रायपुर

मति,श्रीमती व श्री मिलना और इन्हें संभालना कठिन है-आचार्य श्री विशुद्ध सागर महाराज
04-Aug-2022 2:17 PM
मति,श्रीमती व श्री मिलना और इन्हें संभालना कठिन है-आचार्य श्री विशुद्ध सागर महाराज

रायपुर, 4 अगस्त। सन्मति नगर फाफाडीह में ससंघ विराजित आचार्य श्री विशुद्ध सागर महाराज जी ने मंगल देशना में कहा कि मति,श्रीमती और श्री के पास पहुंचना कठिन है। यदि यह आपके पास आ जाए तो संभालने की बुद्धि चाहिए। कितनों के पास श्रीमती आई लेकिन संभाल नहीं पाए।

संसार में आज बहुत तलाक हो रहे हैं। श्रीमती तो मिली लेकिन संभालने की मति नहीं थी और घर में श्री नहीं थी। इन तीनों को संभालने की क्षमता चाहिए। आपको खानदानी संपत्ति मिल गई लेकिन संभालने की मति नहीं है तो सब व्यर्थ कर दोगे।

आचार्यश्री ने कहा कि ज्ञान बढ़ाना है तो शीतल रहो शीतल जीयो और शीतल चखो। यदि मानते हो कि बादाम खाने से बुद्धि बढ़ती है तो विश्वास रखें शांत रहने से भी बुद्धि बढ़ती है।

रुखा सूखा खाने से बुद्धि घटती है तो रुखा सूखा भाव रखने से भी बुद्धि घटती है। जिसको किसी से प्रेम और प्रीति नहीं वे रुखा सूखा जीवन जी रहे, तनाव में जीवन जी रहे तो बुद्धि कैसे बढ़ेगी।

आचार्यश्री ने कहा कि जो समय आपको जिस कार्य के लिए दिया गया है उस समय पर करोगे तो लोग प्रसन्न रहेंगे। समय को इधर-उधर करोगे तो आपके अहिंसा व्रत में दोष आ जाएगा। घर में पालतू जानवरों को भी समय पर भोजन नहीं दिया तो अहिंसा व्रत में दोष आ जाएगा। जो अपने अधीनस्थ नौकर चाकर को भी समय पर भोजन नहीं करने दे तो  अहिंसा व्रत में दोष आ जाएगा। किसी से दबाव में काम मत करवाओ।

 केवल अपने अधिकार का ध्यान मत रखो ,अपने कर्तव्यों का भी बोध होना चाहिए। जो केवल अधिकार की बात करते हैं वे घर, संस्थान, देश को भी नहीं चला पाते।

आचार्यश्री ने कहा कि अपरिचित आदमी का दिया भोजन नहीं खाना चाहिए। कब कोई क्या खिला और क्या पिला दे और तुम्हारा सब कुछ लूट कर ले जाए। योगी,सम्राट, धनपति और मंत्री इनको संभल कर रहना चाहिए। इनके पास 24 घंटे शत्रु रहते हैं। जितने तुम प्रसिद्ध होते जाओगे सम्मान देने वालों की संख्या भी बढ़ेगी और अंदर ही अंदर बैर रखने वाले भी बढ़ेंगे। लोगों को दूर से देखकर पहचानना सीखो। आज नहीं समझोगे तो कोई भी गर्दन पकड़ लेगा।

मुनिश्री सुव्रत सागर जी ने कहा कि संसार में मनुष्य राग की रस्सी में बंधा हुआ है, इसलिए आगे नहीं बढ़ पाता है। आदमी में वह शक्ति है जो साधना कर स्वर्ग में नरेंद्र पद को प्राप्त कर सकता है, लेकिन वह राग की रस्सी में बंधा हुआ है।

नर होकर नारायण बन सकता है वह नरक में चला जाता है, यह राग की दशा है। राग की एक कणिका जीवन भर की साधना को भंग कर देती है। इस संसार में अनर्थ की जड़ राग है। राग और द्वेष से ही जीव इस संसार में अनादि काल से भ्रमण कर रहा है।

राग से मुक्ति का का मार्ग वितराग दशा है। इस संसार में जितने भी अनर्थ हो रहे और जितने भी अनर्थ होंगे उसका मूल कारण राग और द्वेष परिणाम है। राग और द्वेष भला करने वाला नहीं है। जहां राग होता है वहां द्वेष निश्चित रूप से होता है। राग के परिणाम से ही जीव कितने सारे अनर्थ कर रहा है। इस राग की आग से बचने का प्रयास करो।

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