रायगढ़

प्राचीन धरोहर जवाहिर दरवाजा: सौंदर्यीकरण ने बदला नाम और बन गया जवाहर बाजार
26-Oct-2022 3:34 PM
प्राचीन धरोहर जवाहिर दरवाजा: सौंदर्यीकरण ने बदला नाम और बन गया जवाहर बाजार

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर/सारंगढ़, 26 अक्टूबर।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर अंग्रेजों के जमाने में राजधानी हुआ करती थी और आसपास के व्यापारी और दूर दराज के लोग व्यापार के लिए रायपुर आते थे । राजधानी का जवाहर बाजार, जिसे प्राचीन समय में जवाहिर दरवाजा या जवाहिर गेट के नाम से जाना जाता था, सारंगढ़ स्टेट को पहचान दिलाने के लिए वहां के राजा जवाहिर सिंह ने जवाहिर दरवाजा बनाया था, जहां पर लोग आकर विश्राम करने के साथ ही अस्तबल के रूप में घोड़ों को वहां पर बांधकर अपनी दैनिक उपयोग की सामाग्री की खरीदी किया करते थे। लेकिन बदलते समय के साथ जवाहिर दरवाजा ने अपनी पहचान खो दी है, आज इसे लोग जवाहर बाजार के नाम से जानते हैं ।

पहचान खो रहा प्राचीन धरोहर जवाहिर दरवाजा, जवाहिर सिंह के नाम पर था जवाहिर दरवाजा
सन् 1818 में अंग्रेजों ने रतनपुर से रायपुर को अपना मुख्यालय बनाया, उस समय रायपुर व्यापारिक केंद्र हुआ करता था. साथ ही लोग प्रशासनिक काम के लिए रायपुर आया करते थे, उस जमाने में राजा जवाहिर सिंह के नाम से जवाहिर दरवाजा या जवाहिर गेट बनाया गया था । लेकिन शहर को स्मार्ट और स्वच्छ बनाने की दिशा में सौंदर्यीकरण के नाम पर इस ऐतिहासिक और प्राचीन धरोहर को ध्वस्त करके जवाहर बाजार बना दिया गया, जो अब इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह गया है ।

सौंदर्यीकरण ने बदला नाम और बन गया जवाहर बाजार
पुरातत्वविद राहुल सिंह ने बताया कि मालवीय रोड पर स्थित जवाहर बाजार, पुराने समय में यह जवाहिर गेट या जवाहिर दरवाजा के नाम से अपनी पहचान रखता था, लेकिन बदलते दौर ने इसकी पहचान ही बदल डाली । स्मार्ट सिटी के द्वारा सौंदर्यीकरण के नाम पर प्राचीन और ऐतिहासिक धरोहर जवाहिर दरवाजा अब जवाहर बाजार में तब्दील हो गया है ।

सारंगढ़ के राजा नरेश चंद्र सिंह देव के पिता का नाम जवाहिर सिंह था, सारंगढ़ स्टेट को पहचान दिलाने के लिए उन्होंने उस जमाने में जवाहिर दरवाजा का निर्माण कराया था, जो अपनी अलग पहचान रखता था ।  सारंगढ़ के राजा जवाहिर सिंह का अच्छा प्रभुत्व होने के साथ ही उनकी एक अपनी अलग ही पहचान थी, इस पहचान को बरकरार रखने को, उन्होंने राजधानी के मालवीय रोड पर जवाहिर दरवाजा का निर्माण कराया था, जिसे लोग विश्राम स्थल या सराय के रूप में उपयोग करते थे।

200 साल पुराना ये बाजार
इस जवाहिर दरवाजा के बारे में इतिहासकार डॉ. रमेन्द्रनाथ मिश्र बताते हैं कि लगभग 200 साल पहले दैनिक उपयोग की वस्तुएं खरीदने के लिए बाहर से लोग रायपुर आया करते थे. उस समय रायपुर एक प्रमुख केंद्र माना जाता था. जवाहिर दरवाजा अपनी एक अलग पहचान रखता था. लोग विश्राम करने के लिए यहां पर रुका करते थे. इसके साथ ही अस्तबल के रूप में घोड़ों को बांधकर रखा जाता था, लेकिन बदलते समय ने इस जवाहिर दरवाजा के स्वरूप को ही बदल डाला है । स्मार्ट सिटी के द्वारा शहर को स्मार्ट बनाने और सौंदर्यीकरण के नाम पर प्राचीन और ऐतिहासिक धरोहर का विनाश करके जवाहर बाजार बना दिया गया । ऐसे में आने वाली पीढ़ी को ऐतिहासिक धरोहरों की जानकारी नहीं मिल पाएगी, अब यह सिर्फ इतिहास के पन्नों पर सिमट कर रह जाएगा।

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