कोण्डागांव
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
कोण्डागांव, 3 मई। मनरेगा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के अंतर्गत छत्तीसगढ़ में मनरेगाकर्मियों की कांग्रेस के जनघोषणा में नियमितिकरण के वादे को पूरा करने को लेकर चल रही हड़ताल से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को एक बड़ी चोट पहुंची है। ऐसा हम इसलिए कह रहे है कि, राज्यभर में पिछले वित्तीय वर्ष 21 से 22 अप्रैल माह में मनरेगा अंतर्गत मजदुरो को कुल 2 करोड़ रोजगार दिवस सृजित थे। वहीं इस वित्तीय वर्ष 22 से 23 के अप्रैल माह में मात्र 21000 मानव दिवस सृजित हुए हैं। हालाकि महासंघ के डेलिगेशन टीम ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मुलाकात की है। किंतु समाधान नहीं निकल पाया। प्रशासन की बेरुखी से मजदूर बेहाल, पलायन को मजबूर विश्वस्त सूत्रों की माने तो मनरेगा कर्मियों के हड़ताल को लेकर प्रशासन का रवैया शुरुआती दौर से बेरुखी पूर्ण रहा है।
जिसका परिणाम यह हुआ कि की हड़ताल में बैठे कर्मियों की समस्याओं का समाधान होने की बजाए आंदोलन और भी बढ़ता ही गया। अब कर्मी एकजुट होकर अपनी मांगों पर अडिग है। और और ठोस समाधान पर ही आंदोलन समाप्त होने की बात कर रहे हैं बहरहाल हड़ताल का नतीजा जो भी हो पर विगत एक माह में प्रदेश के मनरेगा मजदूरों के खाते में जो बड़ी राशि रोजगार के एवज में जानी थी वह नहीं जा पाई। इन्हीं सभी कारणों से मजदूर पलायन को मजबूर है। जिला कोंडागांव की बात करें तो वित्तीय वर्ष 2021-22 में माह अप्रैल में कुल 330023 मानव दिवस सृजित हुआ था। लेकिन वर्तमान में वित्तीय वर्ष 22 से 23 में अभी तक 0 मानव दिवस सृजित है। आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ मनरेगा कर्मचारी महासंघ के आह्वाहन पर प्रदेशभर में ग्राम पंचायत से लेकर राज्य स्तर तक के मनरेगाकर्मी जिसमें अधिकारी, कर्मचारी व रोजगार सहायक शामिल है। 4 अप्रैल से हड़ताल पर हैं। आज इनकी हड़ताल को 29 दिन पूरे हो चुके हैं। इस प्रकार कोरोना काल में ग्रामीण अर्थव्यस्था के लिए संजीवनी बनी मनरेगा हड़ताल के कारण निष्प्रभावी हो गई है। जिसका सीधा असर ग्रामीण जन जीवन पर पड़ रहा है।