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बस अंधेरे और उजाले में फर्क नहीं समझ पाता, बाकी सब पता है...
04-Aug-2024 2:16 PM
बस अंधेरे और उजाले में फर्क नहीं समझ पाता, बाकी सब पता है...

पच्चीस साल पहले रेल का सफर शुरू, लोगों की सराहना देती है नई ऊर्जा

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता 
महासमुंद, 4 अगस्त।
 रविवार सुबह साढ़े छह बजे आजाद हिंद एक्सप्रेस की एस थ्री बोगी में आंख से बिल्कुल नहीं देख सकने वाला दिव्यांग राजेश मूंगफली की चिक्की, चाकलेट बेचते दिखा। 
वह बगैर किसी सहारे के ट्रेन के डिब्बे में आसानी से चल रहा था। अभी बहुत सारे पैसेंजर नींद में थे, लेकिन जो जाग रहे थे, उनमें से कुछ ने चिक्की और संतरा चाकलेट खरीदा। वह बहुत आसानी से कीमत के हिसाब से छोटा बड़ा चाकलेट निकालता, जो रुपये मिलते, उसके चारों किनारे टटोल पता कर लेता कि कितने रुपये का नोट है, बाकी के रुपये वह ईमानदारी से लौटा देता था।

बातचीत में उसने ‘छत्तीसगढ़’ को बताया-मैं अमरावती में रहता हूं। जन्म से ही आंखें नहीं है, मैं बस अंधेरे और उजाले में फर्क नहीं समझ पाता बाकी सब पता है। घर में पत्नी और दो बेटियां हैं। पढ़ा रहा हूं बेटियों को, आगे जैसा वक्त का तकाजा हो।

एक सवाल.. कि छड़ी कहां है आपकी? इस पर उसने कहा...छड़ी नहीं चलती न ट्रेन में। स्टेशन से घर तक ही आता जाता हूं छड़ी के सहारे। 

आगे बताया कि सुबह छह बजे घर से रोज स्टेशन आता हूं। सामान लेकर किसी भी डिब्बे में चढ़ जाता हूं। लोग मुझ पर हंसते थे, ताना मारते थे मुझे। स्कूल में भी इसीलिए जाना छोड़ दिया।

वैसे मैंने अंधजन तालीम केंद्र नागपुर से पांचवीं कक्षा तक पढ़ाई की है। पिताजी की मौत के बाद घर की जिम्मेदारी शुरू हो गई थी। किसी ने काम नहीं दिया तो आज से पच्चीस साल पहले रेल का सफर शुरू किया।

शुरूआत में दिक्कतें खूब आई, चोट भी लगे लेकिन काम नहीं रुका। अब तो अभ्यस्त हो चला हूं। ट्रेन के एक-एक डिब्बे, एक-एक कोच और सीटों को पहचानता हूं। अंदर के ही रास्ते से दूसरे डिब्बे तक पहुंच जाता हूं।

हर दिन ट्रेन में बैठे लोगों से जीने के लिए कुछ न कुछ ताकत मिल जाती है। ऐसे दो-चार लोग दिन में जरूर मिल जाते हैं जो मेरे काम की सराहना करते हैं।
कहते हैं कि सलामत शरीर के रहते भी लोग भीख मांगते हैं, लेकिन तुमने ऐसा नहीं किया। यही बात कल सुबह फिर से काम करने के लिए एनर्जी दे जाती है।
उसने बताया- अपना सारा काम खुद कर लेता हूं। खाना भी बना लेता हूं। आसपास और परिवार के लोगों को उनकी आहट से पहचान सकता हूं। रंगों में सिर्फ काला रंग ही मेरे हिस्से में आया। मेरे लिए नोट का रंग भी काला है। चीजों को छूकर जान लेता हूं कि क्या है।

बातचीत खत्म होते ही आपकी यात्रा मंगलमय हो कहते राजेश काले दूसरे डिब्बे की ओर निकल गया। एसथ्री डिब्बे के लोग उसके जाने के बाद बतियाते रहे कि दिव्यांग महेश भीख मांगने को धंधा बनाने वालों के लिए एक सीख है।

समाचार तैयार करते सुबह के साढ़े सात बजे हैं और ट्रेन के साथ साथ राजेश काले का सफर जारी है।
 8605534926 राजेश काले का नंबर है। कॉल आते ही उनका मोबाइल कॉल करने वाले का नंबर बताता है और वह नंबर राजेश काले हमेशा के लिए याद रख लेता है।

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