दयाशंकर मिश्र

ताजा मन !
07-Aug-2020 4:59 PM
 ताजा मन !

दुनिया और हमारे देश में आत्महत्या सबसे तेजी से बढ़ती बीमारी है। यह मानसिक कमजोरी है। मन को न संभाल पाने की कमी है। दुनिया से जूझना उतना मुश्किल है जितना खुद को संभालना है। अपने अस्तित्व को पहचानना सबसे बड़ा काम है।

नवीनता और ताजगी के प्रति उत्सुकता होना बहुत है। हमारे आसपास जो कुछ नया घट रहा होता है, हम उसके प्रति उत्सुक और आकर्षित होते हैं। नई चीज़ों के बारे में जानने के लिए प्रयासरत होना भी इससे जुड़ी हुई बात है। लेकिन यह सब चीज़ें अधिकतर हमारी बाहरी दुनिया के बारे में हैं। भीतर जो कुछ घट रहा है, उसके बारे में हम इतने भी सजग नहीं कि इस बात को समझ पाएं कि मन से भी पुरानी जड़, खरपतवार और घास-फूस साफ करने की जरूरत है। उसके बिना ताज़ा, प्रफुल्लित, आनंदित मन का होना संभव नहीं!

एक किसान नई फसल से पहले जिस तरह अपने खेत को तैयार करता है। अपने मन के प्रति भी हमें वैसे ही सजगता और सावधानी रखनी होगी। भीतर ही भीतर बहुत कुछ टूटता और घुटता रहता है। उस टूटन और खरपतवार के मन के भीतर उगने से हमें निरंतर सजग दृष्टि ही बचा सकती है। यह सब कुछ बहुत आंतरिक है! इतना अधिक आंतरिक कि कई बार हमें इस बात का पता भी नहीं चलता कि हम टूट रहे हैं।

सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के बाद बॉलीवुड के छोटे पर्दे से जुड़े दो कलाकार बाहरी दुनिया के दबाव संभाल पाने में असफल रहे हैं। इनमें से समीर शर्मा ने गुरुवार को ही आत्महत्या की है। उनके कारणों का अभी सामने आना बाकी है।

हमें इस बात को समझना होगा कि जिन चीजों को हम सामान्य मानते जाते हैं, हमारे बीच बढ़ती ही जाती हैं। ठीक उसी तरह जैसे हमने कैंसर को सामान्य मान लिया। मलेरिया को सामान्य मान लिया। हमने उसके होने के कारणों को जड़ से मिटाने पर जोर नहीं दिया। पूरी दुनिया में बीमारियों को व्यवस्थित करने का प्रयास खास तरह के व्यापार से जुड़े लोग समय-समय पर करते रहते हैं। क्योंकि इससे उनके हित पूरे होते हैं।

ऐसा ही कुछ आत्महत्या के साथ हो रहा है। हम उसके कारणों पर तो बात कर लेते हैं लेकिन इसकी जड़ कहां है। इसे रोका किस तरह जाए। इस पर कोई संवाद नहीं। दुनिया और हमारे देश में आत्महत्या सबसे तेजी से बढ़ती बीमारी है। यह मानसिक कमजोरी है। मन को न संभाल पाने की कमी है। दुनिया से जूझना उतना मुश्किल है जितना खुद को संभालना है। अपने अस्तित्व को पहचानना सबसे बड़ा काम है।

मनुष्य अंतरिक्ष तक की यात्राएं आसानी से कर ले रहा है, लेकिन वह अपने ही जटिल मन के भीतर प्रवेश कर पाने में सक्षम नहीं है। अपने ही मन से संवाद टूटा हुआ है। डर लगता है, हमें अपने ही भीतर उतरने में!

छोटी सी कहानी कहता हूं, आपसे। संभव है इससे मेरी बात आपको अधिक स्पष्ट हो सके।

एक राजा के तीन पुत्र थे। तीनों बुद्धिमता और शारीरिक क्षमता, दक्षता की कसौटी पर एक जैसे दिखते थे। राजा की उम्र हो चली थी। उसने तीनों में से किसी एक को अपना उत्तराधिकारी बनाने का फैसला किया था। बहुत से उपाय किए लेकिन वह किसी अंतिम नतीजे पर नहीं पहुंच पा रहा था। एक दिन वह कुछ चिंतित था। उसी समय उसका एक बहुत ही प्रिय सेवक उसके पास आया। जो किसान भी था। बुजुर्ग और अनुभवी भी।

राजा को उसने एक उपाय सुझाया। राजा को बात जंच गई। अगले दिन उसने अपने तीनों बेटों को बुलाया। उन्हें एक-एक बोरी बीज देते हुए कहा। इन्हें संभाल कर रखना। एक वर्ष बाद मैं इसका पूरा हिसाब लूंगा। यह बहुत ही कीमती हैं। इनका कैसे उपयोग करना है, यह सब कुछ तुम तीनों पर निर्भर करता है। जो इसे सबसे अच्छे तरीके से सहेज कर रखेगा, वही राज्य का राजा होगा। अब मैं तुम तीनों से एक बरस बाद ही मिलूंगा।

बड़े बेटे ने तुरंत अपने सलाहकार को बुलाया। सलाहकार ने उसे समझाया अगर महाराज की दृष्टि में यह कीमती बीज हैं, तो इसे संभाल कर अपने खजाने में रख लीजिए। हमें यह भी देखना होगा कि कहीं से कोई नुकसान ना पहुंचा दे। कोई इसे चुरा कर ना ले जाए, इसलिए यह भी जरूरी है कि इसे कड़े पहरे में रखा जाए। बीच-बीच में हम दोनों इसकी सुरक्षा जांचते रहेंगे।

दूसरे नंबर के बेटे ने उन बीजों को अपने हिस्से की दूर-दूर तक फैली जमीनों के एक हिस्से में बारिश के मौसम में खेत में बोने का आदेश दे दिया। उसने यह देखना और जानना जरूरी नहीं समझा कि बीज कहां बोए जा रहे हैं। उसने यह भी सुनिश्चित नहीं किया कि बोलने से पहले खेतों की ठीक तरह से सफाई की जाए। खरपतवार हटाए जाएं। उन खेतों में पिछली फसल के कचरे को ठीक तरह से हटाया जाए। खेतों की रखवाली और दूसरे इंतजाम भी उसने केवल अपने कर्मचारियों के भरोसे छोड़ दिए। वह एक राजकुमार था, जिसके साथ कुछ समय बाद राजा बनने की संभावना थी। इसलिए वह राजकाज के मामलों की जानकारी हासिल करने में पूरा समय लगाता। दिन भर सलाहकारों से घिरा रहता और हमेशा उनके बताए उपायों के अनुसार ही काम करता।

तीसरा और सबसे छोटे बेटा दोनों से अलग था। वह दिए गए काम को पूरी तल्लीनता से करता। उसके लिए कोई काम छोटा बड़ा नहीं था। समय आने पर वह अपने हिस्से की जमीन का दौरा करने खुद गया। वहां उसने जमीनों का देखभाल करने वाले मजदूरों से देर तक बातचीत की। उनसे बीजों की प्रकृति और मिट्टी की पूरी जानकारी ली। अच्छी तरह खेतों की साफ सफाई सुनिश्चित कराई। समय आने पर बीज बोए गए। जब तक फसल तैयार नहीं हुई वह नियमित रूप से उसकी देखभाल का हिस्सा बना। उसने खेत की सफाई, खरपतवार हटाने, घास फूस काटने से लेकर फसल काटने तक में सतत भूमिका निभाई।

फसल काटने में कुछ ही दिन बचे थे कि राजा के यहां से बुलावा आ गया। उन्होंने बेटों से बीजों का हिसाब मांगा। बड़ा बेटा उन्हें अपने खजाने में ले गया और ताले खुलवा कर दिखाया कि बीज यहीं रखे गए थे। बीज खजाने की अलमारियों में नहीं रखे जाते। नियमित समय पर उनकी देखभाल की जरूरत होती है। उसके बीज खराब होना शुरू हो गए थे। खराब होने को ही थे।

उसने दूसरे बेटे की ओर देखा जो उसे अपने साथ उस जमीन पर ले गया जहां वह आज तक कभी गया ही नहीं था। उसका सलाहकार राजा को जानकारी देने का प्रयास कर रहा था। क्योंकि राजकुमार को उस जमीन और फसल के बारे में सीधे कोई जानकारी नहीं थी। उसने पिताजी से बताया कि उसने बीजों को यहां पर बोने का आदेश दिया था। लेकिन बारिश ठीक से न होने, मजदूरों की लापरवाही से फसल ठीक से नहीं हुई। लेकिन राजा देख पा रहा था कि यह उसके दिए हुए बीजों के लिए सही जमीन नहीं थी।

तीसरा बेटा राजा के आदेश की प्रतीक्षा में था। उसने राजा और अपने दो भाइयों को विनम्रता से अपने रथ पर आमंत्रित किया। उसके बाद वह स्वयं उन्हें अपनी जमीन की ओर ले गया। उसने राजा को हर छोटी से छोटी चीज़ की जानकारी दी, खेती-किसानी के बारे में जो उसने स्वयं पिछले एक बरस में हासिल की थी।

लहलहाती फसल देखकर राजा का मन हर्षित हो गया। दूर-दूर तक फसल पर सूर्य की किरणें मानो उस पर अपना आशीर्वाद बरसा रही थीं। राजकुमार ने उसके इस काम में मदद करने वाले सभी लोगों का परिचय राज्य से करवाया। उसने कहा, पिताजी कुछ समय बाद आपके बीज कई गुना होकर आपके पास पहुंच जाएंगे। राजा ने अगले ही दिन घोषणा कर दी थी उनका सबसे छोटा बेटा ही राज्य का नया राजा होगा!

यह कहानी राजा बनने के बारे में नहीं है। उन गुणों के बारे में भी नहीं जो नेतृत्व के लिए होने चाहिए। बल्कि यह उस तैयारी के बारे में है, जो मन को हमेशा करते रहना चाहिए। रिश्तों की नई फसल बोने से पहले, नए रिश्ते में प्रवेश करने से पहले। किसी रिश्ते को खत्म करने के बाद। नाराजगी और गुस्से के तूफान के अपने ऊपर से गुजरने के बाद। हमें अपने मन को ठीक उसी तरह तैयार करना है, जैसे किसान हर फसल के पहले अपने खेतों को तैयार करता है। ऐसे ही हमारा मन हमेशा ताजा, आनंदित और सुगंधित बना रहेगा! (hindi.news18.com)
-दयाशंकर मिश्र

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