारों के हाथ पत्थरों को तराशने के काम में थम रहे हैं। यदि इन्हें पत्थर उत्खनन की अनुमति मिल जाए तो इनके कला में और भी निखार आ जायेगा और इस गांव के मूिर्तकार क्षेत्र नहीं वरन् पूरे राज्य का नाम अपनी कला के बदौलत रोशन करेंगे क्योंकि इनके अंदर पत्थरों को ताराश मूर्ति व अन्य समान बनाने की गजब की कला है।

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