रायपुर

सभी इंद्रियों को वश में करने रसना इंद्रिय पर नियंत्रण आवश्यक-आचार्य विशुद्ध सागर
03-Aug-2022 7:42 PM
सभी इंद्रियों को वश में करने रसना इंद्रिय पर नियंत्रण आवश्यक-आचार्य विशुद्ध सागर

रायपुर, 3 अगस्त। सन्मति नगर फाफाडीह में जारी चातुर्मासिक प्रवचन माला में आचार्य विशुद्ध सागर महाराज ने बुधवार को कहा कि सारी इंद्रियों को रसना इंद्रिय रसपान दे रही है। आज व्यक्ति का रसना इंद्रिय पर नियंत्रण नहीं है।

जिसका रसना इंद्रिय पर नियंत्रण नहीं है उसका अन्य इंद्रियों पर नियंत्रण नहीं हो सकता। सभी इंद्रियों को वश में करने के लिए रसना इंद्रिय पर नियंत्रण आवश्यक है। मुख्य बिंदु रसना इंद्रिय है।

आचार्यश्री ने कहा कि इंद्रियों में रसना इंद्रिय, व्रतों में ब्रह्मचर्य व्रत और कर्मों में मोहनी कर्म को जिसने जीत लिया वह विश्व का प्रभु है।जिनका इन पर नियंत्रण नहीं है वह जीव चलते ही गिर जाएगा।

मोक्ष मार्ग पर चलना चाहते हो चटपटे-तामसिक भोजन से बचना होगा। जिसके पेट में कुछ नहीं है वह शांति से बैठा रहता है। जितने प्रकार के उपद्रव हैं सब पेट भरे होने पर होते हैं।

आचार्यश्री ने कहा कि कठिन मार्ग पर चलने वाले और बहुमूल्य वस्तु को खरीदने वाले कम हैं। जैसे कठिन मार्ग पर चलना है तो बाहुबल चाहिए और बहुमूल्य वस्तु को खरीदना है तो धनबल चाहिए। वैसे ही कठिन शास्त्रों को समझना है तो बुद्धिबल चाहिए और मोक्ष मार्ग पर चलने के लिए निज पर नियंत्रण चाहिए।

आचार्यश्री ने कहा कि जो दूसरे के चित से हरे गए हैं,जो दूसरे के चितों का हरण कर रहे हैं, वे कर्महरण नहीं कर पाएंगे। जो स्वयं टपक रहा है वह दूसरे को क्या उठा पाएगा। जो स्वयं पतीत हो रहा है वह दूसरे को सहारा कैसे दे पाएगा।

जो स्वयं विषय कषायों में डूबा हुआ है वह दूसरों को संयम कैसे दे पाएगा। जो स्वयं कर्मों में फंसा हुआ है वह दूसरों को कैसे कर्मों से निकाल पाएगा। वही आपको सहारा दे पाएगा जो मजबूत है।विद्वान का कभी अपमान न करना।

जिसकी विराट सोच है, विराट मस्तिष्क है वह किसी विद्या वाले का अपमान नहीं करेगा।

मुनिश्री यतीन्द्र सागर ने कहा कि हमने सारा जीवन उन वस्तुओं के पीछे बर्बाद कर दिया जिनका हमसे कोई लेना-देना नहीं था। हमें वह कार्य नहीं करना चाहिए जिसके माध्यम से इस संसार में पुन: भटकना पड़े। इस भव में ऐसा कार्य करें जिससे भवों-भवों का नाश हो जाए।

प्रत्येक वस्तु सामान्य विशेषात्मक होती है। वस्तु में सामान्य गुण भी होता है और विशेष गुण भी होता है। वस्तु की पहचान लक्षण से होती है। जब तक भेद करना नहीं जानोगे तब तक वस्तु के स्वरूप को नहीं जान पाओगे। उस तत्वज्ञान से परिचित होना होगा जिसके माध्यम से किसी वस्तु को दूसरे से भिन्न करके बताया जा सके। भेद करने वाले हेतु को लक्षण कहते हैं। तत्व ज्ञान के अभाव के कारण ही व्यक्ति संसार में भटक रहा है। तत्वज्ञान हो गया होता तो अनेक भव का नाश हो गया होता।

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