दयाशंकर मिश्र

माफी और करुणा !
28-Jul-2020 7:55 PM
माफी और करुणा !

दूसरे को पराजित करने का भाव मनुष्य के मन को 'बदलापुर' बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. जैसे ही इस बदलापुर की जगह करुणा को मिल जाती है हमारा मन दूसरों के प्रति कोमल होने लगता है.

हमारे मन में दूसरों के लिए जब कभी क्षमा का भाव आने लगता है तो उसे रोकने का काम कठोरता करती है. इस कठोरता को हम करुणा की कमी भी कर सकते हैं! इसलिए बहुत जरूरी है कि हम इस बात की ओर निरंतर ध्यान देते रहें कि मन में करुणा की मात्रा कहीं कम तो नहीं पड़ रही.

करुणा, जीवन में उस समय कम नहीं पड़ती दिखती जब हमें एहसास हो जाएगी सामने वाले के पास बहुत थोड़ा समय है. थोड़ा संवेदनशील होकर सोचिए. हम सबके जीवन इतने अधिक अनिश्चित और छोटे हैं कि उस में कठोरता की जगह बहुत कम होनी चाहिए. अगर हम करुणा के कोमल भाव को अपने हृदय में स्थान दे पाते तो संभव है कि समाज की दिशा कुछ और होती. मनुष्यता गहरा विचार है, हमने इसे समझने और जीवन में उतारने की जगह केवल रट लिया है.

ठीक उसी तरह जैसे 'पंचतंत्र ' की एक कहानी में साधु तोतों के समूह को शिकारियों से बचाने के लिए उन्हें सिखाता है, 'शिकारी आता है, जाल फैलाता है, लेकिन हमें जाल में नहीं फंसना है.' तोते जब यह दोहराने लगते हैं, तो साधु को भ्रम हो जाता है कि तोतों ने समझ लिया है कि अब वह शिकारी के जाल में नहीं फंसेंगे. वह उनकी शिक्षा को पर्याप्त समझ कर आगे बढ़ जाता है. लेकिन कुछ ही दिन बाद देखता है कि शिकारी अपना जाल समेट कर जा रहा है. उसमें फंसे तोते रटा हुआ पाठ दोहरा रहे हैं, शिकारी आता है ,जाल फैलाता है लेकिन हमें जाल में नहीं फंसना है!

हमारी स्थिति तोतों से बहुत अलग नहीं. जब बच्चा छोटा होता है तो हम सारी अच्छी बातें उसे सिखाने, समझाने की जगह रटाने में ऊर्जा खर्च करते हैं. नैतिक शिक्षा का जीवन में उपयोग करने की जगह जब से हम उसे रटने लगे, मनुष्यता, उसके साथी संकट की ओर बढ़ने लगे.

मनुष्यता का कटोरा इसलिए हर दिन रिक्त होता जा रहा है क्योंकि उसमें करुणा की कमी होती जा रही है. मन से करुणा का मिटना मनुष्यता का संकुचन है. तोते इसलिए संकट में नहीं पड़े क्योंकि उनके पास शिक्षा नहीं थी. शिक्षा तो थी उनके पास, लेकिन उन्होंने उसे जीवन की जगह पाठ/रटने में खोजा. हम भी यही गलती कर रहे हैं. हमने साक्षरता को ही शिक्षा मान लिया है.

किसी भी आदमी के पढ़े-लिखे होने का अंदाजा उसकी डिग्री देखकर नहीं लगाया जा सकता. साक्षरता अलग बात है और शिक्षा की रोशनी दूसरी बात. मेरे जीवन में दो महिलाएं ऐसी रहीं जिनकी साक्षरता का प्रतिशत शून्य है. मेरी दादी और मां. लेकिन मैं विश्वास पूर्वक कहता हूं कि दोनों ही शिक्षित हैं. शिक्षा और साक्षरता इतनी अलग-अलग बात है.

साक्षरता उस गली का नाम है जिस से गुजर कर आप शिक्षा की ओर थोड़ी आसानी से जा सकते हैं. लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि किसी के शिक्षित होने के लिए साक्षरता अनिवार्य है.

अब बात माफी और करुणा की. अगर हमारी दृष्टि में थोड़ी करुणा की मात्रा बढ़ जाए तो जीवन में तनाव, दुर्भावना और ईर्ष्या का बहुत सारा कचरा स्वयं ही मन से साफ हो जाता है. जैसे ही हमें पता चलता है इस व्यक्ति का जीवन अब सीमित है हमारे मन में उसके लिए करुणा आ जाती है. उसके दोष के प्रति हम विनम्र हो जाते हैं. हम सब का जीवन एक जैसा ही अनिश्चित और छोटा है.

निश्चित तो केवल मृत्यु है. लेकिन इस बात की तो हमने केवल रटा है. समझा नहीं है. अगर समझ गए होते तो हमारे भीतर करुणा अधिक होती. दया, प्रेम और ममता अधिक होती. लेकिन हम संसार में सबसे अधिक निश्चित मृत्यु को ही हमेशा अपने से दूर मानते हैं. इतने दूर कि उसके बारे में कभी विचार तक नहीं करते.

इस पर विचार/चिंतन न करने के कारण दूसरों के प्रति बदला मन में तैरता रहता है. दूसरे को नीचा दिखाने की भावना. दूसरे को पराजित करने का भाव मनुष्य के मन को 'बदलापुर' बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. जैसे ही इस बदलापुर की जगह करुणा को मिल जाती है हमारा मन दूसरों के प्रति कोमल होने लगता है.

जैसे ही मन कोमल होता है, उसमें प्रेम उतरने लगता है. जिसके जीवन में प्रेम के फूल खिल जाते हैं उसके सारे संकट स्वयं हल हो जाते हैं. हमें अपने भीतर प्रेम को बढ़ाना है. करुणा को गहराई देनी है!

-दयाशंकर मिश्र

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