दयाशंकर मिश्र

आप सही और दूसरे...
26-Aug-2020 11:19 AM
आप सही और दूसरे...

निर्णय में मतभेद को मनभेद बना लेने से जीवन सरल नहीं होता, बल्कि उलझता जाता है। मन को इस उलझन से बचाना है।


रिश्तों में इन दिनों बढ़ती दरार, दूरी का कारण केवल इंटरनेट, स्मार्टफोन और समय की कमी नहीं है। जब यह तीनों नहीं थे तो इनकी जगह कुछ दूसरी चीजें थीं। हां, इतना जरूर हुआ है कि पहले गुस्सा फेंकना इतना सहज नहीं था। जितना इनके कारण आज हो गया। नाराजगी की पहली परत मन में बनती नहीं कि हम दूसरे की ओर गुस्सा फेंकना शुरू कर देते हैं। हम भूल जाते हैं कि कुछ क्षण/दिन पहले तक सबकुछ ठीक ही था। रिश्तों में बढ़ती दूरियों का कारण अपने को पूरी तरह सही मान लेना और दूसरे को हर हाल में गलत मानते रहना है, जबकि कभी ऐसा भी हो सकता है कि आप तो पूरी तरह सही हों, लेकिन दूसरा गलत न हो।

फैसले लेने की प्रक्रिया में असहमति को हम अक्सर ही नाराजगी मान लेते हैं, जबकि यह बिल्कुल व्यावहारिक नहीं है। लेकिन दूसरों को सलाह देते समय हमारे मन में कहीं न कहीं यह बात तैरती रहती है कि जो हमने उससेे कहा, वह उसके अनुकूल आचरण करे। अगर वह किसी कारण से ऐसा न कर पाए तो हम पूरी जिंदगी यही मानकर चलते हैं कि उसने ठीक नहीं किया, जबकि उसने केवल अपना निर्णय लिया था। निर्णय में मतभेद को मनभेद बना लेने से जीवन सरल नहीं होता, बल्कि उलझता जाता है। मन को इस उलझन से बचाना है।

इसका एक सहज सूत्र है। अपनी स्वतंत्रता को स्वीकार करना और दूसरे की स्वतंत्रता को अपनी मंजूरी देना। हम मानकर चलते हैं कि दूसरों के जीवन के निर्णय सब हमें ही करने हैं। पहलेे माता-पिता बच्चों की पढ़ाई सेे लेकर उनके विवाह तक के निर्णय में अपने अधिकारों का पूरा ‘इस्तेमाल’ करतेे हैं। उसके बाद जब वह जीवन के अंतिम चरण की ओर बढ़ते हैं, तो वह अपने ही बच्चों द्वारा सबसे अधिक उपेक्षित होते हैं। अपनी उपेक्षा को वह बहुत अधिक महत्व देते हैं, लेकिन उस व्यवहार की ओर उनका ध्यान नहीं जाता, जो उन्होंने अपने ही परिजनों के साथ किया था!

अपने एक परिचित परिवार की छोटी-सी कहानी आपसे कहता हूं।

पिता बहुत अधिक अनुशासन प्रिय थे और उन्होंने अपने इकलौतेे बेटे को एक भी निर्णय जीवन में नहींं लेने दिया। हमेशा सारे निर्णय वही करते रहे, क्योंकि उनका मानना था कि बेटे के लिए वही सबसे अच्छे निर्णय कर सकते हैं।

लेकिन जैसे ही बेटे की पढ़ाई पूरी हुई। बाहरी दुनिया से उसका परिचय हुआ। उसने धीरेे-धीरे महसूस किया कि उसकी दुनिया अपने निर्णय से बननी चाहिए। उसने अपने माता-पिता के साथ वही व्यवहार शुरू कर दिया, जो माता-पिता उसके साथ करतेे आए। उसने न केवल अपनी मर्जी से करियर की राह चुनी, बल्कि अपने जीवनसाथी के चयन मेंं भी माता- पिता के पारंपरिक विचार से हटकर अपने विचार को प्राथमिकता दी।

पहले बेटे को लगता क्यों उसके साथ गलत हो रहा है। अब माता-पिता को लग रहा है कि बेटा गलत कर रहा है। हम जीवन में स्वतंत्रता के मूल विचार से जैसेे-जैसे दूर होते जाते हैं जीवन के सौंदर्य से दूर निकलते जाते हैं। इसलिए बहुत जरूरी है कि हम इस बात को समझें कि जीवन के अलग-अलग समय में विभिन्न जिम्मेदारियों को निभाते समय दूसरे को ‘जगह’ देना बहुत जरूरी है। सबसे अधिक जरूरी। इससे जीवन में प्रेम रूपी ऑक्सीजन की संतुलित मात्रा बनी रहती है।

अगली बार किसी को गलत साबित करने से पहले यह जरूर सोचिएगा कि कुछ गलती तो आपकी भी है! जीवन इतना भी मुश्किल नहीं कि अपने किए गए फैसले पर पुनर्विचार न किया जा सके। गलती स्वीकार करने, दूसरों केे लिए हृदय बड़ा रखने से जीवन में केवल प्रेम ही बढ़ता है। (hindi.news18)

-दयाशंकर मिश्र

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news