रायपुर

दुनिया के मेंबर बनने से पहले अपने घर के मेंबर बन जाइए-राष्ट्र संत ललितप्रभजी
04-Aug-2022 2:20 PM
 दुनिया के मेंबर बनने से पहले अपने घर के मेंबर बन जाइए-राष्ट्र संत ललितप्रभजी

रायपुर, 4 अगस्त। ‘‘परिवार की खुशहाली और पारिवारिक रिश्तों में प्रेम बनाए रखने के लिए हमेशा परिवार के बड़े-बुुुजुर्गों की सेवा-सुश्रुषा से उनके लाड़-प्यार को निभा लो। एक दिन बुढ़ापा सबको आना है, आज आपने बड़ों की सेवा नहीं की तो कल आपके बच्चे भी वैसा ही करेंगे।

वे किस्मत वाले होते हैं जिनके घर में बड़े-बुजुर्गों का साया होता है। अगर आप अपने घर वालों से वास्तव में प्रेम करते हैं तो याद रखना कभी भी बड़ों का दिल मत दुखाना। वैसे ही घर के बड़े-बुजुर्ग भी अपना फर्ज निभाएं कि घर पर आई बहु को बेटी से भी ज्यादा प्रेम दें।

पराए घर की बेटी को घर पर लाना बहुत सरल है पर उसके दिल को जीतना यह बहुत बड़ी साधना है। हर सासु मां अपनी बहु को इतना प्रेम दे कि वह अपना पीहर भूल जाएं। और बहुएं अपनी सासु मां को इतना सम्मान दें कि वे बहु ही नहीं बेटी बन जाएं।

घर में जब प्रेम का ऐसा माहौल होता है तब घर स्वर्ग बनता है, जहां रिश्तों में माधुर्य, प्रेम पलता है। राज्य शहर व समाज से पहले परिवार है। समाज के मेम्बर बाद में बन जाना, अगर बनना है तो सबसे पहले अपने घर के मेम्बर बनकर घर के बड़े-बुजुर्गों को सम्हाल लेना।’’

ये प्रेरक उद्गार राष्ट्रसंत महोपाध्याय श्रीललितप्रभ सागरजी महाराज ने आउटडोर स्टेडियम बूढ़ापारा में जारी दिव्य सत्संग जीने की कला के अंतर्गत परिवार सप्ताह के तृतीय दिवस बुधवार को ‘परिवार की खुशहाली के 5 टिप्स’ विषय पर व्यक्त किए। राष्ट:संत चंद्रप्रभजी रचित भावपूर्ण भजन ‘स्वर्ग सरीखा लगे सुनहरा, मंदिर सा सुंदर हो, ऐसा अपना घर हो...’ का गायन करते हुए संतप्रवर ने श्रद्धालुओं के मानस-पटल पर घर को स्वर्ग कैसे बनाया जा सकता है, इसकी सुंदर तस्वीर उकेरी।

संतश्री ने कहा कि पहले मकान कच्चे होते थे और रिश्ते सच्चे होते थे। पहले लोगों के मकान छोटे होते थे पर उनमें रहने वालों के दिल बहुत बड़े होते थे। पहले नौ-नौ, दस-दस भाइयों का परिवार साथ-साथ रहा करता था।

आज मकान जरूर बड़े गए पर लोगों के दिल छोटे हो गए हैं। जिंदगी में रिश्तों के प्रेम को निभाने का तरीका यही है, अगर कोई कडुवी बात आ जाए तो उसे सूखी मिट्टी पर लिख दो, ताकि हवा का झोंका आए तो वह उड़ जाए और अगर कोई मीठी बात हो जाए तो उसे पत्थर पर लिख दो ताकि वह जिंदगी भर याद रहे। परिवार का निर्माण कभी खूबसूरत कोठियों से नहीं होता। याद रखना अमीरों की जिंदगी में भी कभी झंझटें आती हैं और गरीबों की जिंदगी में भी कभी खुशहाली के दिन आते हैं। जरूरी नहीं है कि कोठियों में स्वर्ग पलता है, कई बार हमने कोठियों में नर्क को पलते देखा है और झोपडिय़ों में स्वर्ग को पलते देखा है। खूबसूरत बाथरूम से आदमी का घर स्वर्ग नहीं बन जाता, घर को स्वर्ग बनाने के लिए आदमी को बड़ा सेक्रिफाइस, बड़ा त्याग करना पड़ता है। उन्होंने कहा- आज नीम के पेड़ तो कम हो गए पर आज आदमी की जबान की कडुवाहट बढ़ गई और जबान की मिठास खत्म हो गई, परिणाम परिवार का माधुर्य और प्रेम भी जाता रहा।

घर को मानिए मंदिर

संतश्री ने घर को स्वर्ग बनाने के पांच टिप्स प्रदान किए। उनमें पहला है- अपने घर को घर ही नहीं अपितु घर को मंदिर मानिए। मंदिर में हम सब प्रेम-आनंदपूर्वक सत्कर्म किया करते हैं तब हम घर में सब मिल-जुलकर रहेंगे। जीरों की कीमत तभी बढ़ती है जब उसके साथ इक्का जुड़ जाये और परिवार की कीमत तभी होती है जब सब एक हो जाएं। भले आज रोजगार-व्यवसाय आदि कारणों से बाहर अलग-अलग रहना पड़े पर जब भी एक होने का वक्त आए तो सब एक हो जाएं। जिंदगी में रिश्तों को कभी मत तोडऩा। क्योंकि गंदा पानी पीने के काम तो नहीं आता पर कभी आग लग जाए तो उस आग को बुझाने जरूर काम आता है। घर को स्वर्ग बनाने का दूसरा टिप्स है- घर में कभी तनाव और टूटन को मत रखो। यदि आप मुखिया हैं तो उसके कारण तक जाकर उसका निवारण अवश्य करो। क्योंकि घर में बड़ा वो नहीं होता जो उम्र में बड़ा होता है, घर में बड़ा वो भी नहीं होता जो पैसों में बड़ा होता है, घर में बड़ा वो होता है जो बड़प्पन दिखाने तैयार होता है। तीसरा टिप्स है- घर में शब्दों का इस्तेमाल बहुत सावधानी और विवेक से करें। चौथा है- जब भी बोलें लाड़ की भाषा बोलें, राड़ की भाषा न बोलें। घर ही नहीं अपने व्यवहार जगत में भी जब भी बोलें सम्मानपूर्वक और सम्मानसूचक बोलें। मीठी-मधुर जबान अगर पराए भी बोलने जग जाए तो वे एक दिन अपने हो जाएंगे और अपने भी यदि टेढ़ी जबान बोलना शुरू कर दें तो वे भी एक दिन पराए हो जाएंगे। अगर आपकी आंखें सुंदर हैं तो दुनिया आपको सुंदर बोलेगी और अगर आपकी जबान सुंदर है तो आप दुनिया को सुंदर बोलेंगे। घर को स्वर्ग सा बनाने पांचवा टिप्स है- हम सब यह संकल्प लें कि मैं कभी भी स्वार्थी नहीं बनुंगा अपितु सारथी बनुंगा। जिनके साथ रहते हो उनके काम आने वाले बनो। दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं- काम निकालने वाले लोग और काम आने वाले लोग। पर सोचो याद कौन किए जाते हैं। दुनिया में टक्कर मारने वाले कभी याद नहीं किए जाते और काम बनाने वाले, टिप अर्थात् योगदान देने वाले याद किए जाते हैं।

परिवार को दें ट्रस्ट, टाइम और टॉकिंग

संतप्रवर ने कहा कि याद रखें परिवार की खुशहाली को बनाने के लिए परिवार को तीन चीजें चाहिए- ट्रस्ट, टाइम और टॉकिंग। जितना जरूरी आप यह सोचते हैं कि लोग मुझ पर भरोसा करें, उतना ही जरूरी है आप भी उनका भरोसा न तोड़ें। परिवार को समय दें, परिवारजनों के साथ बैठकर वार्तालाप करें।

कभी न तोड़ें ये चार चीजें

आज संतश्री ने श्रद्धालुओं से चार चीजें अपने हाथ से जानबूझकर कभी ना तोडऩे का नियम लेने का अनुरोध किया। वे हैं- जिंदगी में कभी भी रिश्ता मत तोडि़ए। कभी भी किसी का विश्वास मत तोडि़ए। किसी को दी हुई जुबान या वचन मत तोडि़ए। यानि अपने दिए हुए वचन को मरते दम तक निभाएं। और चौथा है- कभी किसी का दिल मत तोडि़ए।

दीक्षा कल्याणक पर प्रभु नेमीनाथ का स्मरण

धर्मसभा के आरंभ में अहिंसा व करूणा के अवतार भगवान श्रीनेमीनाथजी के दीक्षाकल्याणक के प्रसंग पर राष्ट:संत श्रीललितप्रभजी महाराज के सांसारिक बड़े भाई अशोकजी दफ्तरी द्वारा प्रभु नेमीनाथ के विवाह से पूर्व ही मूक पशुओं की करुण पुकार सुन वैराग्यवासित होकर गिरनार की ओर जाने का समाचार मिलते ही राजुल के अंतरमन में उत्पन्न पुनीत भावों पर रचित गीत- पंख होते तो उड़ आती रे, सुन लो नेम पिया, तुझे दिल का हाल बतलाती रे... की भावभरी प्रस्तुति दी गई।

तपस्वियों का बहुमान

रायपुर श्रीसंघ व दिव्य चातुर्मास समिति द्वारा आज धर्मसभा में 11 उपवास के तपस्वी अशोक सुराना व 8 उपवास की तपस्वी श्रीमती कौशल्या देवी सुराना का बहुमान किया गया।

जीवन ऐसा जिएं कि हो आत्मसंतोष: डॉ. मुनि शांतिप्रियजी

दिव्य सत्संग के पूर्वार्ध में डॉ. मुनिश्री शांतिप्रिय सागरजी ने कहा कि हमें अपने जीवन को अच्छा बनाने के लिए निरंतर पुरुषार्थ-प्रयत्न करते रहना चाहिए। जिस प्रकार आप रोज धन का बैलेंस बढ़ा या नहीं बढ़ा यह देखते हैं, उसी प्रकार पुण्य का बैलेंस बढ़ा या नहीं, यह भी हमें देखना चाहिए। इस अनमोल जीवन का सदुपयोग करने हमें हमेशा सजग रहना चाहिए। जियो तो ऐसे जियो कि लोग सदियों हमारे अच्छे कर्मों के लिए याद करें और मरें तो ऐसे मरें कि मौत भी मुक्ति का महोत्सव बन जाए। ऐसा जीवन जिएं कि जीते-जी हमें स्वयं पर गौरव हो सके और मौत के बाद लोग हम पर गौरव कर सकें। दूसरों की तकलीफों में हमेशा काम आने की आदत रखिए। आदमी न तो पद से बड़ा होता है और न धन से, आदमी बड़ा वही होता है जो तकलीफ में दूसरों के साथ खड़ा होता है। रिश्तों में निखार केवल हाथ मिलाने से नहीं आता, विपरीत हालात आ जाएं तो साथ देने से आता है। उदार हृदय के मालिक बनें। अपनी ईमानदारी के प्रति हमेशा सजग रहें।

इन अतिथियों ने प्रज्जवलित किया ज्ञानदीप

श्रीऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष विजय कांकरिया, कार्यकारी अध्यक्ष अभय भंसाली, ट्रस्टीगण तिलोकचंद बरडिय़ा, राजेंद्र गोलछा व उज्जवल झाबक ने संयुक्त जानकारी देते बताया कि बुधवार की दिव्य सत्संग सभा का शुभारंभ अतिथि गण तेजमल पटवा, प्रफुल्ल विश्वकर्मा, नरेन्द्र लोहिया, विजय मालू, पराग दस्सानी, भानू लूनिया व राजपाल-तिल्दा द्वारा ज्ञान का दीप प्रज्जवलित कर किया गया। अतिथि सत्कार दिव्य चातुर्मास समिति के अध्यक्ष तिलोकचंद बरडिय़ा, पीआरओ समिति के महावीर तालेड़ा व समिति के सदस्य विमल गोलछा द्वारा किया गया। सभी अतिथियों को श्रद्धेय संतश्री के हस्ते ज्ञानपुष्प स्वरूप धार्मिक साहित्य भेंट किये गये। सूचना सत्र का संचालन चातुर्मास समिति के महासचिव पारस पारख ने किया।

आज प्रवचन ‘क्यों जरूरी है कार से पहले संस्कार’ विषय पर

दिव्य चातुर्मास समिति के अध्यक्ष तिलोकचंद बरडिय़ा, महासचिव पारस पारख, प्रशांत तालेड़ा, कोषाध्यक्ष अमित मुणोत व स्वागताध्यक्ष कमल भंसाली ने बताया कि गुरूवार, 4 अगस्त को सुबह 8:45 बजे से दिव्य सत्संग के अंतर्गत परिवार सप्ताह के चतुर्थ दिवस ‘क्यों जरूरी है कार से पहले संस्कार’ विषय पर प्रवचन होगा। श्रीऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट एवं दिव्य चातुर्मास समिति ने श्रद्धालुओं को चातुर्मास के सभी कार्यक्रमों व प्रवचन माला में भाग लेने का अनुरोध किया है।

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