रायपुर
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 8 अगस्त। छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला ने एक बयान में कहा है कि अडानी की खनन परियोजनाओं को मंजूरी देने के लिए ग्राम सभा के फर्जी प्रस्ताव ही नहीं बनाए गए बल्कि हसदेव के जलागम क्षेत्र में बाघ और हाथी की मौजूदगी को भी जानबूझकर छिपाया गया।
ज्ञात हो कि रविवार की सुबह ग्राम डांडगांव के चारपारा में एक किसान की भैंस मृत अवस्था में मिली है। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के फुटप्रिंट विशेषज्ञ उपेंद्र दुबे ने इस बात की पुष्टि की है कि घटनास्थल पर मिले पंजों के निशान बाघ के हैं। बीते एक वर्ष के भीतर 15 से अधिक बार यहां बाघों की मौजूदगी की पुष्टि हुई है। कई बार वन विभाग के अधिकारियों ने इसे तेंदुआ बताना चाहा, पर वन्य प्राणी प्रेमियों ने तथ्य सामने रखे कि ये हमले बाघ ने किए हैं।
रविवार को बाघ के पंजे मिलने के बाद प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए शुक्ला ने कहा कि हाल ही में विधानसभा में एक सवाल के जवाब में राज्य सरकार ने फिर झूठ दोहराया जिसे नेशनल टाइगर रिजर्व कंजर्वेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) को भेजे गए जवाब में लिखा गया था। पिछले एक वर्ष से हसदेव अरण्य क्षेत्र में बाघ मौजूद है, जो किसानों के दर्जनों मवेशियों को शिकार बना चुका है। पिछले वर्ष वन्य जीव विशेषज्ञ प्रणव केपिला ने स्वयं हसदेव में रहकर बाघ के पंजे के निशान लिए।
अभी पिछले एक महीने से प्रस्तावित परसा कोल ब्लॉक जहां पेड़ों को कटाई हुई थी उसके आसपास तीन शिकार बाघ ने किए लेकिन हर बार वन विभाग बाघ की उपस्थिति को नकारा। इस बार ग्रामीणों के लगातार प्रयास और कुछ वन्य जीव विशेषज्ञ के प्रयाओं से अंतत: वन विभाग ने बाघ से शिकार की बात उसे माननी पड़ी।
हाल ही में परसा कोल ब्लॉक की स्वीकृति के संबंध में समस्त विभागीय नोट शीट और पत्राचार प्राप्त किए गए हैं। मुख्यमंत्री लगातार कहते है कि कोल ब्लॉक की स्वीकृति में राज्य सरकार की कोई भूमिका नहीं। यह सही नहीं है। राज्य सरकार की अनुशंसा के बगैर वन स्वीकृति संभव ही नहीं थी। केंद्र और राज्य सरकार ने कदमताल मिलाकर स्वीकृति जारी की हैं।
ग्रामीणों की फर्जी ग्राम सभा प्रस्ताव की शिकायत को दरकिनार करके राज्य सरकार ने स्टेज-एक की वन स्वीकृति के शर्तो के पालन की रिपोर्ट भेजी। भारतीय वन्य जीव संस्थान की रिपोर्ट को दरकिनार करके सिर्फ 13 पेज की इंडियन कौंसिल फॉर फॉरेस्ट रिसर्च एंड एजुकेशन (आईसीएफआरई) रिपोर्ट पर सहमति जताते हुए केंद्रीय वन, जलवायु परिवर्तन व पर्यावरण मामलों के मंत्रालय को खनन की अनुशंसा भेज दी गई।