रायपुर

बुढ़ापा अभिशाप नहीं, पुण्यार्जन के लिए एक वरदान है-राष्ट्रसंत ललित प्रभजी
07-Aug-2022 7:14 PM
बुढ़ापा अभिशाप नहीं, पुण्यार्जन के लिए एक वरदान है-राष्ट्रसंत ललित प्रभजी

रायपुर, 7 अगस्त। ‘‘बुढ़ापा आदमी के लिए अभिशाप नहीं है, वरदान बन जाता है। क्योंकि अनुभवों की पोटली आदमी बुढ़ापे में लेकर आता है। इसीलिए बपचन से ज्यादा मूल्यवान जवानी हो जाती है, और जवानी से भी ज्यादा मूल्यवान आदमी का बुढ़ापा हो जाता है।

बचपन ज्ञानार्जन के लिए है, जवानी धनार्जन के लिए है, और आदमी का बुढ़ापा तो उसके पुण्यार्जन के लिए होता है। हर आदमी को चाहिए कि वह बुढ़ापे के देहलीज पर पहुंचे, उससे पहले अपने जीवन को इतना आनंद-उत्साह, शांति से भर लें कि बुढ़ापे के हर पल-हर क्षण को वह बहुत आनंद, मीठा और माधुर्यभरा बना सके।

किसने कहा कि बुढ़ापा अभिशाप है, जिन्हें जीना नहीं आता वे ही बुढ़ापे को भुनभुनाते हुए जीते हैं और जिन्हें जिंदगी जीना आता है वे बुढ़ापे को भुनभुनाते हुए नहीं गुनगुनाते हुए जीते हैं। यह आपको तय करना है कि आप बुढ़ापे को कैसा जीते हैं।’’

ये प्रेरक उद्गार राष्ट्रसंत महोपाध्याय श्रीललितप्रभ सागरजी महाराज ने आउटडोर स्टेडियम बूढ़ापारा में जारी दिव्य सत्संग जीने की कला के अंतर्गत परिवार सप्ताह के छठवें दिन शनिवार को व्यक्त किए।

 उन्होंने आज के विषय- ‘बुढ़ापे को कैसे बनाएं सुखी-सार्थक’ पर कहा कि इस दुनिया में जो भी जन्मता है जीवन में उसका बुढ़ापा आना तय होता है। इसीलिए जब हम मंदिर में परमात्मा की पूजा करते हैं, मंत्रोच्चार के साथ बोलते हैं- जन्म-जरा, रोग, मृत्यु निवारणनाय।

मैं केवल जन्म-मृत्यु से निवारण के लिए ही नहीं अपितु बुढ़ापे से भी छुटकारे के लिए आपकी आराधना कर रहा हूं। हमारा यह जीवन सूरज की तरह गतिशील है।

भोर हुई समझो हम माँ के पेट में आए हैं, सूर्योदय हुआ यानि हमारा जन्म हुआ है, दोपहर यानि हमारी जवानी है, शाम यानि हमारा बुढ़ापा है और रात्रि होने को आई तो समझ लो हमारी कहानी खत्म होने जा रही है।

संतप्रवर ने आगे कहा कि किस्मत वाले होते हैं वे लोग, जिनके घर पर अनुभव के खजाने अर्थात् वयोवृद्ध लोग हुआ करते हैं। तुम्हारे पास तुम्हारी पत्नी है यह तुम्हारी पसंद है, लेकिन तुम्हारे पास तुम्हारे माँ-बाप हैं यह तुम्हारा पुण्य है।

 उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति को जवानी में ही अपने बुढ़ापे की तैयारी कर लेनी चाहिए। 21 साल के हो जाओ तो भले ही शादी की तैयारी करो पर जब 60 साल के हो जाओ तो अपनी शांति-मुक्ति और आत्म आराधना की तैयारियां शुरू कर दो। साठ साल के जीवन को ‘सफल’ और साठ साल के बाकी जीवन को ‘सार्थक’ जीवन जी लो।

सुखी होने समय रहते स्वयं को माया से मुक्त कर दें

संतश्री ने कहा कि आदमी को दो बार घर से निकलना चाहिए, नंबर एक- बचपन में ज्ञान को पाने के लिए और नंबर दो- पचपन में मुक्ति को पाने के लिए। पुरातन काल से ही ज्ञानीजनों ने जीवन को चार आश्रमों में बांटा है। नंबर एक- ब्रह्मचर्य आश्रम, नंबर दो- गृहस्थ आश्रम, नंबर तीन- वानप्रस्थ आश्रम और नंबर चार- संन्यास आश्रम। संसार में रहते हुए भी जो लोग अपने जीवन को मुक्ति के मार्ग पर ले आते हैं वे अपने बुढ़ापे में बहुत सुखी जीवन जीते हैं। ब्रह्मचर्य आश्रम शिक्षा और संस्कार के लिए, गृहस्थ आश्रम सुख और समृद्धि के लिए, वानप्रस्थ आश्रम धर्म और कर्म के लिए एवं संन्यास आश्रम यह अपनी शांति और मुक्ति के लिए होता है। बाल काले करके बुढ़ापे को ढंका तो जा सकता है पर बुढ़ापे से बचा नहीं जा सकता। ज्यादा सुखी जीवन उन्हीं लोगों का होता है जो समय रहते अपने-आपको संसार की माया से मुक्त कर जीवन जीते हैं।

बुढ़ापा ऐसा जिएं की मृत्यु भी महोत्सव बन जाए

संतश्री ने कहा कि जरा सोचो, आदमी ने धन-दौलत की व्यवस्था कर ली, अपनी पत्नी-परिवार के लिए व्यवस्था कर ली पर अपनी आत्मा की व्यवस्था आदमी कब करेगा। बुढ़ापा ऐसा जिएं कि जब मृत्यु हो तो वह मृत्यु भी महोत्सव बन जाए। जब दस साल के हो जाओ तब माँ की अंगुली पकडऩा छोड़ दो, जब बीस साल के हो जाओ तो खिलौना से खेलना छोड़ दो, जब तीस साल के हो जाओ तो नजरें भटकाना छोड़ दो, जब 40 साल के हो जाओ तो होटल में खाना छोड़ दो, सुखी हो जाओगे- जब 50 साल के हो जाओ तो रात्रि भोजन का त्याग कर दो, जब 60 साल के हो जाओ तो व्यापार से मुक्ति पा लो, जब 70 साल के हो जाओ तो एकाकी जीवन जीना शुरू कर दो, हां और जब 80 साल की जिंदगी में आ जाओ तो एक नया काम शुरू कर दो गरिष्ठ भोजन करना छोड़ दो, जब 90 साल के हो जाओ तो मोह-माया को छोड़ दो और जब सौ साल के हो जाओ तो पूरे शरीर को छोड़ दो।

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