दयाशंकर मिश्र

साथ का संकट!
24-Jul-2020 8:29 PM
साथ का संकट!

जीवन का सुख एक-दूसरे के साथ संबंध में संतुलन से है। कुछ उसी तरह जैसे हम कोई वाहन चलाते हैं। कार चलाते समय केवल ब्रेक पर पांव रखने से कार आगे नहीं बढ़ेगी। उसी तरह केवल एक्सीलेटर पर सारा जोर देने से कार पर नियंत्रण नहीं रहेगा।

कोरोना ने सेहत पर जितना संकट उत्पन्न किया है, उतना ही इसके कारण घर-परिवार में तनाव गहराया है। कोरोना दृश्य और अदृश्य दोनों रूप में बराबरी से कष्ट दे रहा है। हमें इससे पहले लंबे समय से इस तरह एक साथ, बंद कमरों में रहने का अभ्यास नहीं था। इसलिए, लॉकडाउन के बीच पारिवारिक तनाव, तकरार बढ़ती जा रही है। घर-परिवार में एकदम मामूली चीजों को लेकर तनाव बढ़ रहा है।

पति-पत्नी के बीच होने वाला सामान्य विवाद कलह की सीमा तक बढ़ रहा है। छोटी-छोटी बात पर झगड़े इतने अधिक हो रहे हैं कि साथ रहने की मिन्नतें करने वाले हम सब अब थोड़ी दूरी की प्रार्थना कर रहे हैं। ‘जीवन संवाद’ को इस बारे में बहुत से संदेश मिले हैं। हम बहुत अधिक सुनाने में यकीन रखते हुए ‘सुनने’ से दूर जा रहे हैं। हमारे बहुत से संकट केवल इस बात से बड़े होते जाते हैं कि हम सुनने को एकदम तैयार नहीं होते। हमें एक दूसरे के साथ रहते हुए एक-दूसरे का वैसा ही ख्याल रखना होगा जैसा हम दूर रहने वाले का करते हैं!

अति हर चीज की खराब है। भले ही वह साथ रहने की क्यों न हो। हम अक्सर दूरी का महत्व कम करके देखने लगते हैं। कोरोना ने हमें समझाया कि मनुष्य के लिए रिश्ता और उनके बीच सही तालमेल की कितनी जरूरत है। यह कुछ उसी तरह है, जैसे लॉकडाउन के दौरान हमारा प्रकृति के मामलों में हस्तक्षेप बंद हुआ तो पर्यावरण निखर गया। नदियां, फूल पत्ते, सब में हमने जो अति मिला दी थी। कोरोना ने उसमें अति हटाकर संतुलन कर दिया।


रिश्तों में भी कुछ इसी तरह के संतुलन की जरूरत है। खासकर उन दंपतियों के बीच जिनमें से कोई एक या दोनों कामकाजी हैं। ऑफिस के काम के साथ घर के काम को लेकर वहां तनाव नियमित होता जा रहा है।

दंपतियों के बीच तनाव को लेकर आज आपसे एक छोटी सी कहानी कहता हूं। संभव है, इससे आप मेरी बात सरलता से समझ जाएंगे। एक जेन साधक के पास उनके शिष्य ने अपनी परेशानी रखी। उनका कहना था कि उनकी पत्नी अत्यंत कठोर अनुशासन वाली है। उनके नियम कायदे अत्यधिक सख्त हैं। उसके थोड़ी देर बाद उनकी एक शिष्या ने ऐसी ही कुछ बात अपने पति के बारे में कही। साधक ने दोनों को बुलाया। अगले दिन दोनों को कहा गया कि वे अपनी पत्नी, पति के साथ आएं।

चारों लोगों से बात करते हुए साधक ने अपनी मुट्ठी बंद करते हुए कहा, अगर हाथ हमेशा के लिए ऐसा हो जाए तो आप लोग क्या कहेंगे। सब ने उत्तर दिया, यही कहेंगे कि हाथ खराब हो गया है। मुट्ठी नहीं खुल रही, तो अवश्य ही गंभीर संकट है। उसके बाद साधक ने अपने दोनों हाथ खोलकर फैला दिए। जेन साधक ने कहा, अगर हमेशा के लिए हाथ ऐसा ही हो जाए उंगलियां मुड़ें ही न तो कैसा होगा! इस पर भी चारों का यही उत्तर हुआ तब भी हाथ खराब ही कहा जाएगा।

साधक ने आनंदित होते हुए उंगलियों को खोलते-बंद करते, हवा में लहराते हुए कहा आपको याद रखना होगा, दांपत्य जीवन के सुख, आनंद का रहस्य इसमें ही है। साथ रहते हुए एक दूसरे के लिए बंधन के साथ सहज सम्मान, आज़ादी का इंतजाम करना ही होगा। इसके बिना बात नहीं बनेगी।

जीवन का सुख एक-दूसरे के साथ संबंध में संतुलन से है। कुछ उसी तरह जैसे हम कोई वाहन चलाते हैं। कार चलाते समय केवल ब्रेक पर पांव रखने से कार आगे नहीं बढ़ेगी। उसी तरह केवल एक्सीलेटर पर सारा जोर देने से कार पर नियंत्रण नहीं रहेगा। ब्रेक और एक्सीलेटर दोनों के संतुलन से ही वाहन का गतिमान और सुरक्षित होना संभव है। ठीक इसी तरह हमारा जीवन है। यह केवल रोकने से नहीं चलेगा। उसी तरह गति से भी नहीं चलेगा। यह संतुलन के सौंदर्य से ही सुगंधित होता है।
-दयाशंकर मिश्र

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