बलौदा बाजार
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
कसडोल, 22 सितंबर। विकास खण्ड क्षेत्र कसडोल के असिंचित क्षेत्रों के जल्द पकने वाली हल्के किस्म के खरीफ फसल धान की बालियां निकल गई है। किंतु क्षेत्र के वनक्षेत्रों के किसान हाथियों के आतंक से खेतों की रखवाली नहीं करने मजबूर हैं। ऐसे हालात में प्रभावित ग्रामों के किसानों को वन्य प्राणी के साथ साथ हाथियों से फसल नुकसानी का अंदेशा बना हुआ है ।
कसडोल विकास खण्ड का 230 ग्रामों में आधे से ज्यादा गांव वन्य प्राणी और हाथियों के नुकसानी की दहशत से प्रभावित है ।इसमें अभ्यारण्य परिक्षेत्र बार नवापारा कोठारी वन विकास निगम रवान लवन देवपुर सोनाखान अर्जुनी परिक्षेत्र के अंतर्गत 62 वन ग्रामों के अलावा वनों से सटे राजस्व ग्राम शामिल हैं। खेतों में फसल तैयार होने के बाद फसल असुरक्षा लोगों के लिए परेशानी की वजह बना हुआ है ।
क्षेत्र में 18 हाथियों का कोठारी जंगल बना स्थाई आवास
वन परिक्षेत्र अधिकारी ने पुष्टि की है कि कोठारी के जंगल में 3 दंतैल तथा बच्चों सहित 18 हाथियों ने विगत तीन चार साल से स्थाई आवास बना लिया है, जो सौ सवा सौ ग्रामों में आतंक मचाया हुआ है ।सभी परिक्षेत्र आपस में सटे हुए हैं । जिसके कारण अन्य परिक्षेत्रों के ग्रामों की खेतों में पहुंच कर फसल को बर्बाद करने की शिकायत मिलनें लगी है । हाथियों का दल टुकड़ों में अलग अलग विचरण करने की शिकायत मिली है। सोनाखान परिक्षेत्र के सितबाबा जलप्रपात में जहां 4 हाथियों ने पिछले माह दस्तक दी थी। वहीं ग्राम हटौद के पास 5 हाथियों नें हाल ही में दो दिनों तक डेरा डाले रहा । इसी तरह सप्ताह पूर्व कोठारी के जंगल से बारनवापारा जंगल के रास्ते लवन परिक्षेत्र के जाम सैहाभाठा के गांव से सटे खेतों को नुकसान किया है ।
जल्द पकने वाली धान जंगल क्षेत्र में अधिक
कसडोल तहसील क्षेत्र के पठारी इलाको में अधिकता है । इसमें सोनाखान वीरनारायण पुर नवानगांव कंजिया देवतराई चिखली अर्जुनी महराजी के 30 गांव राजादेवरी थरगांव चांदन बिलारी बया के 42 गांव तथा बार नवापारा कोठारी वन परिक्षेत्र के 22 गांव में अधिक है ।
ज्ञात हो कि इस क्षेत्र में वन्य प्राणी तथा हाथियों से ज्यादा प्रभावित हैं ।पिछले तीन चार साल से जबसे हाथियों ने इस जंगल को स्थाई निवास बनाया है किसानों को फसल सुरक्षा भगवान भरोसे हो रही है । हाथियों का दल कब और किस समय दस्तक दे दे किसान डरे हुए हैं । वन विभाग अमला मुनादी कराने और चंद मुआवजा देने में ही जिम्मेदारी का निर्वहन कर रहे हैं । जबकि प्रभावित क्षेत्र के किसान स्थाई समाधान की आवश्यकता महसूस कर रहे हैं ।ताकि जान माल की सुरक्षा हो सके ।