अंतरराष्ट्रीय
(शिरीष बी प्रधान)
काठमांडू, 5 मार्च। नेपाल के उच्चतम न्यायालय ने दशक भर लंबे विद्रोह के दौरान पांच हजार लोगों की मौत की जिम्मेदारी लेने वाले प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड के खिलाफ एक रिट याचिका पंजीकृत करने का अपने प्रशासन को आदेश दिया है।
उच्चतम न्यायालय प्रशासन द्वारा दो वकीलों की ओर से दायर याचिकाओं को खारिज करने के फैसले के खिलाफ अपील पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति ईश्वर प्रसाद खतिवडा और हरि प्रसाद फुयाल की पीठ ने शुक्रवार को अदालत के प्रशासन को याचिका पंजीकृत करने का आदेश दिया।
संघर्ष के पीड़ित वकील ज्ञानेंद्र आराण और कल्याण बुधाठोकी ने अलग-अलग याचिकाएं दायर की थीं लेकिन अदालत के प्रशासन ने पिछले साल 10 नवंबर को उन्हें पंजीकृत करने से मना कर दिया था।
विद्रोह 13 फरवरी 1996 में शुरू हुआ था और 21 नवंबर 2006 को सरकार के साथ व्यापक शांति समझौता होने के बाद आधिकारिक तौर पर खत्म हो गया था।
पंद्रह जनवरी 2020 को काठमांडू में एक कार्यक्रम में प्रचंड ने कहा था, “ मुझपर 17000 लोगों की हत्या का आरोप लगाया जाता है जो सच नहीं है। हालांकि मैं संघर्ष के दौरान पांच हजार लोगों की हत्या की जिम्मेदारी लेने को तैयार हूं।”
प्रचंड ने कहा था कि शेष 12000 हत्याओं की जिम्मेदारी सामंती सरकार ले।
पीड़ितों ने मांग की है कि अदालत प्रचंड के खिलाफ उन हत्याओं के लिए जरूरी कानूनी कार्रवाई करे, जो उन्होंने खुद स्वीकार की हैं। (भाषा)
इसराइल में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. यहां सड़कों पर हज़ारों लोगों को देखा जा सकता है.
ये प्रदर्शन सरकार के न्यायिक सुधारों को लाने की कोशिशों के ख़िलाफ़ हो रहे हैं.
प्रदर्शन बीते नौ हफ़्ते से हो रहे हैं. सड़कों पर लोग झंडे, बैनर, ड्रम लेकर घूम रहे हैं और लोकतंत्र बचाने की बात कर रहे हैं.
ये प्रदर्शन वैसे तो शांतिपूर्वक ही रहे हैं मगर तेल अवीव में कुछ जगह प्रदर्शनकारियों को पुलिस की बैरिकेटिंग हटाते हुए भी देखा गया.
पुलिस से प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए वॉटर कैनन का इस्तेमाल किया. येरूशलम में भी झड़पें होने की ख़बरें आईं. कई विपक्षी नेताओं ने प्रदर्शनों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई.
इन सुधारों के तहत सुप्रीम कोर्ट जज चुनने का अधिकार मंत्रियों के पास होगा और इससे अदालत के अधिकार सीमित होंगे. (bbc.com/hindi)
-रियलिटी चेक, बीबीसी मॉनिटरिंग और बीबीसी फ़ारसी
एक हज़ार से ज़्यादा ईरानी छात्र पिछले तीन महीनों में बीमार हुए हैं. इन छात्रों में ज़्यादातर स्कूली छात्राएं शामिल हैं.
छात्रों के बीमार होने के पीछे संभवतः ज़हरीली गैस की ख़बरें आ रही हैं. क्या है जो इतनी बड़ी संख्या में छात्रों को बीमार कर रहा है?
बुधवार को ईरान में कम से कम 26 स्कूलों में दर्जनों लड़कियां कथित तौर पर बीमार पड़ गईं जिसके बाद इस मामले ने तूल पकड़ लिया है.
बीमार होने वालों में एक जैसे लक्षण दिखाई दे रहे हैं. छात्राओं को सांस लेने में परेशानी, मतली, चक्कर आना और थकान का सामना करना पड़ रहा है.
सवाल है कि इन मामलों के पीछे वजह क्या है? और ये मामले पूरे ईरान में कैसे फैल गए?
पहला मामला
पहला मामला ईरान के कोम शहर से आया, जहां एक स्कूल में 18 छात्राएं बीमार पड़ गईं. छात्रों को 30 नवंबर को अस्पताल ले जाया गया. तब से स्थानीय मीडिया के अनुसार आठ प्रांतों में कम से कम 58 स्कूलों में ऐसे मामले दर्ज किए गए हैं.
प्राइमरी और उच्च स्कूलों में ज़्यादातर मामलों में लड़कियां शामिल हैं. हालांकि लड़कों और शिक्षकों के भी बीमार होने की कुछ ख़बरें सामने आई हैं.
बीबीसी ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए दर्जनों वीडियो का विश्लेषण किया है और जिन स्कूलों में वीडियो बनाई गई उनका सत्यापन भी किया है.
इन वीडियोज़ में कई युवा लोगों को परेशानी का सामना करते हुए देखा जा सकता है, वहीं कुछ में छात्रों को एंबुलेंस की मदद से अस्पताल ले जाया जा रहा है, तो कुछ बिस्तर पर लेटे हुए हैं.
कुछ वीडियो में एंबुलेंस आते हुए और स्कूल के बाहर जमा भीड़ भी दिखाई दे रही है. तेहरान के पास शहरयार के एक स्कूल की छात्रा ने कहा कि उसे और उसके दोस्तों को कुछ अजीब सी गंध आ रही थी.
उन्होंने बीबीसी फारसी को बताया, "यह गंध बहुत बेकार थी, जैसे कोई सड़ा हुआ फल होता है, लेकिन यह गंध बहुत तेज़ थी."
छात्रा ने बताया, "अगले ही दिन कई छात्र बीमार पड़ गए और स्कूल नहीं आए. हमारे इंग्लिश के टीचर भी बीमार पड़ गए थे."
उन्होंने कहा, "जब मैं घर गई, मुझे चक्कर आ रहा था और मैं खुद को बीमार महसूस कर रही थी, मेरी मां बहुत परेशान थी क्योंकि मैं बहुत पीली पड़ चुकी थी और मुश्किल से सांस ले रही थी. किस्मत से मैं जल्द ही ठीक हो गई. हमारे स्कूल के ज़्यादातर बच्चे 24 घंटे में ठीक हो गए"
जब दूसरे स्कूलों से भी इस तरह की खबरें आईं तो हमारे स्कूल की प्रिंसिपल और सीनियर टीचर डर गए थे. उन्होंने हमें कहा कि जो कुछ हुआ है उसकी बाहर जाकर बात न करें.
मामलों के पीछे क्या है वजह?
छात्रों के बीमार होने के पीछे सरकारी अधिकारी अलग अलग कारण बता रहे हैं. वहीं ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने असल कारणों की जांच करने का आदेश दिया है.
ईरान में कई लोगों का मानना है कि लड़कियों के स्कूलों को बंद करने की कोशिश के तहत छात्रों को जानबूझकर ज़हर दिया जा रहा है, जो सितंबर से सरकार विरोधी प्रदर्शनों के केंद्रों में से एक रहा है.
ईरान में लड़कों के लिए अलग स्कूल हैं और लड़कियों के लिए अलग. कुछ छात्रों और अभिभावकों का मानना है कि हाल ही में सरकार विरोधी प्रदर्शनों में भाग लेने के कारण स्कूली छात्राओं को टारगेट किया जा रहा है.
लेकिन बीमार होने के कारणों का अभी तक साफ साफ पता नहीं लगा है.
रॉयल युनाइटेड सर्विसेज़ इंस्टीट्यूट (आरयूएसआई) के एक एसोसिएट फ़ैलो और रासायनिक हथियार विशेषज्ञ डैन कास्ज़ेटा ने कहा, "कथित पदार्थ का पता लगाना अक्सर एकमात्र उपयोगी सबूत होता है, लेकिन यह बेहद मुश्किल हो सकता है".
उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा, "इस तरह के पदार्थ का पता करने के लिए एक्सपोजर के समय आपको वहां पर सही उपकरणों के साथ मौजूद होना पड़ेगा."
उन्होंने कहा कि ईरान में कई गवाहों ने गंध का ज़िक्र किया है. जिसमें कीनू या सड़ी हुई मछली जैसी गंध की बात हो रही है, लेकिन यह भ्रामक भी हो सकता है.
खून जांच से क्या पता चला?
कास्ज़ेटा का कहना है, "ईरान की इन घटनाओं में जिस तरह की गंध का ज़िक्र हो रहा है उसे विशेष रासायनिक खतरों से जोड़ना मुश्किल है."
कुछ वीडियोज़ में लड़कियों को आंसू गैस के बारे में शिकायत करते हुए सुना जा सकता है, जिसका हाल ही में सरकार विरोधी प्रदर्शनों के दौरान इस्तेमाल किया गया है.
कास्ज़ेटा ने कहा कि खराब आंसू गैस के गोले इस तरह की गंध छोड़ सकते हैं. उन्होंने कहा कि खून और पेशाब की जांच करके सही जवाब पाया जा सकता है लेकिन यह अपराधियों को पकड़ने में ज्यादा मदद नहीं कर पाएगा.
उन्होंने कहा, "हजारों केमिकल कमपाउंड ऐसे हैं जिनकी गंध लोगों को बीमार और परेशान कर सकती है."
कास्ज़ेटा के अनुसार ईरान में हुई घटनाएं वैसी ही हैं जैसा साल 2010 में अफगानिस्तान के स्कूलों में कथित जहर देने के मामले सामने आए थे.
उन्होंने कहा कि उस समय अफगानिस्तान में मामलों की ठीक से जांच नहीं हुई जिसके चलते काफी हद तक मामले अनसुलझे ही रहे.
लीड्स विश्वविद्यालय में पर्यावरण टॉक्सिकोलॉजी के एक प्रोफेसर एलेस्टेयर हे ने कुछ ईरानी स्कूली छात्राओं के खूनी जांच के नतीजों की समीक्षा की है.
उन्होंने कहा कि खूनी जांच की जो रिपोर्ट्स आई हैं उनमें कोई टॉक्सिक पदार्थ नहीं पाया गया है. उनके मुताबिक उन्हें ये रिपोर्ट्स ईरान में उनके सूत्रों ने अनौपचारिक रूप से भेजी थीं.
दुनियाभर में संदिग्ध रासायनिक हमलों की जांच करने वाले प्रोफ़ेसर हे ने कहा, "इस वक्त कोई भी चीज़ पक्के तौर पर नहीं कही जा सकती है, क्योंकि इसके लिए कई तरह की चीजों की जांच करने की जरूरत होगी."
हालांकि उन्होंने कीटनाशकों में इस्तेमाल होने वाले नर्व एजेंट या ऑर्गेनोफॉस्फेट जैसे जहर के जिम्मेदार होने की संभावना से इनकार किया है.
प्रोफ़ेसर हे ने कहा, "इन मामलों में महत्वपूर्ण है कि बच्चे 24 घंटे के अंदर ठीक हो गए हैं. वहीं इसके उलट कई तरह के केमिकल में पीड़ित काफी समय बीमार रहते हैं."
उन्होंने कहा कि जांच करने वालों को बहुत ही व्यवस्थित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए और सभी बीमार लोगों की खून और पेशाब जांच के साथ साथ उनका इंटरव्यू भी करना चाहिए.
एक मनोवैज्ञानिक स्रोत?
प्रोफ़ेसर हे और मिस्टर कास्ज़ेटा दोनों ने संभावित जहरीले पदार्थ से इंकार न करते हुए सुझाव दिया कि मनोवैज्ञानिक कारक इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.
किंग्स कॉलेज लंदन में मनोचिकित्सक और महामारी विशेषज्ञ प्रोफेसर साइमन वेस्ली ने कहा कि कई प्रमुख महामारी विज्ञान कारकों ने उन्हें यकीन दिलाया है कि ये जहर की एक श्रृंखला नहीं थी, बल्कि इसके बजाय सामूहिक सामाजिक बीमारी का मामला था. इसमें लक्षण एक ग्रुप में आपस में फैले हैं जिसका कोई साफ बायोमेडिकल कारण नहीं है.
उन्होंने कहा कि देशभर में आ रहे मामलों में मुख्य रूप से स्कूली छात्राएं प्रभावित हो रही हैं, जबकि लड़के और वयस्क इसमें ज्यादा नहीं हैं. उन्होंने कहा कि मामलों में बीमार होने वाले छात्रों का जल्द ठीक होना भी एक महत्वपूर्ण तथ्य है.
प्रोफेसर साइमन वेस्ली का कहना है कि सोशोजेनिक बीमारी के मामलों को मास हिस्टीरिया भी कहा जाता है, जिसमें लक्षण वास्तविक होते हैं, लेकिन यह लक्षण किसी जहर की वजह से नहीं बल्कि एंग्जाइटी के चलते होते हैं.
उन्होंने कहा कि जहर के मामले में शुरुआती चरण बहुत एक जैसे होते हैं. इसमें आपकी धड़कन तेज होने लगती है, आप बेहोश हो सकते हैं, पीले पड़ सकते हैं, आपके पेट में अजीब सी गुड़गुड़ाहट हो सकती है, आप कांपने लग सकते हैं. इस तरह के लक्षण संक्रमण, जहर या सामूहिक तौर पर एंग्जाइटी से हो सकते हैं.
उन्होंने कहा कि यह कोई हैरान करने की बात नहीं है कि सरकार विरोधी प्रदर्शनों में शामिल होने के कारण भी ईरानी स्कूलों में ऐसा हो सकता है.
उन्होंने कहा कि हाल ही के ईरानी मामले, साल 1990 में कोसोवो में अज्ञात बीमारी के प्रकोप और 1986 में कब्जे वाले वेस्ट बैंक के मामलों की याद दिलाते हैं.
प्रो वेस्ली ने कहा कि दोनों में से किसी भी मामले में बायो मेडिकल कारणों का पता नहीं चल पाया था और विशेषज्ञों का मानना है कि वे बड़े पैमाने पर सामाजिक बीमारी का परिणाम थे.
कास्ज़ेटा का कहना है कि हमें इस संभावना को स्वीकार करना होगा कि हम नहीं जान पाएंगे कि वास्तव में क्या हुआ. कई अलग अलग चीजें हुईं और हम उन्हें एक साथ मिला रहे हैं.
रिपोर्टिंग- शायद सरदारिज़ादेह, निको केलबाकियानी, विलियम मैक्लेनन, जाना तौशिंस्की, जोशुआ चीथम, कायलीन डेवलिन और फ़रानक अमिदी
शनिवार को ऑस्ट्रेलिया के ब्रिसबेन शहर में एक प्रमुख हिंदू मंदिर पर खालिस्तान समर्थकों ने नुकसान पहुंचाया है. ऑस्ट्रेलिया में ये हिंदू मंदिरों पर हाल के दिनों में हुए कई 'हमलों' में से एक है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक ये हमला ब्रिस्बेन के श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर पर हुआ है.
ऑस्ट्रेलिया टुडे की वेबसाइट से बात करते हुए मंदिर के अध्यक्ष सतिंदर शुक्ला ने कहा है, "मंदिर के पुजारी और श्रद्धालुओं ने आज सुबह फोन किया और मंदरी की बाहरी दीवार पर हमले के बारे में जानकारी दी."
शुक्ला ने कहा, "हमने क्वींसलैंड पुलिस को जानकारी दे दी है. हमें सुरक्षा का भरोसा दिया गया है."
हिंदू ह्यूमन राइट्स की निदेशक सारा गेट्स का कहना है कि ये ताज़ा हमला हिंदुओं को डराने की एक कोशिश है.
गेट्स ने कहा, "सिख फॉर जस्टिस जो दुनियाभर में कर रही है ये हेट क्राइम उसी के पैटर्न का हिस्सा है. ये स्पष्ट रूप से ऑस्ट्रेलिया के हिंदुओं को डराने की कोशिश है."
गेट्स ने बाद में एक तस्वीर भी ट्विटर पर पोस्ट की है जिसमें हिंदू समुदाय के लोग हमलावरों को चुनौती देते दिख रहे हैं.
हिंदू समुदाय के लोगों ने बाद में मंदिर की दीवार पर बनाए गए हिंदू विरोधी चित्रों को साफ़ कर दिया.
इस इलाक़े में लंबे समय से रह रहे एक हिंदू व्यक्ति ने कहा, "खालिस्तान के समर्थक ऑस्ट्रेलिया के हिंदू समुदाय के डराने की कोशिशें कर रहे हैं, ये हिंदू आस्था के साथ जीने वाले लोगों के लिए बहुत डराने वाला अनुभव है."
पिछले दो महीनों में ऑस्ट्रेलिया में हिंदू मंदिर के साथ छेड़छाड़ की ये चौथी घटना है.
23 जनवरी को मेलबर्न के इस्कान मंदिर की दीवार पर हिंदुस्तान मुर्दाबाद लिख दिया गया था.
भारत सरकार ने ऑस्ट्रेलिया में हिंदू मंदिरों पर हमलों की आलचोना की है और ये मुद्दा ऑस्ट्रेलिया की सरकार के समक्ष भी उठाया है. (bbc.com/hindi)
ऑस्ट्रेलिया में पुलिस ने एक लंबे अंडरकवर ऑपरेशन के बाद क़रीब 70 करोड़ डॉलर (5719 करोड़ भारतीय रुपए) क़ीमत की ड्रग्स को मैक्सिको से ऑस्ट्रेलिया पहुंचने से रोक दिया है.
ये ऑस्ट्रेलिया में ड्रग्स की अब तक की सबसे बड़ी खपत है जिसे पकड़ा गया है.
ऑपरेशन बीच नाम का पुलिस का ये ख़ुफ़िया अभियान पिछले साल नवंबर में शुरू हुआ था जब पुलिस ने दक्षिण अमेरिका के तट पर 2.4 टन ड्रग्स पकड़ी थी.
मैक्सिको के ड्रग तस्कर इस खेप को ऑस्ट्रेलिया भेज रहे थे.
ख़ुफ़िया अभियान में शामिल रहे एक पुलिस अधिकारी ने बताया, “पिछले साल नवंबर में हमें जानकारी मिली थी कि 2.4 टन कोकीन को ऑस्ट्रेलिया में फैलाने के लिए भेजा जा रहा है.”
अधिकारी ने कहा, “अमेरिकी कोस्ट गार्ड की मदद से इक्वाडोर के तट के पास लगभग तीन टन कोकीन के पैकेट को पकड़ा गया.”
इक्वाडोर में कोकीन को पकड़ने के बाद ऑस्ट्रेलियाई पुलिस के अंडरकवर अधिकारियों ने कोकीन की जगह प्लास्टर ऑफ़ पेरिस भर दिया और फिर तट पर उसे लेने आए 12 लोगों को गिरफ़्तार कर लिया. (bbc.com/hindi)
चीन के बैंक आईसीबीसी ने पाकिस्तान के लिए 1.3 अरब डॉलर का रोलओवर क़र्ज़ मंज़ूर किया है. पाकिस्तान के वित्त मंत्री इशाक़ डार ने ट्विटर पर ये जानकारी दी है.
इशाक़ डार के मुताबिक चीन के बैंक ने इस क़र्ज़ में से 50 करोड़ डॉलर पाकिस्तान को मुहैया भी करा दिए हैं.
ये क़र्ज़ पाकिस्तान को तीन किश्तों में मिलेगा.
पाकिस्तान का कहना है कि इससे उसके विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़त होगी. पाकिस्तान ने हाल ही में ये क़र्ज़ चीनी बैंक को लौटाया था.
पाकिस्तान ने चीन से बड़े पैमाने पर क़र्ज़ लिए हैं. पाकिस्तान के लिए गए कुल क़र्ज़ों में से एक तिहाई चीन से मिले हैं.
पाकिस्तान को क़र्ज़ लौटाने में दिक्कतें हो रही हैं जिसकी वजह से देश के मुद्रा भंडार में दिक्कतें आ रही हैं.
ग़ौरतलब है कि पाकिस्तान को मौजूदा वित्तीय वर्ष और अगले दो वित्तीय वर्षों में विदेशी क़र्ज़ों में बड़ी अदायगी करनी है.
मौजूदा वित्तीय वर्ष के बाक़ी महीनों में पाकिस्तान को आठ अरब डॉलर के विदेशी क़र्ज़ों की अदायगी करनी है.
इससे ज़्यादा बड़ी चुनौती अगले दो सालों में पाकिस्तान को 50 अरब डॉलर का विदेशी क़र्ज़ अदा करना है.
इसमें वो क़र्ज़ भी शामिल है जो चीन और चीनी कमर्शियल बैंकों को वापस करना है. (bbc.com/hindi)
पाकिस्तान में ट्रांसजेंडर बनकर भीख मांग रहे एक पूर्व इमाम को गिरफ़्तार कर लिया गया है.
मस्जिद की समिति ने शिकायत में कहा है कि ट्रांसजेंडर बनकर भीख मांग रहा व्यक्ति क़रीब डेढ़ साल तक मस्जिद का सहायक इमाम बनकर रहा है.
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के रावलपिंडी के चक बेली इलाक़े के पुलिस थाने में इस संबंध में मामला भी दर्ज किया गया है.
शिकायत के मुताबिक ट्रांसजेंडर व्यक्ति ने ना सिर्फ़ अपनी लैंगिक पहचान को छुपाया बल्कि मस्जिद के इमाम की हैसियत से कई लोगों के निकाह भी पढ़ाये.
शिकायतकर्ता ने बीबीसी से बात करते हुए कहा है कि मस्जिद की समिति ने लगभग दो साल पहले एकमत से पंजाब से आए इस व्यक्ति को मस्जिद का इमाम नियुक्त किया था.
उसे इसके बदले में 17 हज़ार रुपये महीने का वेतन दिया जाता था.
शिकायतकर्ता का कहना है कि इस दौरान अभियुक्त ने ना सिर्फ़ मस्जिद में नमाज़ पढ़ाई बल्कि जुमे के दिन ख़ुतबे भी पढ़े.
शिकायत में कहा गया है कि डेढ़ साल तक मस्जिद का इमाम बने रहने के बाद अचानक अभियुक्त ने कहा कि उसका सऊदी अरब में काम करने का वीज़ा आ गया है और वो अब विदेश जा रहा है.
मोहम्मद शफ़ीक़ ने बीबीसी को बताया कि इमाम रहते हुए उनका चरित्र बहुत अच्छा था और किसी तरह की कोई शिकायत कभी नहीं आई थी.
मोहल्ले के लोगों ने उनसे मस्जिद छोड़ कर ना जाने की गुज़ारिश की और बदले में वेतन बढ़ाने की पेशकश भी की. जब इमाम नहीं मानें तो पूरे सम्मान के साथ उनकी विदाई की गई.
एफ़आईआर के मुताबिक़ मस्जिद में काम छोड़ने के कुछ महीने बाद स्थानीय लोगों ने उन्हें चक बेली चौक पर ट्रांसजेंडर बनकर भीख मांगते देखा.
जब लोगों ने उनसे पूछा तो उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी ने तलाक़ का मुक़दमा कर दिया है और उससे बचने के लिए वो ट्रांसजेंडर बनकर भीख मांग रहे हैं.
शिकायतकर्ता के मुताबिक इसके बाद पूर्व इमाम को पुलिस को सौंप दिया गया और उसके ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज करवा दिया गया.
इमाम रहते हुए वो दाढ़ी भी रखा करते थे लेकिन जब उन्हें पुलिस को सौंपा गया तो वो शेव किए हुए थे. (bbc.com/hindi)
यूक्रेन की सेना का कहना है कि उसने बीते चौबीस घंटों में डोनेत्स्क इलाक़े में रूस के कई बड़े हमलों को नाकाम किया है.
रूस की सेना का कहना है कि पूर्वी शहर बख़मूट पर उसका क़ब्ज़ा होने ही वाला है. बख़मूट में पिछले कई महीनों से भीषण लड़ाई चल रही है.
रूस की निजी सेना वागनर आर्मी के प्रमुख का कहना है कि बख़मूट को चारों तरफ से घेर लिया गया है और अब उसके पास लड़ने के लिए बहुत संसाधन नहीं रह गए हैं.
वहीं शहर के डिप्टी मेयर ने बीबीसी को बताया है कि यहां गली-गली में रूसी और यूक्रेनी सैनिकों के बीच लड़ाई छिड़ी हुई है.
ओलेक्सेंदर मारशेंको का कहना है कि शहर पर अभी रूस का नियंत्रण नहीं हो पाया है. उनका कहना है कि शहर पर लगातार बमबारी हो रही है.
डिप्टी मेयर मारशेंको ने कहा, “उनका शहर को बचाने का कोई इरादा नहीं है. उनका मक़सद सिर्फ़ लोगों को मारना है और यूक्रेन के लोगों का जनसंहार करना है.”
ब्रितानी रक्षा मंत्रालय का कहना है कि बख़मूट पर दबाव लगातार बढ़ रहा है.
ब्रितानी ख़ुफ़िया रिपोर्टों के मुताबिक वागनर ग्रुप और रूसी सेना बख़मूट शहर में और आगे बढ़ी है, ख़ासकर उत्तरी इलाक़ों में.
अब शहर के यूक्रेन के नियंत्रण वाले इलाक़ों पर तीन तरफ़ से हमले का ख़तरा पैदा हो गया है.
यूक्रेन की ग्राउंड फोर्सेंज के कमांडर कर्नल जनरल ओलेक्सेंदर सीरिस्कयी ने शुक्रवार को बख़मूट का दौरा किया और लड़ाई का नेतृत्व कर रहे कमांडरो से मुलाक़ात की.
इसी बीच शनिवार को रूस के रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगू ने यूक्रेन में रूस के नियंत्रण वाले इलाक़े का दौरा किया है. ये रूस की तरफ़ से दुर्लभ क़दम है.
रूस के सैनिक पिछले छह महीनों से बख़मूट पर क़ब्ज़े की कोशिशें कर रहे हैं.
इसी सप्ताह यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने कहा है कि देश के पूर्वी हिस्से में हालात लगातार मुश्किल होते जा रहे हैं.
रूस के साथ यूक्रेन का युद्ध लगातार तेज़ हो रहा है. ऐसे में यूक्रेन की सबसे बड़ी चिंता उसके लगातार घट रहे हथियार भंडार हैं. (bbc.com/hindi)
विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी WHO ने दुनिया के सभी देशों से कोविड-19 की उत्पत्ति से जुड़ी जानकारियां साझा करने की अपील की है.
डब्लयूएचओ की ये अपील अमेरिका के उस दावे की बात आई है, जिसमें उसने कहा था कि चीनी लैब में कोरोना के पैदा होने की सबसे प्रबल संभावना है.
एफ़बीआई डायरेक्टर क्रिस्टोफर रे ने फॉक्स न्यूज़ को दिए इंटरव्यू में कहा था, "हमने ये पाया है कि वुहान की लैब में हुई एक घटना के बाद कोरोना दुनिया में फैला."
कोरोना का पहला मामला साल 2019 में चीनी शहर वुहान में मिला था.
चीन के अधिकारियों ने एफ़बीआई के आरोपों को ख़ारिज किया था और इसे चीन के ख़िलाफ़ साजिश बताया था.
अब डब्लयूएचओ प्रमुख डॉ टेड्रोस एडनॉम गेब्रियेसस ने कहा, "अगर महामारी की उत्पत्ति को लेकर किसी देश के पास कुछ जानकारी है, तो ये ज़रूरी है कि आप उसे विश्व स्वास्थ्य संगठन और अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक समुदाय के साथ साझा करें."
डॉ टेड्रोस बोले, "महामारी की जड़ पता लगाने की अपनी योजना पर हम अब भी काम कर रहे हैं. हम चीन से अब भी पारदर्शिता के साथ डाटा मुहैया करवाने और जांच से लेकर नतीजों तक को साझा करने की बात कह रहे हैं."
जी-20 देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक के बाद साझा बयान जारी नहीं हो सका था.
ऐसा सदस्य देशों के मतभेदों के कारण हुआ था.
रूस और चीन ने अध्यक्षीय सारांश और आउटकम डॉक्यूमेंट के उन दो पैराग्राफ़ पर आपत्ति जताई थी, जिनमें यूक्रेन में जारी रूसी 'युद्ध' का ज़िक्र किया गया था.
अब चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने प्रेस वार्ता में इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी है.
समाचार एजेंसी एएफ़पी के पूछे सवाल के जवाब में माओ निंग ने कहा, "यूक्रेन के मुद्दे पर चीन का स्टैंड अब भी बदला नहीं है. अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सहयोगी के लिए जी-20 एक अहम समूह है. बाली समिट के दौरान सदस्य देशों के नेताओं ने कहा था कि जी-20 सुरक्षा से जुड़े मुद्दों को सुलझाने का मंच नहीं है."
चीनी प्रवक्ता ने कहा, "चीन का मानना है कि जी-20 देशों के नेताओं को आर्थिक सुधारों, स्थायित्व पर ध्यान देना चाहिए."
माओ निंग बोलीं, "हमने ये भी देखा कि जी-20 सदस्यों के यूक्रेन मुद्दे पर अलग-अलग विचार हैं. हम उम्मीद करते हैं कि जी-20 के सदस्य एक दूसरे की चिंताओं का सम्मान करेंगे और बँटवारे की बजाय एकता का संदेश देंगे."
हालांकि ये पहली बार नहीं है जब साझा बयान पर सहमति नहीं बन पाई है. इससे पहले जी 20 देशों के वित्त मंत्रियों की जो बैठक हुई थी, उसमें भी रूस और चीन की आपत्ति के बाद साझा बयान जारी नहीं किया जा सका था.
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा, "विवाद के कुछ मुद्दे थे. सीधे तौर पर मैं कहूंगा यूक्रेन संघर्ष को लेकर अलग-अलग राय थी. इस पर आम सहमति नहीं बन पाई क्योंकि अलग-अलग पक्षों में इसे लेकर मतभेद था. ग्लोबल साउथ के लिएकरने या मरने की स्थिति हो गई है क्योंकि इन देशों में खाने, तेल और खाद की कीमतें आसमान छू रही हैं. ये गंभीर मुद्दे हैं." (bbc.com/hindi)
अमेरिका ने रूस से युद्ध का सामना कर रहे यूक्रेन की फिर सैन्य मदद की है.
अमेरिका के रक्षा मंत्रालय ने बताया है कि यूक्रेन की 400 मिलियन डॉलर यानी क़रीब 3,200 करोड़ रुपये के सैन्य उपकरण और हथियार भेजे हैं.
रक्षा मंत्रालय ने बताया है कि ये मदद यूक्रेन की रक्षा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए है.
फ़रवरी 2022 में रूस के यूक्रेन पर हमला करने के बाद से अमेरिका ने 30 बिलियन डॉलर से ज़्यादा की मदद भेजी है.
अमेरिका नई मदद के तहत यूक्रेन को आधुनिक रॉकेट सिस्टम, हाएमार्स डिफेन्स सिस्टम के लिए आर्टिलरी राउंड्स मुहैया करवाए हैं. इसमें व्हीकल लॉन्चड ब्रिजेस भी शामिल हैं.(bbc.com/hindi)
वाशिंगटन, 4 मार्च। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन के सीने से पिछले महीने हटाया गया त्वचा का एक घाव कैंसरयुक्त था। उनके डॉक्टर ने शुक्रवार को यह जानकारी दी।
व्हाइट हाउस के डॉक्टर केविन ओ’कोनोर ने बताया कि 16 फरवरी को राष्ट्रपति की शारीरिक जांच के दौरान ‘‘सभी कैंसरयुक्त ऊतक सफलतापूर्वक हटाए गए।’’ उन्होंने बाइडन (80) को व्हाइट हाउस की अपनी जिम्मेदारियां निभाने के लिए पूरी तरह स्वस्थ करार दिया।
डॉक्टर ने बताया कि बाइडन के सीने में जिस जगह से घाव निकाला गया वह पूरी तरह ठीक हो गयी है और राष्ट्रपति त्वचा की नियमित जांच कराते रहेंगे। उनकी छाती से जो घाव निकाला गया वे बेसिल कोशिकाएं थीं।
बेसिल कोशिकाएं कैंसर की सबसे आम और आसानी से ठीक होने वाली कोशिकाएं हैं। ओ’कोनोर ने बताया कि ये अन्य कैंसर की तरह अधिक तेजी से फैलती नहीं हैं लेकिन इनका आकार बड़ा हो सकता है इसलिए इन्हें हटा दिया जाता है। यह कैंसर धूप के संपर्क में आने से फैलता है।
ओ’कोनोर ने कहा कि राष्ट्रपति ने अपनी युवावस्था के दौरान धूप में काफी समय बिताया था।
प्रथम महिला जिल बाइडन ने भी जनवरी में दो बेसिल कोशिकाओं वाले घाव हटवाए थे।
गौरतलब है कि बाइडन के बेटे ब्यू की 2015 में मस्तिष्क के कैंसर की वजह से मौत हो गयी थी। (एपी)
एपी गोला सिम्मी सिम्मी 0403 0826 वाशिंगटन
-मोहम्मद काज़िम
"शारीरिक तौर पर विकलांग बेटा शाहिदा रज़ा की सबसे बड़ी मजबूरी थी. यह उनका अरमान था कि उनका बेटा अपने पैरों पर खड़ा हो जाए और दूसरे बच्चों की तरह खेले कूदे."
यह कहना था बलूचिस्तान की राजधानी क्वेटा की सादिया रज़ा का. सादिया की बहन फ़ुटबॉल और हॉकी की मशहूर खिलाड़ी शाहिदा रज़ा थीं. कुछ दिन पहले इटली में नाव हादसे में उनकी मौत हो गई थी.
बीबीसी से बात करते हुए सादिया रज़ा ने कहा कि शाहिदा बेहद हसमुख थीं, वह सबको हंसाती थीं लेकिन अपने विकलांग बेटे के लिए रोती थीं. उनकी इच्छा थी कि बस उसका इलाज हो जाए.
सादिया कहती हैं, "अब हमारी सबसे दरख़्वास्त है कि उनकी लाश को वापस लाने में हमारी मदद की जाए."
शाहिदा रज़ा के साथ खेलने वाली बलूचिस्तान फ़ुटबॉल टीम की खिलाड़ी अक़्सा ने कहा, "आपने दुनिया में बहुत कम ऐसे खिलाड़ी देखे होंगे जो एक साथ दो खेलों में नाम कमाए, लेकिन शाहिदा ने यह करके दिखाया."
शाहिदा रज़ा का ब्लेज़र
इटली में नाव के हादसे में जीवन गंवाने वाली शाहिदा रज़ा का संबंध क्वेटा के इलाक़े मरी आबाद से था. शाहिदा हज़ारा समुदाय से संबंध रखती थीं.
उनकी दोस्त और नज़दीकी रिश्तेदार समिया मुश्ताक़ कहती हैं कि उनका एक तीन साल का बेटा है लेकिन दुर्भाग्य से वह विकलांग है और वह हादसे के वक़्त उनके साथ नहीं था.
उन्होंने बताया कि शाहिदा ने 2003 से खेलकूद में हिस्सा लेना शुरू किया और इससे जुनून की हद तक प्यार की वजह से अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया था.
अक़्सा ने बताया कि वह और शाहिदा दोनों पाकिस्तान आर्मी की ओर से फ़ुटबॉल खेलती थीं. उनकी गिनती बलूचिस्तान से फ़ुटबॉल की सबसे सीनियर खिलाड़ियों में होती थी.
बलूचिस्तान हॉकी एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी सैयद अमीन ने बताया कि शाहिदा रज़ा ने स्कूल के ज़माने से हॉकी खेलना शुरू किया. जब वह कॉलेज में थीं तो उन्होंने बलूचिस्तान से हॉकी टीम का प्रतिनिधित्व किया.
सैयद अमीन बताते हैं कि चूंकि वह मेहनत करने वाली खिलाड़ी थीं, इसलिए उन्होंने फ़ुटबॉल के मैदान में भी नाम पैदा कर दिया.
उन्होंने हॉकी और फ़ुटबॉल दोनों मैदानों में न सिर्फ़ देश में बलूचिस्तान का प्रतिनिधित्व किया बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपना जौहर दिखाया.
शाहिदा के साथ खेलने वाली एक और खिलाड़ी सोग़रा रजब ने बताया कि शाहिदा औपचारिक तौर पर हज़ारा यूनाइटेड फ़ुटबॉल एकेडमी की खिलाड़ी थीं लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर वह फ़ुटबॉल पाकिस्तान आर्मी के लिए खेलती थीं.
समिया मुश्ताक़ का कहना था कि शाहिदा उन लोगों में से थीं जिनको सही अर्थों में 'सेल्फ़ मेड' इंसान कहा जा सकता है.
"शाहिदा अक्सर यह कहा करती थीं कि मैं जो भी करूंगी अपने बल-बूते पर करूंगी और उन्होंने ऐसा करके दिखाया, उन्होंने न सिर्फ़ अपना नाम रोशन किया बल्कि बलूचिस्तान और देश का नाम भी रोशन किया.
उन्होंने बताया कि शाहिदा ने ईरान, भारत, भूटान और बांग्लादेश समेत कुछ और देशों में बलूचिस्तान और देश का प्रतिनिधित्व किया.
उन्होंने कहा कि शाहिदा परिवार की साहसी महिला थीं और उनसे हमें बहुत उम्मीदें थीं लेकिन उनकी असामयिक मौत ने पूरे परिवार को उजाड़ कर रख दिया.
उन्होंने बताया कि शाहिदा रज़ा का तीन साल का बेटा है जिसे पैरों पर खड़ा देखना उनका सबसे बड़ा मक़सद और मिशन था.
उनका कहना था, "जब बच्चा 40 दिन का था तो उसे बुख़ार आया और बुख़ार के दौरान एक झटके के साथ वह बेहोश हो गया. वह इलाज के लिए बच्चे को कराची ले गईं."
"इलाज के बाद बच्चा होश में तो आ गया लेकिन डॉक्टरों ने कहा कि इस की विकलांगता का इलाज पाकिस्तान में नहीं हो सकता बल्कि इसे विदेश ले जाना होगा."
समिया मुश्ताक़ ने बताया कि डॉक्टरों के अनुसार बच्चे का दिमाग 50 प्रतिशत तक कमज़ोर है और उसकी वजह से उसके लिए चलना फिरना मुश्किल है.
उन्होंने कहा, "एक खिलाड़ी होने के नाते शाहिदा रज़ा चाहती थीं कि उनका बच्चा खेले कूदे लेकिन लकवा मारे जाने के कारण बच्चे के लिए चलना मुश्किल था जिससे वह परेशान रहती थीं और उनकी सारी कोशिश और ख़्वाहिश यही थी कि उनका बच्चा किसी तरह अपने पैरों पर खड़ा हो जाए."
समिया का कहना था कि उन्होंने अपने बच्चे के इलाज के लिए किसी से मदद नहीं मांगी बल्कि खिलाड़ी होने के नाते उनकी जो नौकरी थी, वह वहां से मिलने वाले पैसों को अपने बच्चे के इलाज पर खर्च करती रहीं.
उनका कहना था कि यह बात अफ़सोसजनक है कि सन 2022 में उनकी नौकरी चली गई तो बच्चे के लिए उनकी परेशानियां बहुत ज़्यादा बढ़ गईं और इससे अधिक दुख की बात यह है कि किसी ने उनका साथ नहीं दिया.
वह कहा करती थीं, "मैं चाहती हूं कि मेरा बच्चा एक जगह पर नहीं पड़ा रहे बल्कि वह दूसरे बच्चों की तरह ख़ुश हो और खेले कूदे."
समिया मुश्ताक़ के अनुसार बच्चे के इलाज के लिए कहीं से सहारा न मिलने के बाद उन्होंने विदेश जाने की कोशिश की लेकिन वह इस कोशिश में ज़िंदगी की बाज़ी हार गईं.
उनकी बहन सादिया रज़ा ने बताया कि शाहिदा के बाद वे तीन बहने हैं और उनका एक भाई है, जिसकी उम्र 13 साल है.
उनका कहना था कि शाहिदा उनसे चार साल बड़ी थीं और "वह हमारी बहन ही नहीं, बल्कि दोस्त थीं, और एक हिम्मतवाली इंसान होने के नाते वह हमेशा हमें ख़ुश रखने के लिए हंसाती थीं."
"लेकिन ख़ुद अपने बच्चे के लिए दुखी रहती थीं. उनके विदेश जाने का इसके अलावा कोई मक़सद नहीं था कि वह वहां जाकर कुछ पैसे कमाएं और किसी तरह अपने बच्चे को वहां बुलाकर उसका इलाज करवा सकें."
शाहिदा रज़ा
सादिया रज़ा ने बताया कि शाहिदा तुर्की क़ानूनी तौर पर गई थीं और उनकी वहां से उनके साथ बात भी हुई थी.
उनका कहना था कि वह बिल्कुल अकेले थीं और वह तुर्की से आगे किन लोगों के साथ गईं, इसके बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है लेकिन नाव में सफ़र के दौरान उनकी कॉल आई थी.
"सफ़र के चौथे दिन वह बहुत ख़ुश थीं और यह कह रही थीं कि बस वह थोड़ी देर में पहुंचने वाली हैं. वह इस पर बार-बार अल्लाह का शुक्र अदा कर रही थीं लेकिन उस कॉल के बाद उनसे कोई संपर्क नहीं हो पाया."
उनका कहना था कि शाहिदा की मौत की ख़बर उन्हें इंटरनेट के ज़रिए मिली और उनके अनुसार, "यह एक ऐसी ख़बर थी कि जो हमारे लिए क़यामत से कम नहीं थी."
अक़्सा और सोग़रा रजब की गिनती बलूचिस्तान की उन महिला फ़ुटबॉलरों में होती है जो के शाहिदा रज़ा के साथ कई साल तक साथ-साथ खेलती रहीं हैं.
क्वेटा में न होने की वजह से मैंने उनसे लाहौर में फ़ोन पर बात की तो वह शाहिदा की असामयिक मौत पर उदास थीं और उनका कहना था कि शाहिदा की, जिन्हें प्यार से चिंटू कहा जाता था, इस मौत ने सब खिलाड़ियों और दोस्तों को शोकाकुल करके रख दिया है.
एक सवाल पर अक़्सा का कहना था, "आपको मालूम है कि बलूचिस्तान में स्पोर्ट्स के लिए महिलाओं का घरों से निकलना कितना मुश्किल है."
"जब शाहिदा ने खेलों के मैदान में क़दम रखा तो शुरू के दिनों में उन्होंने अपना हुलिया लड़कों जैसा बनाया था जिसकी वजह से दोस्तों और साथी खिलाड़ियों ने उनको चिंटू के नाम से पुकारना शुरू किया. लेकिन शाहिदा जब सफलता की सीढ़ियां चढ़ने लगीं तो फिर उन्होंने वापस लड़कियों वाला हुलिया अपना लिया."
उनका कहना था, "वह इतनी मेहनत करती थीं कि एक साथ हॉकी और फ़ुटबॉल दोनों की बेहतरीन खिलाड़ी थीं. शायद दुनिया में इस तरह के उदाहरण कम मिलें."
अक़्सा ने कहा, "चिंटू ने जिस तरह देश और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बलूचिस्तान का नाम रोशन किया उस हिसाब से तो वह बलूचिस्तान की गौरव थीं."
सोग़रा रजब ने बताया कि शाहिदा से वह इतनी क़रीब थीं कि उनकी साथी खिलाड़ी नहीं बल्कि उनकी बाजी और आपी (दीदी) थीं.
उनका कहना था कि शाहिदा ने स्पोर्ट्स की दुनिया का मुश्किल सफ़र मरीयाबाद से शुरू किया और बहुत कम समय में न केवल देश बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना लोहा मनवाया.
उन्होंने कहा कि शाहिदा कहा करती थीं कि उनके दौर में बलूचिस्तान में महिलाओं के लिए खेलों के लिए घरों से निकलना बहुत मुश्किल था लेकिन आप लोग तो भाग्यशाली हैं कि अब इतनी सख़्तियां नहीं हैं. (bbc.com/hindi)
नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्पकमल दाहाल 'प्रचंड' ने शुक्रवार को भारत से आयुर्वेद के शोध और अन्वेषण में मदद मांगी है.
सातवीं अंतरराष्ट्रीय आयुर्वेद कांग्रेस के उद्घाटन के दौरान 'प्रचंड' ने इसका ज़िक्र किया.
उन्होंने कहा कि उनकी सरकार आयुर्वेद को लोकप्रिय बनाकर स्वास्थ्य पर्यटन को बढ़ावा देगी. साथ ही ज़रूरी औषधीय जड़ी-बूटियों के आयात और निर्यात को व्यवस्थित करने के लिए निर्णय लेगी.
शुक्रवार से शुरू हुए इस कार्यक्रम में नेपाल में भारत के राजदूत नवीन श्रीवास्तव भी शामिल हुए.
प्रधानमंत्री पुष्पकमल दाहाल ने आयुर्वेद के अनुसंधान और अन्वेषण में नेपाल की मदद करने के लिए भारत के आयुष मंत्रालय से सहयोग मांगा.
उन्होंने कहा कि भारत सरकार ने आयुष मंत्रालय की स्थापना करके आयुर्वेद को प्राथमिकता दी है और इसे बढ़ावा दिया है.
उन्होंने नेपाल की सबसे पुरानी आयुर्वेदिक दवा बनाने वाली कंपनी सिंहदरबार वैद्यखाना (वर्तमान में सिंहदरबार वैद्यखाना विकास समिति) को जीवंत बनाने और इसे राष्ट्रीय गौरव परियोजना के रूप में उन्नत करने का वादा किया.
उन्होंने कहा, ''राष्ट्रीय आयुर्वेद अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र को पूरी तरह संचालित करने और देशी जड़ी-बूटियों पर शोध तेज करने की ज़रूरत को देखते हुए नीतिगत निर्णय लिए जाएंगे.'' (bbc.com/hindi)
बेलारूस में एक कोर्ट ने नोबेल पुरस्कार पाने वाले आलेस बियालियात्स्की को दस साल जेल की सजा सुनाई है.
उन पर बेलारूस में गलत तरीक़े से पैसा लाने और विरोध प्रदर्शनों को वित्तीय मदद देने का आरोप लगाया गया है.
हालांकि, आलेस बियालियात्स्की ने इन आरोपों से इनकार किया है.
आलेस एक लोकतंत्र समर्थक एक्टिविस्ट हैं और उनके एक मानवाधिकार समूह ने साल 2020 में बेलारूस में हुए विरोध प्रदर्शनकारियों को क़ानूनी और वित्तीय मदद दी थी.
उनके डिप्टी वेलियांत्सिन स्टेफ़ानोविच को नौ साल और एक अन्य एक्टिविस्ट उलादज़िमीर लाब्कोविच को सात साल जेल की सजा सुनाई गई है.
बेलारूस से निष्कासित नेता स्वेतलाना तिखानोवस्काया ने इस फ़ैसले को शर्मनाक अन्यायपूर्ण बताया है.
विपक्ष बेलारूस के नेता एलेक्ज़ेंडर लुकाशेंको पर विपक्षियों की आवाज़ दबाने का आरोप लगाता है. (bbc.com/hindi)
ऑस्ट्रेलिया, 3 मार्च । एक माइनिंग प्रोजेक्ट में चीनी निवेश के प्रस्ताव को इनकार करने के बाद ऑस्ट्रेलिया ने कहा है कि विदेश निवेश को मंज़ूरी देने के सभी फ़ैसले राष्ट्रहित को ध्यान में रखते हुए लिए जाते हैं.
हालांकि ऑस्ट्रेलिया ने ये भी कहा है कि वो चीन के साथ व्यापार वार्ताओं को जारी रखना चाहता है.
रेयर अर्थ्स (दुर्लभ मृदा तत्व) का खनन करने वाली एक माइनिंग कंपनी में चीनी के निवेश प्रस्ताव को ऑस्ट्रेलिया ने मना कर दिया था जिस पर बीजिंग ने विरोध दर्ज कराया था.
ऑस्ट्रेलिया के ट्रेजरर जिम काल्मर्स ने बुधवार को कहा कि चीनी निवेश को बढ़ाने के प्रस्ताव को फॉरेन इन्वेस्टमेंट रिव्यू बोर्ड की सलाह के बाद नामंजूर किया गया था.
चीन के माइनिंग इन्वेस्टर युशियाओ वु की सिंगापुर रजिस्टर्ड फर्म युशियाओ फंड ने ऑस्ट्रेलियाई कंपनी नॉर्दर्न मिनरल्स में अपनी हिस्सेदारी 9.92 फीसदी से बढ़ाकर 19.9 फीसदी करने का प्रस्ताव दिया था. जिसे राष्ट्रीय हितों के आधार पर खारिज कर दिया गया.
चीनी अख़बार साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि चीन ने इस फ़ैसले का विरोध किया है.
ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने शुक्रवार को समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, "निवेश के सभी फ़ैसले ऑस्ट्रेलिया के हितों और नियम कायदों को ध्यान में रखते हुए लिए जाते हैं." ऑस्ट्रेलिया में चीनी दूतावास ने फिलहाल इस पर कोई टिप्पणी नहीं की है.
मैक्सिको, 3 मार्च (आईएएनएस)| अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने कहा कि मैक्सिको के ओक्साका में 5.7 तीव्रता का भूकंप आया। अभी कोई जान-मान हानि की खबर नहीं है। समाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, भूकंप का केंद्र 87.729 किमी की गहराई के साथ शुरू में 16.3541 डिग्री उत्तरी अक्षांश और 94.2685 डिग्री पश्चिम देशांतर पर निर्धारित किया गया है।
सियोल, 3 मार्च। दक्षिण कोरिया और अमेरिका की सेना ने शुक्रवार को कहा कि वे इस महीने बड़े पैमाने पर वार्षिक सैन्य अभ्यास करेंगी।
उत्तर कोरिया के इस तरह के अभ्यास के खिलाफ आगाह करने और इसके कड़े परिणाम भुगतने की धमकी देने के बावजूद दोनों सेनाओं ने सैन्य अभ्यास करने का फैसला किया है।
ऐसा संदेह है कि उत्तर कोरिया आगामी दक्षिण कोरियाई-अमेरिकी अभ्यास का उत्तेजक मिसाइल परीक्षणों और उग्र बयानों के जरिये जवाब देगा, क्योंकि वह इन अभ्यासों को आक्रमण का पूर्वाभ्यास बताता है।
दक्षिण कोरिया और अमेरिका की सेना ने एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कहा कि वे अपनी रक्षा और जवाबी कार्रवाई की क्षमताओं को मजबूत करने के लिए 13 से 23 मार्च तक ‘फ्रीडम शील्ड’ अभ्यास (एक कंप्यूटर कमांड आधारित अभ्यास) करेंगी।
दोनों सेनाओं ने कहा कि अभ्यास उत्तर कोरियाई आक्रामकता, हाल के संघर्षों से सीखे गए सबक और बदलते सुरक्षा परिवेश पर केंद्रित होगा।
दक्षिण कोरिया के ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ के प्रवक्ता कर्नल ली सुंग जून ने कहा, ‘‘दक्षिण कोरया-अमेरिका गठबंधन उत्तर कोरियाई सेना द्वारा संभावित उकसावे के खिलाफ तैयार रहने के लिए एफएस (फ्रीडम शील्ड) अभ्यास करेगा।’’
ली ने कहा कि दोनों देश उत्तर कोरियाई के संभावित उकसावे का ‘‘पूरी तरह से’’ जवाब देंगे।
अमेरिकी सेना के प्रवक्ता कर्नल आइजैक के टेलर ने कहा कि दोनों देश अभियानों को अंजाम देने की अपनी क्षमता में सुधार करने के लिए व्यापक स्तर पर ‘वारियर शील्ड एफटीएक्स’ नामक संयुक्त अभ्यास भी करेंगे।
एपी निहारिका पारुल पारुल 0303 1014 सियोल (एपी)
काहिरा, 3 मार्च। मिस्र ने गीजा पिरामिड के अंदर मिले एक लंबे गलियारे का बृहस्पतिवार को अनावरण किया। पिरामिड के उत्तरी हिस्से में यह गलियारा मिला है।
अधिकारियों ने बताया कि लगभग 30 फुट लंबा और छह फुट चौड़ा यह गलियारा प्रसिद्ध पिरामिड के मुख्य द्वार के ऊपर स्थित है।
गलियारे का क्या उपयोग था, इसके बारे में फिलहाल कोई जानकारी नहीं मिल पाई है। हालांकि इस तरह के गलियारे मिलने से अक्सर भविष्य में होने वाली पुरातात्विक खोज में मदद मिलती है।
मिस्र के पुरातत्वविद जाही हवास और देश के पर्यटन मंत्री अहमद ईसा ने पिरामिड में गलियारा मिलने की घोषणा की थी।
अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम ‘स्कैन पिरामिड परियोजना’ के तहत यह गलियारा खोजा गया था। इस कार्यक्रम के तहत प्राचीन संरचना के उन हिस्सों की पड़ताल की गई थी, जहां पर इससे पहले खोजबीन नहीं की गई थी।
मिस्र की राजधानी काहिरा से लगभग 11 मील दूर स्थित पिरामिड को इसके निर्माता के नाम के अनुसार खूफु का पिरामिड भी कहा जाता है। खूफु प्राचीन मिस्र का चौथे राजवंश का दूसरा फिरौन (राजा) था, जिसने 2509 से 2483 ईसा पूर्व तक शासन किया था।
गीजा पिरामिड प्राचीन विश्व का अंतिम अजूबा है, जो अब भी मौजूद है। करीब 4,500 साल पहले शाही कब्रगाह के रूप में इसे बनाया गया था। बड़ी संख्या में पर्यटक इसे देखने आते हैं। (एपी)
इस्लामाबाद, 2 मार्च। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने बृहस्पतिवार को कहा कि पाकिस्तानी लोग सत्ता परिवर्तन की ‘साजिश’ की भारी कीमत चुका रहे हैं।
उन्होंने पूर्व सेना अध्यक्ष कमर जावेद बाजवा पर एक बार फिर कुछ अपराधियों की सत्ता में आने में मदद करने का आरोप लगाया।
पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के अध्यक्ष खान ने सरकार को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि उसने सरकारी कर्ज बढ़ा दिया है और महंगाई बेतहाशा हो गयी है।
अंतरबैंक बाजार में बृहस्पतिवार को पाकिस्तानी रुपया डॉलर के मुकाबले 18.74 अंक गिर गया। विश्लेषकों ने इसके लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के साथ सरकार के गतिरोध को जिम्मेदार ठहराया।
नकदी के संकट से जूझ रहे पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था डांवाडोल स्थिति में है। कुछ सप्ताह पहले यहां विदेशी मुद्रा भंडा 2.9 अरब डॉलर के अत्यंत निचले स्तर पर गिर गया था।
खान ने ट्वीट किया, ‘‘पाकिस्तानी सत्ता परिवर्तन की साजिश की भारी कीमत चुका रहे हैं और पूर्व सेना प्रमुख ने देश पर कुछ अपराधियों को थोप दिया है।’’
खान (70) को अविश्वास प्रस्ताव के जरिये अप्रैल में सत्ता से बेदखल किया गया था और तभी से उनके और बाजवा के बीच संबंधों में तनाव देखा गया है।
खान पहले आरोप लगा चुके हैं कि पूर्व सेना अध्यक्ष उनकी हत्या कराना चाहते थे और देश में आपातकाल थोपना चाहते थे। (भाषा)
यूरोप में अफ्रीका से पहले पहल आए होमो सेपियंस के साथ बड़ा बुरा हुआ था. एक नए अध्ययन में उस हिमयुग के बारे में हैरतअंगेज जानकारियां सामने आई हैं.
धरती का वो इलाका जिसे आज यूरोप के नाम से जाना जाता है, आइस एज या हिम युग के दौरान कोई स्वर्ग नहीं था. उसका ज्यादातर हिस्सा बर्फ से ढका था और विशाल हिमखंडों ने उस पर कब्जा जमाया हुआ था. ज्यादातर हिस्से इंसान के लिए रहने लायक नहीं थे. इसलिए उस दौरान जो मनुष्य यूरोप आए थे, उन्हें भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ा था.
बुधवार को शोधकर्ताओं ने एक नया शोध जारी किया है जिसमें जीनोम डेटा के आधार पर कई नई जानकारियां हासिल हुई हैं. शोधकर्ताओं ने 35 हजार साल से 5 हजार साल पहले के बीच यूरोप कहे जाने वाले क्षेत्र में रहे 356 मनुष्यों के जीनोम का अध्ययन किया है.
शिकारी-संग्रहक की श्रेणी में रखे जाने वाले इन मानवों पर अध्ययन के लिए जिस दौर का इस्तेमाल हुआ है उसमें 25 हजार साल से 19 हजार साल पहले के वे छह हजार वर्ष भी शामिल हैं जबकि हिम युग अपने चरम पर था और पृथ्वी पर सबसे ठंडा मौसम था.
सबसे बड़ा अध्ययन
इस अध्ययन में मिली जानकारियों ने यूरोप की आबादी के बारे में कई अहम जानकारियां उपलब्ध कराई हैं जिनमें उनका रूप-रंग और आवाजाही आदि शामिल हैं. शोध बताता है कि उस वक्त आबादी के कुछ हिस्से यूरोप के गर्म इलाकों की ओर चले गए थे और इसलिए उनका अस्तित्व बना रहा.
इन इलाकों में फ्रांस, स्पेन और पुर्तगाल आदि शामिल हैं. फिर भी बहुत से लोग इतालवी प्रायद्वीप के आसपास रहे और सर्दी की भेंट चढ़ गए. इस अध्ययन से यूरोपीय लोगों की गोरी त्वचा और नीली आंखों के बारे में भी अहम जानकारी मिलती है.
यह रिपोर्ट नेचर पत्रिका में प्रकाशित हुई है. मुख्य शोधकर्ता कोसिमो पोस्थ हैं जो जर्मनी की ट्यूबिनगेन यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हैं. वह कहते हैं, "यूरोप में रहने वाले मनुष्यों का यह अब तक का सबसे बड़ा डेटा है.”
शोध में शामिल एक अन्य वैज्ञानिक चीन की पेकिंग यूनिवर्सिटी के ही यू कहते हैं, "यह हमारे उस ज्ञान को तरोताजा करता है कि हिम युग में वे लोग किस तरह बचे रहे.”
यूरोप में पहले निएंडरथल मनुष्यों का बोलबाला रहा है लेकिन 40 हजार साल पहले वे विलुप्त हो गए. ठीक उसी वक्त मनुष्यों की आधुनिक प्रजाति यानी होमो सेपियंस यूरोप में पहुंचे थे. हालांकि उनका जन्म अफ्रीका में करीब तीन लाख साल पहले हुआ था लेकिन वहां से वे दुनिया के तमाम हिस्सों में फैल गए. यूरोप में उनका आगमन करीब 45 हजार साल पहले हुआ.
कौन बचा, कौन हुआ फना
होमो सेपियंस के अलग-अलग समूह यूरोप में जगह-जगह घूमते रहे. वे मुख्यतया विशाल स्तनधारियों का शिकार करते थे या पेड़-पौधों से आहार लेते थे. उन्होंने मैमथ, राइनो और रेंडियर जैसे जानवरों के शिकार किए.
जब हिम युग का सबसे ठंडा दौर चल रहा था, तब हिमखंडों ने आधे यूरोप को ढक लिया था. उस युग को लास्ट ग्लेशियल मैक्सीमम कहा जाता है. उस युग में जो जमीन हिमखंड से नहीं ढकी थी, वहां भी मिट्टी जम गई थी और टुंड्रा परिस्थितियां पैदा हो गई थीं.
उन हालात में वही मनुष्य बचे रह सके जिन्होंने इबेरियाई प्रायद्वीप और फ्रांस के हिस्सों में शरण ली थी. नए अध्ययन में पता चला है कि इतालवी प्रायद्वीप, जिसे पहले लास्ट ग्लेशियल में मनुष्यों की शरणस्थली माना गया था, वहां के तो सारे निवासी हिम युग में फना हो गए थे.
वरिष्ठ शोधकर्ता योहानेस क्राउजे जर्मनी में माक्स प्लांक इंस्टिट्यूट फॉर इवॉल्यूशनरी एंथ्रोपोलॉजी के निदेशक हैं. क्राउजे कहते हैं कि इतालवी प्रायद्वीप के निवासियों का विलुप्त हो जाना हैरतअंगेज घटना है.
उस इलाके में लोगों का दोबारा प्रवास करीब 19 हजार साल पहले शुरू हुआ जब बाल्कन क्षेत्र के लोग वहां रहने चले गए. करीब 14,500 साल पहले वही लोग यूरोप के बाकी हिस्सों में फैल गए.
यू बताते हैं, "14 हजार से 13 हजार साल पहले तक यूरोप के ज्यादातर हिस्सों में जलवायु गर्म हो गई और यूरोप एक ऐसे जंगल में तब्दील हो गया, जैसा आज दिखाई देता है.”
वीके/एए (रॉयटर्स)
(ललित के. झा)
वाशिंगटन, 2 मार्च। अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी की उम्मीदवार बनने की दौड़ में शामिल भारतीय-अमेरिकी निक्की हेली ने कहा है कि पाकिस्तान में कम से कम एक दर्जन आतंकवादी संगठन मौजूद हैं और इस देश को अमेरिका से मदद नहीं मिलनी चाहिए।
साउथ कैरोलाइना की दो बार गवर्नर रह चुकीं हेली (51) ने साल 2024 में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के लिए पिछले महीने औपचारिक रूप से अपना प्रचार अभियान शुरू किया था।
हेली ने बुधवार को ट्वीट किया, “पाकिस्तान में कम से कम एक दर्जन आतंकवादी संगठन मौजूद हैं। उसे किसी तरह की मदद नहीं मिलनी चाहिए। ”
पिछले कुछ दिन से हेली अमेरिकी विदेश नीति पर बात करती रही हैं और उन्होंने जोर देकर कहा है कि अमेरिका को चीन व रूस के मित्र तथा सहयोगी देशों को कोई वित्तीय सहायता नहीं देनी चाहिए।
इससे पहले, रविवार को ‘न्यूयॉर्क पोस्ट’ के लिए लिखे गए एक लेख में हेली ने कहा था कि वह अमेरिका से नफरत करने वाले चीन और पाकिस्तान जैसे देशों के लिए वित्तीय मदद बंद कर देंगी।
रविवार ‘फॉक्स न्यूज’ को दिए साक्षात्कार में उन्होंने अमेरिका के दो प्रतिद्वंदी देशों रूस और चीन के मित्र व सहयोगी देशों के लिए अमेरिकी मदद बंद करने की बात दोहराई थी। (भाषा)
ग्रीस में हुए ट्रेन हादसे में अब तक 43 लोगों की मौत हो गई है.
हादसे के बाद कुछ जगहों पर विरोध प्रदर्शन भी हुए हैं.
ग्रीस के प्रधानमंत्री क्यारीकोस मित्सोटाकिस ने इस हादसे को मानवीय भूल का नतीजा बताया है.
प्रधानमंत्री ने बुधवार को घटनास्थल का दौरा किया था.
इस हादसे में एक मालगाड़ी और पैसेंजर ट्रेन आपस में टकरा गई थीं. हादसे के बाद ग्रीस के यातायात मंत्री ने इस्तीफ़ा दे दिया है.
स्थानीय स्टेशन मास्टर पर भी मुकदमा दर्ज किया गया है.
बचावदल अभी भी घायलों की तलाश कर रही हैं और कुछ का इलाज अस्पताल में चल रहा है.
हालांकि ये अभी तक साफ़ नहीं हो सका है कि दो ट्रेनें एक वक़्त पर एक ट्रैक पर आमने-सामने कैसे आ गईं.
सिग्नल देने के लिए ज़िम्मेदार स्टेशन मास्टर ने किसी तरह की ग़लती होने की बात को ख़ारिज किया है और हादसे के लिए तकनीकी कारणों को ज़िम्मेदार बताया है.
प्रधानमंत्री क्यारीकोस मित्सोटाकिस ने कहा, ''क़ानून अपना काम करेगा, जो लोग इसके लिए ज़िम्मेदार हैं उनको पकड़ा जाएगा. सरकार आम लोगों के साथ खड़ी है.''
तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने संकेत दिए हैं कि 14 मई को देश में चुनाव हो सकते हैं.
अर्दोआन चुनाव करवाने के अपने पिछले इरादे पर कायम हैं. तुर्की में आए भूकंप के बाद नियत समय पर चुनाव कराने को लेकर कई तरह की आशंकाएं जताई जा रही थीं.
इस भीषण भूकंप में 45 हज़ार लोगों की मौत हुई है.
अर्दोआन ने बुधवार को इस बारे में कहा, ''जो ज़रूरी है, देश 14 मई को वो करेगा. इंशाअल्लाह.''
अर्दोआन ने कहा, ''जहाँ इमारतें गिरी हैं, वहाँ हम और बेहतर इमारतें बनाएंगे. हम लोगों के दिलों को जीतेंगे और आवाम के लिए नया भविष्य रखेंगे.''
ये बातें अर्दोआन ने संसद में अपनी पार्टी के सांसदों से बात करते हुए कही.
तुर्की में आगामी चुनावों को अर्दोआन का सबसे बड़ा राजनीतिक संकट माना जा रहा है.
भूकंप आने के बाद से ही कहा जा रहा था कि चुनाव साल के अंत तक के लिए टाले जा सकते हैं. पहले ये चुनाव तुर्की में 18 जून को होने थे.
भूकंप आने से पहले अर्दोआन की लोकप्रियता में लगातार कमी देखी गई है. इसकी वजह बढ़ती महंगाई, तुर्की की मुद्रा लीरा में गिरावट भी रही.
2018 के राष्ट्रपति चुनाव में 10 भूकंप ग्रस्त प्रांतों में अर्दोआन को 55 फ़ीसदी वोट मिले थे.
सत्ता में अर्दोआन का उदय 20 साल पहले हुआ था.
तत्कालीन सरकार को भी 1999 भूकंप के बाद के हालात, महंगाई और भ्रष्टाचार से निपटने के मुद्दे पर आलोचना का सामना करना पड़ा था. (bbc.com/hindi)
पाकिस्तान में फ़रवरी महीने में महंगाई अपने उच्चतम स्तर 31.5 प्रतिशत पर पहुंच गई . साल 1975 के बाद महंगाई इतने उच्चतम स्तर पर है.
मौजूदा वित्त वर्ष में बीती जनवरी के दौरान महंगाई दर 27.6 प्रतिशत थी. इस वित्त वर्ष के आठ महीनों में देश में औसत महंगाई दर 26.19 प्रतिशत दर्ज की गई थी.
फ़रवरी में सबसे अधिक महंगाई खाने पीने की चीज़ों में देखी गई और खाने की वस्तुओं की क़ीमतों में 45 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई थी.
इससे पहले अप्रैल 1975 में महंगाई दर 29.3 प्रतिशत थी.
उधर बुधवार को पाकिस्तानी रुपये के मुकाबले डॉलर की क़ीमतों में भारी वृद्धि हुई.
इंटरबैंक लेनदेन में 4.61 रुपये की वृद्धि के साथ डॉलर की क़ीमत 266.11 पाकिस्तानी रुपये हो गई.
जबकि खुले बाज़ार में डॉलर की क़ीमत 275 रुपये पहुंच गई है.
करेंसी डीलर्स के अनुसार रुपये के कमज़ोर होने के पीछे पाकिस्तान का आईएमएफ़ के साथ समझौता बड़ा कारण है जिससे बाज़ार में नकारात्मक असर पड़ा है. (bbc.com/hindi)