दयाशंकर मिश्र

आपके कारण नहीं !
18-Aug-2020 10:25 PM
आपके कारण नहीं !

जीवनदृष्टि जब किसी भी कारण से बाधित हो जाती है तो जिंदगी अधिक दूर तक नहीं देख पाती। प्रेम, स्नेह के होते हुए भी कई बार हम स्वयं को हर चीज के लिए जिम्मेदार मानने लगते हैं।

हर चीज की वजह आप हो, यह जरूरी नहीं। कई बार हम अनजाने में खुद को इतना महत्वपूर्ण मान लेते हैं कि अपने आसपास हो रही हर घटना के लिए खुद को कसूरवार मानने लगते हैं। कोरोना के कारण बहुत सारे लोगों की नौकरियां जा रही हैं। नौकरियां जा रही हैं, क्योंकि कंपनियां अपने खर्चों को संभालने में असमर्थ हैं। आर्थिक और व्यापारिक दुनिया की नींव हिली हुई है। यह सब चीजें आपस में जुड़ी हुई हैं। हम इनमें से किसी को भी प्रभावित करने की स्थिति में नहीं हैं, लेकिन हम इन सबसे प्रभावित होते हैं। इसलिए हम में से बहुत से लोगों की नौकरियों पर संकट है। संकट आ चुका है/आने वाला है।

इसके कारण अच्छे भले हंसते-गाते लोग भी तनाव में दिख रहे हैं। कोरोना के डर ने सबको भयभीत कर दिया है। क्रिकेट में बल्लेबाज तब अक्सर आउट नहीं होता, जब वह लापरवाही दिखाए। बल्कि उसके आउट होने की संभावना ऐसी स्थिति में बढ़ जाती है, जहां वह गेंदबाज को अपने ऊपर हावी हो जाने दे। बल्लेबाज इससे एक ऐसी स्थिति में पहुंच जाता है, जहां उसके पांव चलने बंद हो जाते हैं। फुटवर्क थम जाता है। एक बार गेंदबाज आपको ऐसी स्थिति में ले आए, तो उसके बाद वह सहज ही बल्लेबाज को आउट कर लेता है।

‘जीवन संवाद’ को बड़ी संख्या में आपके ईमेल और संदेश अपने सहकर्मियों के खराब बर्ताव, एक-दूसरे को न समझ पाने और असंभव लक्ष्य के पीछे दौड़ाने जैसी शिकायतें मिल रही हैं। ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि हर कोई अपनी नौकरी को सुरक्षित रखना चाहता है और वह इसके लिए किसी भी कीमत तक जाने को तैयार है।

पंद्रह दिन पहले एक रोज देर शाम जब मैं आपके लिए अगले दिन के लिए ‘जीवन संवाद’ की तैयारी कर रहा था। गुजरात से एक फोन आया। मेरी पूूर्व सहकर्मी की मित्र निहारिका भटनागर एक प्रतिष्ठित आईटी कंपनी को अहमदाबाद में अपनी सेवाएं दे रही हैं। निहारिका ने बताया कि वह चिंता (एंजायटी) से इतनी परेशान हैं कि इससे उबरने के लिए दवाइयों का उपयोग कर रही हैं। डॉक्टर को दिखाया है। मैंने उनसे कहा कि वह अत्यधिक सोच-विचार कर रही हैं? उन्होंने कहा नहीं। लेकिन इसके साथ ही यह भी बताया कि कुछ महीने से नींद गायब है। बेचैनी है। स्वयं के भीतर अपराधबोध है। अपनी ही अपेक्षाओं पर खरा न उतरने से स्वयं के प्रति नाराजगी है। कई बार हम चिंता में तो होते हैं, लेकिन उसे स्वीकार नहीं कर पाते। हम स्वयं ही नहीं समझ पाते कि किस तरह की भ_ी में हमारा मन जला जा रहा है।

डॉक्टर ने उनको शरीर के हिसाब से दवाई दी। लेकिन मेरा सुझाव था कि संकट मन का है। अपने अंतर्मन को नहीं संभाल पाने का है। डॉक्टर को उनसे अधिक संवेदनशीलता से बात करनी चाहिए थी। सबसे महत्वपूर्ण बात थी कि वह स्वयं के प्रति गहरे संदेह से गुजर रही हैं। सारे रास्ते बंद हो गए हैं, जब इस तरह के विचारों ने उनको घेर लिया, तो यहीं से चिंता ने चक्रव्यूह रच लिया। डॉक्टर की दवाइयां निसंदेह रूप से जरूरी हैं लेकिन अभी वह ऐसी स्थिति में हैं, जहां से स्वयं को संभाल सकती हैं।

हमने जीवन के अलग-अलग पक्षों पर बात की। कुछ कहानियां सुनीं। वही जिंदगी की कहानी जो आप जीवन संवाद में पढ़ते, इसके फेसबुक लाइव में सुनते हैं। उनको अपने भीतर झांकने और मन की खरपतवार की सफाई का निवेदन किया। वही निवेदन आपसे करता हूं, स्वयं से संवाद बढ़ाएं। उन रास्तों की ओर न देखें जो बंद हो रहे हैं, उन पगडंडियों को तलाशने की कोशिश करें जो आपकी प्रतीक्षा में हैं।

मुझे यह कहते हुए बेहद संतोष, प्रसन्नता है कि अब उनकी स्थिति बेहतर है। दवाइयां बंद हो गई हैं। उनका संकट सामाजिक, आर्थिक से अधिक मानसिक है। भीतर का संकट है। जीवनदृष्टि जब किसी भी कारण से बाधित हो जाती है तो जिंदगी अधिक दूर तक नहीं देख पाती। प्रेम, स्नेह के होते हुए भी कई बार हम स्वयं को हर चीज के लिए जिम्मेदार मानने लगते हैं। आज जिस दशा में हैं, संभव है वह कल से बेहतर न हो, लेकिन आने वाला कल उससे तो हम परिचित नहीं हैं। इसलिए उसके प्रति मन में निराशा ठीक नहीं। जो चीजें हमारे नियंत्रण से बाहर हैं, उनकी चिंता में घुलना बंद कर दीजिए। हां, जो कर सकते हैं, उसमें पूरा समर्पण दीजिए। इससे जिंदगी की दशा और दिशा दोनों सरलता से बदली जा सकती हैं! (hindi.news18.com)
-दयाशंकर मिश्र

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