बालोद

देवेश को पीएचडी
14-Dec-2022 7:42 PM
देवेश को पीएचडी

दल्ली राजहरा, 14 दिसंबर। दल्ली राजहरा निवासी देवेश कुमार मेश्राम को हेमचंद यादव विश्वविद्यालय दुर्ग ने समाजशास्त्र विषय में पीएचडी की उपाधि प्रदान किया।  शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय (दुर्ग)के समाजशास्त्र विभाग शोधकेन्द्र के शोधार्थी देवेश कुमार मेश्राम ने समाजशास्त्र विभाग की सहायक प्राध्यापक,डॉ. सपना शर्मा सारस्वत के मार्गदर्शन में असंगठित ठेका श्रमिकों की स्थिति का एक समाजशास्त्रीय अध्ययन बालोद जिले के दल्लीराजहरा माइंस के विशेष संदर्भ में विषय पर अपना शोध कार्य पूर्ण किया।

अपनी इस उपाधि को उन्होंने श्रमिकों को समर्पित करते हुए कहा कि भले ही इस सृष्टि को ईश्वर ने बनाया है पर इसे संवारा और गढ़ा श्रमिकों ने ही है।

 

उन्होंने अपने शोध को 7 अध्यायों में विभक्त किया,शोधार्थी के पीएचडी थिसिस में प्रथम अध्याय में विषय का परिचय द्वितीय अध्याय में पूर्व शोध साहित्य का पूर्वावलोकन तृतीय अध्याय में उत्तरदाताओं की सामाजिक, आर्थिक एवं पारिवारिक पृष्ठ भूमि चतुर्थ अध्याय में ठेका श्रमिकों के आर्थिक एवं सामाजिक विकास संबंधी नियम एवं कानून पंचम अध्याय में ठेका श्रमिकों की शैक्षणिक एवं स्वास्थ्य संबंधी सरकारी योजनाएं एवं समस्याएं षष्ठम अध्याय में ठेका श्रमिकों के विकास संबंधी नीति में गैर सरकारी संगठन एवं मजदूर संगठनों की भूमिका तथा सातवें अध्याय में शोध के निष्कर्ष को रखा। अपने शोध निष्कर्ष में देवेश मेश्राम ने यह बताया कि शिक्षा की कमी के कारण शासन के अनेक कल्याणकारी योजनाओं से श्रमिको को वंचित होना पाया है। साथ ही शासन की ओर से किसी भी प्रकार की दुर्घटना के दौरान आर्थिक सहायता प्रदान किए जाने की अत्यंत आवश्यकता की ओर भी अपनी पीएचडी थिसिस के दौरान सबका ध्यान आकर्षित किया है। पीएचडी वायवा में उपस्थित विश्वविद्यालय कुलपति डॉ. अरूणा पल्टा, शासकीय वी-वायटी पीजी कॉलेज दुर्ग के प्राचार्य डॉ. आर.एन. सिंह, कुलसचिव भूपेन्द्र कुलदीप, समाजशास्त्र के विभागाध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र चौबे, डॉ. ए. के. खान, कल्याण पीजी महाविद्यालय भिलाई के प्राचार्य डॉ. आर. पी. अग्रवाल, डीसीडीसी डॉ. प्रीता लाल, पीएचडी सेल प्रभारी डॉ. प्रशांत श्रीवास्तव, शासकीय वी-वायटी पीजी कॉलेज दुर्ग के डॉ. शकील हुसैन आदि ने प्रश्न पूछकर शोधार्थी के मौखिकी में हिस्सा लिया। इस पीएचडी वायवा में ऑनलाइन तथा ऑफलाइन दोनों रूप से लगभग 100 से अधिक लोग उपस्थित थे। देवेश मेश्राम ने अपने इस शोध को 4 वर्षों में पूर्ण किया।

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