दयाशंकर मिश्र

खुद को समझाना!
06-Aug-2020 9:54 PM
खुद को समझाना!

हम अदृश्य खूंटियों से बंधे रहते हैं। खुद को स्वतंत्र करने से डरते रहते हैं। अपने निर्णय लेने का साहस नहीं जुटा पाते! नए रास्तों पर चलने के लिए खुद को समझाना, नई पगडंडियों पर कदम बढ़ाने को मन को सजग करना होगा। मन के साथ होशपूर्ण व्यवहार करने का प्रयास कीजिए। 

सबसे मुश्किल काम है खुद को समझाना। हम स्वयं को इतना अधिक परिपक्व, सही और निर्णायक समझते हैं कि अपने लिए गए फैसले, धारणा से बाहर देख नहीं पाते। इसलिए दुनिया जिस तरफ भागती रहती है, हम भी उसी तरफ दौडऩे लगते हैं। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि हम भीड़ में शामिल हो जाते हैं।

भीड़ में शामिल लोगों का अपना कोई भी नहीं होता, लेकिन हौसला जरूर होता है। पहचाने और पकड़े जाने के डर से भी मुक्ति होती है। इसलिए अधिकांश लोग भीड़ में दिखना चाहते हैं। जिस तरह का व्यवहार सब लोग कर रहे हैं उसी तरह का करते रहने से सुरक्षा का भरोसा बना रहता है।

यह जीवन प्रक्रिया बाहर से देखने में सुरक्षित लगती है लेकिन अंदर हमें कमजोर, साहसहीन और दुखी बनाती जाती है। भेड़ों के बारे में तो हमने बहुत सुना है, अक्सर हम उनका मजाक नहीं उड़ाते हैं क्योंकि भेड़ केवल समूहों का रास्ता अपनाती है। लेकिन लंबे समय तक अगर हम किसी का मजाक उड़ाते रहें, उसके बारे में बात करते रहें तो यह खतरा बना रहता है कि हम भी कहीं उसके जैसे न हो जाएं। भेड़ों के मामले में हमारे साथ बिल्कुल ऐसा ही हो चुका है।

हम तेजी से मनुष्य से भेड़ बनने की ओर बढ़ रहे हैं। हमारी जीवनशैली अपने विवेक पर नहीं दूसरों की नकल करने पर केंद्रित होती जा रही है। हम इसकी पहचान हमारे भीतर फैसले लेने की कम होती क्षमता, प्रेम, उदारता और क्षमा की कमी से कर सकते हैं! एक छोटी सी कहानी आप से कहता हूं। संभव है, इससे आप तक मेरी बात सरलता से पहुंच सके।

एक रात रेगिस्तान की एक टूटी-फूटी सराय में 100 ऊंटों का दल आकर रुका। उनके सरदार ने सराय के मालिक से मिलकर कहा, हमें सुबह जल्दी निकलना है। इसलिए हम शीघ्र ही सोना चाहते हैं। बस एक समस्या आ रही है , हमारे पास निन्यानवे ऊंटों को बांधने के लिए रस्सी है, लेकिन एक ऊंट को बांधने को रस्सी की कमी है। अगर उसको न बांधा गया तो डर है कहीं रात में वह भटक न जाए।

इसलिए, हमारी मदद कीजिए। सराय के मालिक ने कहा हमारे पास इस तरह की कोई रस्सी नहीं है। हां मैं आपको एक उपाय बता सकता हूं, जिससे आपकी समस्या हल हो सकती है। उसने सरदार से कहा, जैसे सब को बांधा है, उस ऊंट को भी उसी तरह बांध दो। सरदार ने थोड़ी नाराजगी से कहा, यही तो समस्या है कि हमारे पास उसे बांधने के लिए रस्सी नहीं है।

सराय के उस बूढ़े मालिक ने कहा, मैं रस्सी की बात नहीं कर रहा हूं। जाओ, उसके गले में हाथ डाल कर उससे कहो तुम्हें बांध दिया है, यहीं बैठे रहना। जैसे दूसरे ऊंटों के लिए जमीन पर खूंटी ठोंककर रस्सी बांधते हो, उनके गले में हाथ फेरकर वैसी ही प्रक्रिया उसके साथ भी करो। और उसकी चिंता भूल जाओ वह कहीं नहीं जाएगा।

सरदार के पास कोई रास्ता नहीं था, सराय के मालिक की उम्र और अनुभव को देखते हुए उसने उसकी बात मान ली और ऐसा ही किया। सुबह जब चलने का वक्त हुआ तो सारे ऊंटों को खोल दिया गया। वह खड़े हो गए। चलने को तैयार। बस वह नहीं उठा, जिसके गले में रस्सी बांधी ही नहीं गई थी। हां, उससे कहा जरूर गया था कि रस्सी बांधी है, कहीं जाना नहीं।

सरदार सराय मालिक के पास पहुंचा और उसने कहा उस ऊंट को आप ही चल कर उठा सकते हैं। कल आप की तरकीब से उसे बांधा गया था, मुझे लगता है, आप जादूगर हैं।

सराय के मालिक ने कहा - लगता है ,आपने उसकी रस्सी खोली नहीं। सरदार ने कहा रस्सी बांधी कब थी। बुजुर्ग ने सरदार की तरफ देखकर हंसते हुए कहा, अरे! खूंटी बांधने का नाटक तो किया था, उसके गले में हाथ डालकर रस्सी होने का एहसास भी दिलाया था। यह सब रस्सी जैसा ही है। जाओ और उस ऊंट के साथ भी वही प्रक्रिया अपनाओ जो दूसरों के साथ अपनाई।

सरदार ने वैसा ही किया और ऊंट उठ खड़ा हुआ! यह केवल ऊंटों की बात नहीं, हमारा मन भी एकदम ऐसा ही है। हम अदृश्य खूंटियों से बंधे रहते हैं। खुद को स्वतंत्र करने से डरते रहते हैं। अपने निर्णय लेने का साहस नहीं जुटा पाते! नए रास्तों पर चलने के लिए खुद को समझाना, नई पगडंडियों पर कदम बढ़ाने को मन को सजग करना होगा। मन के साथ होशपूर्ण व्यवहार करने का प्रयास कीजिए। इससे जीवन में नई ऊर्जा, उत्साह के रंग उभरेंगे।  (hindi.news18.com)
-दयाशंकर मिश्र

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