दयाशंकर मिश्र

मंजिल !
20-Aug-2020 4:33 PM
मंजिल !

प्रेम और स्नेह मनी प्लांट की तरह बोतल और गमलों में तैयार नहीं होते। उनके लिए आम के वृक्ष लगाने सरीखे उपाय करने होते हैं। जो चीज इतनी आसानी से मिल जाती है, उसका स्वाद और समय दोनों ही बहुत देर तक नहीं टिकता।

आज जीवन संवाद की शुरुआत एक छोटी-सी कहानी से। दो यात्री रास्ता भटक गए। रेगिस्तान में फंस गए। गर्मी, भूख, प्यास से बेहाल हो गए। उनके पास खाने-पीने का जो भी सामान था खत्म हो गया। तीन-चार दिन में लगने लगा कि अब वहां से जीवित लौटना संभव नहीं होगा। जीवन की आशा उनके मन में कमजोर होने लगी। तभी दोनों को एक छोटा-सा पहाड़ नजर आया। पहाड़ के नीचे संकरा रास्ता था। उन्होंने उस दरार से झांककर देखा, तो पाया कि दूसरी तरफ खूबसूरत घाटी थी। साफ पानी का झरना। नरम घास। मीठे फलों से लदे पेड़ थे।

दोनों कड़े परिश्रम के बाद दूसरी ओर उतर गए। मीठा पानी पिया। विश्राम करने लगे। पहले ने कहा अब यहां कुछ दिन आराम से रहूंगा। उसके बाद आगे का सफर तय करूंगा। बड़ी मुश्किल से यहां तक पहुंचे हैं कितना संकरा रास्ता था। दूसरे ने कहा, ठीक है। जैसा तुम चाहो, लेकिन इस रास्ते के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। जिस तरह हम फंसे उसी तरह अनेक लोग भीषण गर्मी में फंसे हैं। उनकी मदद करना भी जरूरी है।

ऐसा कहकर उसने अपने लिए थोड़ा-सा पानी, कुछ फल लिए और वापस मुश्किल रास्ते से दूसरी ओर लौट गया। जिससे वह रेगिस्तान में भटके हुए, बेहाल यात्रियों को इस घाटी का रास्ता बता सके। कुछ ऐसी व्यवस्था कर पाए कि आपदा में फंसे लोग यहां तक आसानी से पहुंच जाएं। रेगिस्तान में संकट में फंसे लोग ऐसी कहानियों से ही जिंदा रहते हैं। मनुष्यता का दीपक लोगों की जान बचाने में वहां प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष दोनों तरह से अपनी भूमिका निभाता है।

रेगिस्तान के बारे में कहा जाता है कि वह अपना व्यवहार कभी नहीं बदलता। हां, रेत के टीले जरूर हवाओं से इधर-उधर होते रहते हैं।

जो अपने जीवन के महत्व को समझते हैं। वह ऐसे ही व्यवहार करते हैं, जिस तरह दूसरे यात्री ने किया। जिंदगी केवल अपने लिए रास्ता बनाने का काम नहीं। जो जीवन से प्रेम करते हैं, वह दूसरों के लिए रास्ता ‘बुनते’ चलते हैं। आखिर हम सब दूसरों के लगाए वृक्षों के ही फल खाते हैं। जीवन में कुछ न कुछ तो ऐसा होना चाहिए, जिसके दरवाजे दूसरों के लिए भी खुलते हों! प्रेम और स्नेह मनी प्लांट की तरह बोतल और गमलों में तैयार नहीं होते। उनके लिए आम के वृक्ष लगाने सरीखे उपाय करने होते हैं

जो चीज इतनी आसानी से मिल जाती है, उसका स्वाद और समय दोनों ही बहुत देर तक नहीं टिकता। इसलिए हमें मुश्किल रास्तों से घबराना बंद करना होगा।

जीवन की दिशा, दशा को वैज्ञानिक तरीके से समझना होगा। विज्ञान पढऩे का अर्थ यह नहीं होता कि हमारा दृष्टिकोण भी वैज्ञानिक हो जाए। इसीलिए आपने देखा होगा कि बहुत से पढ़े-लिखे लोग भी दकियानूसी विचारों से घिरे रहते हैं।

यह समझना जरूरी है कि पढ़े-लिखे का अर्थ क्या है! डिग्री हासिल करने के लिए पढऩा-लिखना कोर्स को याद करके परीक्षा देने जैसा है। इसलिए, किसी की डिग्रियों से उसकी जीवनदृष्टि का अंदाजा लगाने की गलती मत करिए। अगर ऐसा होता तो आपकी दृष्टि में बड़ी-बड़ी नौकरियों में बैठे लोग करुणा, क्षमा, अहिंसा, प्रेम और स्नेह से इतने वंचित नहीं होते। उनके भीतर दूसरों के लिए, संकट में फंसे हुए लोगों के लिए वैसी ही दृष्टि होती जैसी हमारी कहानी के दूसरे यात्री के पास है।

जीवन अलग तरीके के गुणों से चलता है। नौकरी अलग तरह के तरीकों से। हम व्यक्तिगत जिंदगी में जो कुछ भी हैं, हमें कोशिश करनी है कि हम मनुष्य के रूप में अपने परिवार, समाज और दुनिया के लिए कुछ बेहतर लौटा सकें। हमेशा ध्यान रहे कि आप गमलों में मनी प्लांट लगाने पर ध्यान दे रहे हैं, जबकि आपका उद्देश्य आम और पीपल के पौधे लगाना होना चाहिए।
शुभकामना सहित.... 

-दयाशंकर मिश्र

 (hindi.news18.com)

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