रायगढ़

कंपनी के डस्ट से बंजर हो रही जमीन
12-Mar-2022 6:59 PM
कंपनी के डस्ट से बंजर हो रही जमीन

किसान अब खेत की जगह प्लांट में कर रहे मजदूरी

औद्योगिक प्रदूषण से पौधों में फूल लगते ही गिर जाते हैं

नरेश शर्मा

रायगढ़, 12 मार्च (‘छत्तीसगढ़’)।  रायगढ़ शहर से महज 8 किलोमीटर दूर एक गांव था लाखा, केलो नदी के किनारे बसे इस गांव की हरियाली पहले कभी देखते ही बनती थी, यहां के किसानों के खेतों में धान की फसल लहलहाती रहते थी, वहीं हरी सब्जिया भी अधिक मात्रा में उगाई जाती थी, जिसे वहां के किसान रायगढ़ के बाजारों में सब्जियां बेच कर अपनी आजीविका चलाते आ रहे थे।

कहते हैं जहां भी विकास की नींव रखी जाती है, वहां विनाश भी होता है। ठीक इसी तरह की कहानी है ग्राम लाखा की। केलो डेम के निर्माण की वजह से पुर्नवास नीति के तहत ग्राम लाखा को उठा कर दूसरी जगह सन् 2013 में पूर्ण रूप से विस्थापित कर दिया गया। जहां पहले कभी हरियाली थी, वहां आज लोगों के घरों में पेड़ पौधों में काली परत बिखरी हुई दिखाई देता है। बंजर जमीन में खेती नहीं हो पाने के कारण गांव के ग्रामीण किसान अपना व अपने परिवार का पेट भरने कंपनी में मजदूरी करने पर विवश हो गए हैं।
केलो डेम के निर्माण के बाद ग्राम लाखा को नई जगह बसाया गया और इस नई जगह में लाखा के अलावा गेरवानी और उजलपुर के कुछ परिवारों को मिलाकर यहां की जनसंख्या करीब 1181 के करीब है।
जिला प्रशासन के द्वारा पुर्नवास नीति के तहत नई जगह में विस्थापन करते हुए तकरीबन 400 प्लाट काट कर डूबान में आने वाले लाखा के अलावा गेरवानी, उजलपुर के कुछ लोगों को बसाया है। इसके बदले पीडि़तों को डूबान में आने वाले घरों का नाप जोख कर उसके हिसाब से मुआवजा जरूर दिया गया, परंतु नये घर बनाने में मुआवजे की पूरी राशि खर्च हो गई।

गांव के बुजुर्ग ने बताया कि नई जगह गांव बसने से पीछे बहुत कुछ छूट गया और आज बस पुरानी यादें ही जिंदा है। केलो डेम निर्माण से पहले गांव के लगभग 40 प्रतिशत किसान धान की फसल के अलावा हरी सब्जियां लगाकर अपने व अपने परिवार का भरण पोषण करते थे। पहले वाली जगह में खेती करने के लिए खेत के अलावा सब्जियां के लिए पानी भरपूर मात्रा मिल जाया करता था। साथ ही साथ प्रदूषण मुक्त वातावरण में प्राकृतिक सौंदर्य में ग्रामीण निवासी करते थे।

परंतु आज जिस जगह लाखा को बसाया गया है वहां न तो ग्रामीणों के पास खेती करने के लिए खेत है और न ही सब्जियां लगाने उपजाउ जमीन, यहां के रहवासियों को कुछ मिला है तो वह औद्योगिक प्रदूषण। ग्रामीण घर के चंद टुकड़ों में सब्जी लगाते जरूर हैं, लेकिन उन पौधों में फूल लगते ही वह मर जाते हैं या फिर बहुत कम मात्रा में खाने मात्रा में सब्जियां ग्रामीणों को उपलब्ध हो पाती है।

ग्रामीणों ने बताया कि एक समय ऐसा था जब लाखा में मूली, लाल भाजी, टमाटर, गोभी, करेला के अलावा अन्य सब्ज्यिां बहुत अधिक मात्रा में उगती थी। जिसे यहां के किसान रायगढ़ के बेचकर अपनी आजीविका चलाते आ रहे थे। परंतु वर्तमान परिदृश्य में सब कुछ छिन जाने की स्थिति में यहां के किसान अपना घर चलाने प्लांट में मजदूर बनकर रह गए हैं।

गांव के सरपंच देवानंद भुईयां ने बताया कि लाखा के ग्रामीण पहले खेती पर आश्रित थे। नई जगह इस गांव का जहां पर विस्थापन किया गया है वहां की जमीन खेती लायक नहीं है। जिससे यहां के ग्रामीण कंपनी में मजदूरी करने जाते हैं। थोड़ी बहुत जमीन है जो कंपनी के डस्ट की वजह से बंजर होते जा रही है। साथ ही यहां के रहवासी अपना आशियाना बेचकर दूसरी पलायन करते जा रहे हैं।

मात्र एक अधूरे तालाब के सहारे गांव
ग्राम लाखा के रहवासियों को पानी की समस्या से ज्यादा जूझना पड़ता है। 1 हजार से अधिक जनसंख्या वाले इस गांव में पिछले 8 से मात्र 1 ही तालाब का आधा अधूरा निर्माण कराया गया था। जो इस वर्ष पूर्ण होनें के कगार पर है। इस वजह से गांव में बत्ती गुल होनें पर या फिर कोई आयोजनों के दौरान लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

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