सुकमा

जिम्मेदारों का कोई सरोकार नहीं, बच्चे अव्यवस्थाओं में पढऩे मजबूर
21-Nov-2022 9:43 PM
जिम्मेदारों का कोई सरोकार नहीं, बच्चे अव्यवस्थाओं में पढऩे मजबूर

अव्यवस्थाओं से जूझ रहे हैं केरलापाल छात्रावास के बच्चे - दीपिका

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता 
सुकमा 21,नवंबर।
सुकमा जिले के अंदरूनी क्षेत्रों में स्थित आदिवासी छात्रावासों की वास्तविक स्तिथि से सभी अवगत हैं परंतु एनएच 30 के किनारे जिला मुख्यालय से मात्र 15 किमी की दूरी पर स्थित केरलापाल में आदिम जाति अनुसूचित जाति विकास विभाग प्री मेट्रिक बालक छात्रावास में रहकर अध्ययन करने वाले आदिवासी छात्र कई समस्याओं से जूझ रहे हैं।

इन छात्रों की समस्याओं बेखबर जिम्मेदारों ने सूध लेना भी मुनासिब न समझते इस बीच भाजपा नेत्री पहुंची तो उन्होंने स्वयं छात्रावास जाकर बच्चों से बात कर वस्तु स्तिथि की जानकारी ली।

उन्होंने बताया कि इस छात्रावास में कोयाबेकूर, गोलाबेकूर, दुरमापारा, बडे शेट्टी, पटेलपारा, पोंगाभेज्जी, कुडक़ेल, तातिपारा, पुसपल्ली, बेलवापाल, पाकेला, बन्देगपारा, तेलावर्ती, चिकपाल, टेटेमदडगु, दुर्गुडा, इत्तापारा, फुलबगड़ी, मिलंपल्ली, दोरनापाल, सोनुपारा, मांझीपारा, सिरसेट्टी, बुर्कालंका, किस्टाराम, कोसागुड़ा, मरकानगुड़ा, कवासिपारा, पालेचलमा, तेमेलवाडा, बोडको आदि नक्सलप्रभावित ग्राम के लगभग 80 आदिवासी बच्चे रहकर अध्ययन कर रहे हैं जिनकी व्यवस्था देखने हेतु प्रशासन ने स्वीपर, रसोइया, भृत्य एवं छात्रावास अधीक्षक की नियुक्ति की हंै परन्तु जब हम यहां पहुंचे तो सभी नदारत थे एक भी जिम्मेदार व्यक्ति यहां पर नहीं मिला।

छात्रावास केरलापाल के छोटे - बड़े बच्चे अधीक्षक की अनुपस्थिति में केरलापाल की नदी में स्नान कर लौट रहे थे उनसे पूछने पर उन्होंने बताया कि एक ही बोर हंै और वो भी पूरी तरह पानी नहीं देता बीच बीच में बंद हो जाता हंै इसलिए प्रत्येक रविवार को हम सभी नदी में कपड़े धोने व स्नान करने जाते हैं अगर दुर्भाग्यवश इस बीच किसी प्रकार की दुर्घटना घट जाती हंै तो जिम्मेदार कौन होगा जिला प्रशासन या अधीक्षक
 
छात्र स्वयं लकड़ी काटकर लाते हैं
छात्रावास में अक्सर कर्मचारी नदारद रहते हंै बच्चे ऑटो से सामान उतार कर अपने कांधे पर रखकर छात्रावास के अंदर लें जातें हंै उनसे पूछने पर पता चला जवाब दिया कि हम लोगों ने जिला प्रशासन से रसोई हेतु गैस की मांग की जो नहीं मिला हम स्वयं जंगल में जाते हैं कुल्हाडिय़ों से लकडिय़ां काटते हैं फिर उसे ट्रेक्टर में लोड करके छात्रावास लाकर खाली करते हैं।

बच्चों ने यह भी बताया कि हमारे छात्रावास में स्वीपर कोई कार्य नहीं करते हैं पूरे छात्रावास की सफाई हम लोग ही करते हैं, शौचालय एवं स्नानघर की साफ सफाई भी हम लोग ही करते हैं ये कैसी शिक्षा व्यवस्था सुकमा के गरीब आदिवासी बच्चों को दी जा रही है मैं पूछना चाहती हूं जिम्मेदारों से अगर उनके बच्चे छत्रावासों में होते और उनके साथ ऐसी स्थिति होती तो वो तय करें कि इसके जिम्मेदारों के साथ व्यवहार किया जाए।

नन्हें नन्हें बालक छोटे छोटे हांथो से चुनते हैं चावल
इस छात्रावास में रहने वाले नन्हें नन्हें बालक अपने छोटे छोटे हांथों से चावल साफ करते हैं रसोइया या भृत्य इसमें उनका कोई सहयोग नहीं करते हैं

एक शौचालय के भरोसे 80 छात्र
इस छात्रावास के बच्चों की नित्यक्रिया भी किसी जंग लडऩे जैसी नहीं है पुराना शौचालय पूर्णत: छतिग्रस्त है व नवीन शौचालय में एक ही सही है जिसके भरोसे 80 छात्रों की नित्यक्रिया टिकी हुई हैं बच्चों ने बताया कि शौच हेतु सुबह 3 बजे से लाइन लगती है तब स्कूल के समय तक सभी तैयार हो पाते हैं हम इस समस्या से बहुत ज्यादा परेशान हैं।

प्रत्येक पलंग पर सोते हैं दो-दो छात्र
छात्रावास में जगह व साधन का अभाव है प्रत्येक पलंग पर दो दो छात्र सोते हैं जिससे संक्रमण भी फैलने का डर बना रहता है साथ ही गद्दे भी बहुत पुराने हो चुके हैं कई पलंग पर तो फटे हुए गद्दे भी दिखाई दे रहे थे।

बारिश में बहुत विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है
बच्चों ने बताया कि बारिश में हमें बहुत ही विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ता हैं। छात्रावास से मेनरोड की ऊंचाई अधिक होने के कारण सडक़ का पूरा पानी छात्रावास के अंदर आ जाता हंै। जिससे छात्रावास के दो हाल पानी से पूरी तरह भर जाते हैं जिससे हमें बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता है

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