दयाशंकर मिश्र

सरलता !
21-Aug-2020 3:12 PM
सरलता !

सरलता का किसी के पहनावे से कोई लेना-देना नहीं। सरलता हमारे चित्त्त में होती है। हृदय में होती है। चाहे आप महल में रहें या झोपड़ी में। सरलता तो दोनों जगह एक जैसा महसूस करने में है।

सुकरात के सरल व्यवहार, जीवन की कहानियां मशहूर हैं। महानतम दार्शनिक, विचारक, सत्यनिष्ठ होने के साथ ही वह सरल व्यवहार के लिए भी उतने ही विख्यात रहे। सरलता का जीवनशैली से दूर जाना आम की मिठास कम होते जाने सरीखा है! आज सुकरात के जीवन से एक कहानी आपसे कहता हूं। सुकरात के समय ही यूनान के दूसरे दार्शनिक डायोजनीज का भी बड़ा नाम था। लेकिन सुकरात की बात ही कुछ और थी। उनके स्वभाव में सरलता बहा करती थी, वह कुछ भी ओढ़ते नहीं थे। जैसे भीतर, वैसे बाहर। जैसे बाहर, वैसे ही भीतर।

दूसरी तरफ डायोजनीज जैसे विद्वान थे, जो सरलता को अभ्यास से साधने की कोशिश कर रहे थे। वह उनके भीतर थी नहीं, लेकिन उन्हें विश्वास था कि अभ्यास से इसे पाया जा सकता है। जबकि सुकरात के साथ सरलता को पाने जैसी कोई बात न थी।

डायोजनीज, खुद को सरल, सादा दिखने के लिए नए-नए कपड़ों को फाडक़र, उनमें चिथड़े लगाकर, उनको फटा-पुराना, मैला दिखाकर सादगी से रहने का अभ्यास करते। यहां तक कि उपहार में मिले कीमती वस्त्रों को भी काटकर, मैला करके, उस पर चिथड़े लगाकर पहनते। इससे कुछ लोग बड़े प्रभावित भी होते। जब उनको लगा कि उनका प्रभाव बढऩे लगा है तो एक दिन वह सुकरात से मिलने पहुंचे।

सुकरात के पास उस समय अनेक लोग बैठे हुए थे। उन सबके बीच ही डायोजनीज ने सुकरात से कहा, ‘तुम्हें सुंदर वस्त्रों में देखकर लगता है तुम कैसे साधु हो। यह तुम्हारी सरलता है! इतनी महंगे वस्त्र।’ ऐसा कहते समय वह भूल रहे थे कि सरलता का किसी के पहनावे से कोई लेना-देना नहीं। सरलता हमारे चित्त्त में होती है। हृदय में होती है। चाहे आप महल में रहें या झोपड़ी में। सरलता तो दोनों जगह एक जैसा महसूस करने में है। एक जैसी नींद आ जाने में है!


सुकरात ने डायोजनीज की बात सुनकर हंसते हुए कहा, ‘हो सकता है मैं सरल न हूं! तुम ठीक कहते हो।’ डायोजनीज ने समझा अपनी बात बन गई। उसने कहा तुम खुद ही यह स्वीकार कर रहे हो! मैंने भी लोगों से यही कहा था कि तुम सरल आदमी नहीं हो। आज तुम खुद भी यह स्वीकार करते हो कि तुम सरल नहीं हो!

सुकरात ने मुस्कराते हुए कहा, ‘तुम कहते हो तो इनकार करने का कोई कारण ही नहीं।’ उनकी बात सुनकर डायोजनीज गदगद हो गया। विजय के एहसास से खिलखिलाने लगा। आज उसे इस बात का बहुत गर्व था कि उसने एक ऐसे व्यक्ति को हरा दिया, जिसकी सरलता की मिसाल यूनान में दी जाती है। वह उतरकर वहां से अपने घर को जा ही रहे थे कि नीचे सुकरात के शिष्य प्लेटो (अफ़लातून) मिल गए।

प्लेटो ने पूछा क्या बात है आज बहुत आनंद में दिख रहे हैं। डायोजनीज ने कहा, ‘बात ही कुछ ऐसी है। आज तुम्हारे गुरु सुकरात ने स्वयं सबके सामने यह स्वीकार किया है कि वह सरल नहीं हैं। उनके जीवन में सरलता नहीं! इसका अर्थ यह है कि यूनान में मैं ही सबसे सरल व्यक्ति हूं। मेरी सरलता को अब कोई चुनौती नहीं!’

प्लेटो उनकी बात सुनने के बाद, मुस्कराते हुए सिर से लेकर पांव तक उनको देखते हुए कहते हैं, ‘यह जो नए कपड़ों में तुमने चिथड़े लगा रखे हैं। जगह-जगह से कपड़ों के छेद तुम्हारे भीतर के अहंकार को छुपाने में असफल हैं। तुम्हारे इन कपड़ों से अहंकार के अलावा और कुछ दिखाई नहीं देता। जबकि तुम दार्शनिक हो। चिंतक हो।’

अपनी बात समझाते हुए प्लेटो ने कहा, ‘असल में तुम समझ ही नहीं पाए। यही तो सरल आदमी का लक्षण है। तुम उससे कहने जाओ कि वह सरल नहीं है और वह सरलता से स्वीकार कर ले। दूसरी ओर तुम हो जो सरलता के ताज के लिए परेशान हो। अब तुम स्वयं सोचो सरलता कहां है! किसके हृदय में है!’

प्लेटो बड़ी सुंदर बात कहते हैं, ‘जहां किसी चीज की चेष्टा/ प्रयास है। वहां उसका होना संभव नहीं। हम जितनी कोशिश करते हैं, किसी चीज को पाने की, वह असल में हमसे उतनी ही दूर होती जाती है’। सरलता का यह प्रसंग ताओ उपनिषद से लिया गया है।

डायोजनीज जो कोशिश बहुत पहले करके हार गए। हम आज भी उससे लडऩे की कोशिश कर रहे हैं। हम भूल रहे हैं कि सरलता के मायने क्या हैं। सरलता साबित करने से नहीं आएगी। यह दूसरों के जैसे दिखने, होने में नहीं है। सरलता बस अपने जैसा होने में है। जैसे भीतर, वैसे बाहर। स्वयं के स्वभाव में होना ही सरलता है। जीवन को कार्बन कॉपी होने से बचा लेने पर ही सरलता के निकट पहुंचना संभव है! (hindi.news18.com)

-दयाशंकर मिश्र

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