रायपुर

अतीत को मत देखों वर्तमान को सुधारों भविष्य संवर जाएगा-आचार्य विशुद्ध सागर महाराज
01-Aug-2022 9:11 PM
अतीत को मत देखों वर्तमान को सुधारों भविष्य  संवर जाएगा-आचार्य विशुद्ध सागर महाराज

रायपुर, 1 अगस्त। सन्मति नगर फाफाडीह में जारी चातुर्मासिक प्रवचनमाला में शुक्रवार को आचार्य विशुद्ध सागर महाराज ने कहा कि व्यक्ति अतीत में जाकर कभी-कभी स्वयं को भूल जाता है और भविष्य में जाकर अपने आपको पूरा ही भूल जाता है। 

जो बीत चुका उसका पछतावा करने से कोई लाभ नहीं,जो नहीं है उसके बारे में सोचने से भी कोई फायदा नहीं। अतीत को छोडक़र अपने वर्तमान को सुधारों,भविष्य संवर जाएगा। न भूत में, न भविष्य में जाओ,अपने वर्तमान के पास आओ।

आचार्यश्री ने कहा कि विपरीत ज्ञानी की अपेक्षा अज्ञानी रहना श्रेष्ठ है। अज्ञानी कम से कम यह कहेगा मैं कुछ जानता नहीं,लेकिन विपरीत ज्ञानी जानता भी नहीं है और मानता भी नहीं है। समाज, राष्ट्र और विश्व को जिसने तोड़ा है वह अज्ञानी नहीं है। 

अज्ञानी होने पर भी जानने की बात कहता है ऐसे विपरीत ज्ञानी एकांतवादियों ने सब नष्ट कर दिया।

अखंडता और विशालता चाहिए तो सम्यक ज्ञान चाहिए
आचार्यश्री ने कहा कि एकाकी पुरुष अपने शरीर की रक्षा नहीं कर सकता। जो अपनी रक्षा नहीं कर सकता वह घर की रक्षा क्या करेगा। जिसको घर संभालने की योग्यता नहीं वह अपने भावों को क्या संभाल पाएगा। 

स्वयं को समझाने के लिए शब्द नहीं भाव चाहिए। अपने भावों से मिलिए परिणामों को संभालना कठिन है। ऐसी जगत में कोई रस्सी और खूंटा नहीं जिसके माध्यम से आप अपने परिणामों को बांध सको। वचनों को संभालना भी कठिन है। ऐसे लोग इस पृथ्वी पर हैं जिनके पास कोई काम नहीं है,लेकिन मौन नहीं है। सिर्फ बोलने के कारण अखंडता को तार-तार कर दिया।
 एक शब्द लाखों प्राणियों को अमृत प्रदान कर देता है, एक शब्द लाखों प्राणियों की जान ले लेता है। मौन रहना भी सीखें।

जैसी दृष्टि होगी,वैसा कार्य 

होगा-मुनिश्री निर्ग्रन्थ सागर
मुनिश्री निर्ग्रन्थ सागर ने कहा कि अनेक भव निकल गए लेकिन जीव इस संसार के भव से नहीं निकल पाया। निरंतर इस संसार के सुखों में लिप्त रहकर अपने शुद्ध स्वरूप को भी नहीं पहचान सका। 

वस्तुओं में राग,द्वेष किया लेकिन वस्तु स्वभाव को समझा नहीं पाया। जो इस धरा पर वस्तु के स्वभाव को समझ लेगा अपने परिणामों की निर्मलता को धारण कर इस संसार रूपी समुद्र से पार हो जाएगा। 

वस्तु न राग रूप है, न ही द्वेष रूप है। वस्तु तो जो है सो है। 
इस नर देह से भोगों का भोग कर दुर्गति को प्राप्त कर सकते हो और चाहो तो इसी देह से योग को धारण कर नर देह को भिन्न कर सकते हो। जैसी दृष्टि होगी,वैसा कार्य होगा। वस्तु का मिलना कठिन नहीं वस्तु का सम्यक प्रयोग करना कठिन है। 

गुरुभक्तों ने आचार्यश्री का पाद प्रक्षालन कर लिया आशीर्वाद 
विशुद्ध वर्षा योग समिति के अध्यक्ष प्रदीप पाटनी ने बताया कि आज मंगलाचरण माधुरी बगड़ा हैदराबाद ने किया। दीपप्रज्वलन,आचार्यश्री का पाद प्रक्षालन व श्रीफल अर्पण विवेक गंगवाल,अशोक बाकलीवाल,अमित पाटनी कोलकाता,नांदेड़ दिगंबर जैन समाज व नमोकार तीर्थ चातुर्मास समिति के अध्यक्ष विजय कासलीवाल, कमल कुमार धनपत कटक, भारतीय जैन संघटना छत्तीसगढ़ के प्रदेश अध्यक्ष पंकज चोपड़ा,महामंत्री मनोज लुंकड़, कोषाध्यक्ष मनोज कोठारी,किशोर बरडिया,लोकेश चंद्रकांत जी, जल संरक्षण अभियान के चेयरमैन विजय गंगवाल,प्रदेश उपाध्यक्ष उत्तम बरडिया,प्रफुल्ल संचेती दुर्ग,रायपुर अध्यक्ष मंजू टाटिया, सचिव वैभव गोलछा, प्रदीप सांखला,राजेंद्र पारख एवं अन्य पदाधिकारियों ने कर आचार्यश्री से आशीर्वाद लिया। कार्यक्रम का संचालन अरविंद जैन और दिनेश काला ने किया। जिनवाणी मां की स्तुति का पाठ पंडित राकेश जी भिंड ने किया। कार्यक्रम के अंत में सकल दिगंबर जैन समाज रायपुर सहित उपस्थित सभी गुरु भक्तों ने आचार्यश्री को अर्घ्य समर्पण कर आशीर्वाद लिया। 

29 जुलाई शुक्रवार को आचार्यश्री विशुध्द सागर महाराज को नवधा भक्ति से पडग़ाहन कर आहार दान देने का सौभाग्य प्रदीप जैन विश्व परिवार,नरेन्द्र जी गुरुकृपा परिवार एवं डॉक्टर अमित जैन परिवार रायपुर वालों को प्राप्त हुआ।
 

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