दयाशंकर मिश्र

बंद दरवाजे का भ्रम!
01-Aug-2020 10:29 PM
बंद दरवाजे का भ्रम!

हमारा दिमाग बहुत ही ताकतवर मशीन की तरह काम करता है। हम जैसे-जैसे उसे इनपुट देते हैं उसके आधार पर ही वह आउटपुट देता है। यहां भी चेतन और अवचेतन मन का संबंध महत्वपूर्ण हो जाता है।

कोरोना हम सबके जीवन को ऐसे मोड़ पर ले आया है, जहां पर सबके सामने तरह-तरह की चुनौतियां हैं। कुछ लोगों की दिशा ही बदल गई। बहुत से लोगों का काम हमेशा के लिए बदलने वाला है। बड़ी संख्या में लोगों को अपना काम बदलना पड़ेगा। इस बीच इस बदलाव के कारण मन पर जो दबाव पड़ रहा है, उसके कारण बड़ी संख्या में लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है।

जीवन संवाद के सजग पाठक महेश विश्वकर्मा ने जोधपुर से हमें लिखा है कि पिछले कुछ समय से वह ठीक से सो नहीं पा रहे हैं। उनको नींद नहीं आ रही। दिनभर की चिंताएं रात को मस्तिष्क पर सवार होकर मन में उतर आती हैं। मन में अधूरी चिंताएं हलचल पैदा करती हैं, दिमाग को विश्राम नहीं करने देतीं। यह तब है, जब महेश को अब तक किसी भी तरह का वित्तीय नुकसान नहीं उठाना पड़ा है। असल में वह भविष्य के प्रति बहुत अधिक आशंकित हैं। इसके साथ ही उन्होंने बहुत अधिक आशा बांध रखी है। देश, काल, परिस्थितियों को देखते हुए भी नहीं देखना हमारी बड़ी पुरानी समस्याओं में से एक है।

महेश दुनिया भर से आने वाली खबरों के कारण मानसिक रूप से परेशान हो रहे हैं। हमारा दिमाग बहुत ही ताकतवर मशीन की तरह काम करता है। हम जैसे-जैसे उसे इनपुट देते हैं उसके आधार पर ही वह आउटपुट देता है। यहां भी चेतन और अवचेतन मन का संबंध महत्वपूर्ण हो जाता है। हम अनेक बातों/चीज़ों को अवचेतन मन की ओर धकेलते जाते हैं। अनसुलझी बातें इक_ी होती जाती हैं। जैसे घर में कबाड़ जरूरी चीजें को संभाल कर रखने से शुरू होता है लेकिन धीरे-धीरे सभी बेकार की चीज़ें वहां जमा होती जाती है। अवचेतन मन भी ठीक इसी तरह से काम करता है। इसलिए हमें उसके प्रति सतर्क, जागरूक रहने की जरूरत है।

इसलिए, मन कैसे काम करता है। यह समझना जरूरी है। इससे हम उन रास्तों पर भटकने से बच जाएंगे, जिनका जीवन से कोई सरोकार नहीं होता। एक छोटी सी कहानी कहता हूं आपसे। इससे मेरी बात आप तक अधिक स्पष्टता से पहुंच पाएगी।

राजा के सबसे प्रभावशाली, बुद्धिमान मंत्री का पद रिक्त हुआ। राजा ने मंत्री से कहा- जाने से पहले वह इस पर किसी को नियुक्त करके जाए। प्रतियोगिता हुई, तरह-तरह की परीक्षाओं से अंत में दस उम्मीदवार बचे। अंतिम मुकाबला इन्हीं में से होना था। मंत्री ने सबको बुला कर कहा, एक सप्ताह का समय है। एक सप्ताह के बाद मुख्य परीक्षा होगी। हम देखना चाहते हैं कि आप में से कौन सबसे अधिक सजग दृष्टि रखता है। आप सबको एक बड़े कमरे में बंद किया जाएगा। दरवाजा भीतर से ही बंद होगा। वहां एक ताला लगा होगा। जो दरवाजा खोलकर बाहर आएगा, वही विजेता होगा।

सारे उम्मीदवार इस सूचना के बाद नगर के बाजारों में टहलने निकल गए। ऐसी किताब खोजने में जुट गए, जिनमें तालों के बारे में जानकारी हो। कुछ तो ताला बाजार में जाकर चाबियां भी इक_ी कर लाए। चोरी छुपे चाबियों को अपने कपड़ों में छुपा कर कमरे में परीक्षा के लिए पहुंचे। एक रात पहले सबको उस कमरे में बंद कर दिया गया। जिस दिन उस से निकल कर सीधे राजा के दरबार में पहुंचने का रास्ता खुल जाना था!

रात भर कोई नहीं सोया। केवल एक उम्मीदवार को छोडक़र जो न तो किताब खोजने गया और न ही ताले की चाबी। वह पूरी मौज में विश्राम में रहा। रात भर पूरी शांति से सोया। उसके अलावा बाकी नौ, सारी रात जागते रहे। सोचते रहे कि किस तरह दरवाजा खोला जा सकता है। अगले दिन रात भर के जागे और चिंता में डूबे उम्मीदवार तालाा खोलने में जुट गए। वह जो रात भर सोया था, गहरी शांति में था। उसक भीतर जरा भी बेचैनी नहीं थी। बाकी नौ जल्दबाजी में थे। सबने जाकर कोशिशें शुरू कर दीं। उस विशाल कमरे में कुछ ऊंचाई पर एक खिडक़ी थी। जहां वह बूढ़ा मंत्री शांति से बैठ कर सारे दृश्य देख रहा था।

जब सारे उम्मीदवार अपनी कोशिश में हार गए तो वह युवक शांति से उठा। उसने रात को ही गहराई से कमरे और दरवाजे को समझा था। वह शांति से दरवाजे के पास पहुंचा, और दरवाजे की सिटकनी खोलकर बाहर निकल आया।

बुजुर्ग मंत्री प्रसन्नता से झूमते हुए उसका स्वागत करने दरवाजे की ओर बढ़ गए। असल में ताला तो था लेकिन बाहर निकलने के लिए ताला खोलने की जरूरत नहीं थी। ताले को इस तरह लगाया गया था कि उसे बिना खोले ही बाहर जाना संभव था। लेकिन उसके अतिरिक्त सभी उम्मीदवार अपना सारा ध्यान, ज्ञान और चेतना ताले पर ही केंद्रित किए रहे इसलिए उन्हें ख्याल ही नहीं रहा इसके बिना भी दरवाजा खोला जा सकता है। (hindi.news18.com)
-दयाशंकर मिश्र

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