बालोद

सिलेंडर के दाम बढऩे पर महिलाएं फिर से फूंकने लगी चूल्हा, लकड़ी के लिए जंगल पर निर्भर
16-Dec-2022 1:31 PM
सिलेंडर के दाम बढऩे पर महिलाएं फिर से फूंकने लगी चूल्हा, लकड़ी के लिए जंगल पर निर्भर

शिव जयसवाल

बालोद,16 दिसंबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। रसोई गैस सिलेंडर की बढ़ती कीमतों ने जिले की महिलाओं को फिर से चूल्हे फूंकने के लिए मजबूर कर दिया है। महिलाओं को स्वच्छ ईंधन व धुएं से मुक्ति दिलाने के लिए केंद्र सरकार की उज्ज्वला योजना बढ़ते रसोई गैस सिलेंडरों की कीमतों से दम तोड़ती नजर आ रही है, पूर्व की तरह ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले गरीब परिवारों में महिलाओं को फिर से लकडिय़ों से खाना पकाना पड़ रहा है। सुबह 4 बजे लोग लकड़ी लेने जंगलों में पहुंच जाते हैं, और सुबह 7-8 बजे उनकी वापसी होती है, उन्हें जंगलों से लकड़ी लाने भी काफी मेहनत करना पड़ता है।

महंगाई का दौर
ग्रामीण सहित शहरी क्षेत्र की अधिकतर महिलाओं ने बताया कि महंगाई के इस दौर में गैस सिलेंडर भरा पाना उनके बस की बात नहीं है। अधिकतर महिलाओं ने बताया कि महंगाई के इस दौर में अगर गैस भरवाएंगे तो घर का बजट बिगड़ जाएगा। ऐसे में न तो घर में खाना बन पाएगा और न ही अन्य सामानों की पूर्ति हो सकेगी ऐसे में अब पुराने तौर-तरीके अपनाने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं बचा है।

आसमान पर सिलेंडर के दाम
शासन द्वारा महिलाओं को चूल्हे के धुए से आजादी दिलाने उज्ज्वला योजना की शुरुआत की गई थी, परंतु आज गैस सिलेंडर के दाम इतने बढ़ गए हैं कि इसे रिफिल कराना भी मुश्किल हो गया है। उन्होंने कहा कि यह सिलेंडर में ही इतना खर्चा कर देंगे तो फिर बाकी बजट गड़बड़ा जाएगा और सिलेंडर के दाम वर्तमान में बालोद जिले में 1145 रुपए चल रहे हैं, और गैस सिलेंडर उनके हिसाब से उनके परिवार की पूर्ति भी नहीं कर पाता।

जंगल की लकड़ी पर निर्भर
बालोद से सटे जंगलों में जाने के लिए आसपास के महिलाओं को सीमित समय दिया जाता है। वन विभाग के माध्यम से एक माह में 3 दिन जंगलों में प्रवेश के लिए दिया जाता है। इस दौरान महिलाएं समूहों में जंगल जाती है और सूखी लकडिय़ां लेकर आती है और इसी से ही उनके घर का चूल्हा जल पाता है बाकी समय जंगलों में लकड़ी लाने के लिए लोगों का प्रवेश वर्जित रहता है।

लकड़ी के लिए जद्दोजहद
महिलाओं को लकड़ी के लिए जद्दोजहद करना पड़ता है। सीमित समय जंगलों में एंट्री के लिए रहता है इसलिए वे सुबह 3 से 4 बजे जंगलों में प्रवेश करते हैं और सुबह 7 से 8 के बीच जंगलों से वापसी होती है। सिर पर लकड़ी का बुझा लिए वे जंगलों से लंबी दूरी तय कर अपने घर को पहुंचते हैं। उन्होंने बताया कि सूखी लकड़ी के लिए जंगलों के भीतर-भीतर लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। जंगली जानवरों का भी खतरा बना रहता है।

 

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