दयाशंकर मिश्र

मन के कचरे की सफाई !
03-Aug-2020 9:55 PM
मन के कचरे की सफाई !

मन की गांठ, कैंसर से कम खतरनाक नहीं। अगर कैंसर को सही समय पर नहीं पकड़ा जाए, तो जीवन छोटा हो जाता है। ऐसे ही मन की गांठ समय रहते न खोली जाए, तो यह जीवन के चंद्रमा पर पूरी तरह ग्रहण लगा सकती है!

हमारा मन समुद्र से गहरा है! समुद्र की गहराई का अनुमान तट पर खड़े होकर नहीं लग सकता। उसके लिए तो समंदर के भीतर ही प्रवेश करना होता है। मन का स्वभाव भी ऐसा ही है। मन के बारे में हमें इतने तरह के भ्रम हैं कि उन्हें सरलता से पहचानना संभव नहीं। मन हमें बाहर से वैसा ही दिखता है, जैसे समंदर में बर्फ के बड़े-बड़े पहाड़ दूर से दिखते हैं। ऐसा लगता है कि छोटे-मोटे टीले हैं, चट्टाने हैं। जहाज को इनसे खतरा नहीं, लेकिन होता अक्सर इसका उल्टा है। ‘टाइटैनिक’ फिल्म को देखें, तो इसका आधार मन की गलतफहमी है, जहाज के कप्तान की जानकारी में कमी नहीं। ‘टाइटैनिक’ के पास एक से बढक़र एक अनुभवी और गहरी जानकारी रखने वाले विशेषज्ञ थे, लेकिन वह भी समंदर के भीतर बैठे बर्फ के पहाड़ को ठीक से पकड़ नहीं पाए। क्योंकि दूर से वह बहुत छोटा दिख रहा था।

जीवन भी ठीक इसी मिजाज का है। डिप्रेशन (अवसाद) की छोटी-छोटी झलकियां हमें अक्सर दिखाई देती हैं, लेकिन हम इनको गंभीरता से नहीं लेते। हम मन में उगने वाले तनाव के खरपतवार को समय रहते हटाने का काम नहीं कर पाते। इसकी कीमत हमें जीवन की फसल के नुकसान के रूप में चुकानी होती है।
एक छोटी सी कहानी कहता हूं। इससे आपको अपने मन की शक्ति और संभालने में सहजता होगी।
एक पहलवान जिसे हराना अपने समय में बहुत मुश्किल था। अब बुजुर्ग होकर ज़ेन साधक बन गया था। ज़ेन बौद्ध धर्म की ही शाखा है जो जापान तक पहुंचते हुए कुछ परिवर्तन के साथ अधिक परिपक्व और तर्क के साथ नए रूप में करोड़ों लोगों के ज्ञान पाने का माध्?यम बनी।
यह बूढ़ा साधक अब पहलवानी से बहुत दूर आ गया था। उन दिनों एक नौजवान लड़ाके की बड़ी चर्चा थी। वह बहुत तेज़ तर्रार होने के साथ चतुर भी था। उसने अपने समय के सभी बड़े योद्धाओं को हरा दिया था। उसे ख्याल आया कि इस बुजुर्ग को हराकर ही वह सिद्ध माना जाएगा। तो उसने बुजुर्ग को चुनौती दे डाली।

बूढ़े साधक के शिष्यों ने उनको बहुत समझाया। लेकिन वह नहीं माने और युवा पहलवान की चुनौती स्वीकार कर ली। चतुर लड़ाका अपने सामने एक शांत, स्थिर लड़ाके को देखकर समझ गया कि इसकी शक्ति का केंद्र कहीं और है। उसने दूसरा उपाय अपनाया। उसने बूढ़े साधक को अपशब्द कहने आरंभ कर दिए। एक के बाद एक ऐसी अपमानजनक बातें कहीं कि कोई दूसरा होता तो बौखला जाता। लेकिन अनुभवी साधक एकदम शांत खड़ा रहा।

कुछ देर बाद युवा पहलवान बेचैन हो उठा। उसके सारे पैंतरे बेकार हो गए। उसने हार मान ली।

बुजुर्ग साधक से उसके शिष्यों ने पूछा, उसकी बातें सुनकर हमारा खून खौल रहा था। लेकिन आप शांत रहे, और वह हार गया। साधक ने केवल इतना कहा, उसने मेरे बारे में जो कुछ कहा, उनमें से कोई भी बात सच नहीं थी। इसलिए मैंने उनको स्वीकार नहीं किया। और हम, अपने मन पर दूसरों के कचरे को परत दर परत जमाते जाते हैं। मन को अंधेरे की ओर धकेलने वालों से सावधान रखना जरूरी है।

आइए, मन की ओर चलते हैं। चेतना की सारी जड़ें मन की गहराई में हैं। हम जैसे भी हैं, अपने मन के कारण ही हैं। इसलिए इसके काम करने के तरीकों को समझना सबसे पहला कदम है, जीवन की ओर।आइए समझें, दर्द की परतों को किस तरह धीरे-धीरे खोलना है।

मन में बैठे दर्द की परतों को धीरे-धीरे खोलिए। संवाद का मरहम ही इसे ठीक करने में सक्षम है। इसके सरीखा जादू किसी दूसरी दवा में नहीं। जब भी मित्र, परिचित, सहकर्मी, परिजन मन की पीड़ा/तनाव/मन की गांठ लेकर आपके पास आएं, तो उसे ‘हवा’ में मत उड़ाइए। उनको सुनिए, सुनना संकट सुलझाने की पहली किश्त है!

उससे मत कहिए कि अपनी नौकरी की चिंता करो। तुम्हारे ऊपर जिम्मेदारी का बोझ है। बेकार की बातों में उलझे हो! मत कहिए कि वह जिंदगी को समझ नहीं पा रहा है! नहीं समझ रहा, इसीलिए तो आपके पास आया है। मन की गांठ, कैंसर से कम खतरनाक नहीं।

अगर कैंसर को सही समय पर नहीं पकड़ा जाए, तो जीवन छोटा हो जाता है। ऐसे ही मन की गांठ समय रहते न खोली जाए, तो यह जीवन के चंद्रमा पर पूरी तरह ग्रहण लगा सकती है!

जब भी कोई मन की गांठ लेकर आपके समीप आए, उसे उतने ही स्नेह, अनुराग से सुनिए, जिस तरह हमारी जटिल बीमारी का इलाज करने वाला समझदार डॉक्टर हमारी बात सुनता है। अपनी व्यस्तता भूल जाइए जब कोई दोस्त/प्रियजन मन की कुछ बात कहने आया हो। अपने किंतु/ परंतु/ आशंका के बादल एक तरफ रख दीजिए। बस उसे सुनिए।

सुनने पर इतना जोर इसलिए, क्योंकि हम हमेशा जल्दबाजी में रहते हैं। किसी के लिए दो पल का समय भी तन्मयता और सघनता के साथ नहीं दे पाते। हम सुन नहीं पाते। बिना सुने कोई बात कैसे समझी जा सकती है। इससे कोई फर्क ही नहीं पड़ता कि कहने वाला कौन है! हमें तो बस सुनने का अभ्यास करना है। यह दूसरों से अधिक हमारे मन को स्वस्थ रखने के लिए उपयोगी है। यह मन को ठोस, सुंदर और निरोगी बनाता है। (hindi.news18.com)

-दयाशंकर मिश्र

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