सुकमा
-सतीश माहेश्वरी
सुकमा, 27 अक्टूबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। कोंटा विधानसभा का मतदान केन्द्र-1 सिलगेर में आजादी के बाद पहली बार मतदान होगा। पहले यहां के लोग मतदान के लिए 16 किमी दूर जगरगुंडा जाते थे। यहां शासन की योजनाएं तो पहुंची, लेकिन मतदाता जागरूकता की कमी व सरकार के प्रति आक्रोश के चलते मतदाताओं ने मतदान को लेकर चुप्पी साध ली है।
11 मई 2021 को सीआरपीएफ कैंप स्थापित के विरोध में आदिवासियों ने रैली निकाली थी जिसकी झड़प में 4 ग्रामीणों की मौत हो गई थी। जिसके बाद आज तक ये आंदोलन निरंतर चल रहा है। इन दो सालों में शासन की योजनाएं तो पहुंची लेकिन ग्रामीणों के जख्म अब भी भरे नहीं है।
7 नवंबर को पहली बार गांव में मतदान होगा। यहां करीब 889 मतदाता है, लेकिन मतदान को लेकर चुप्पी साध ली है। यहां न तो प्रशासन का स्वीप कार्यक्रम पहुंचा है और न ही जनप्रतिनिधि चुनाव प्रचार करने के लिए। अधिकांश युवाओं ने बताया कि उनका नाम मतदाता लिस्ट में है या नहीं ये भी जानकारी नहीं है।
बीजापुर व सुकमा की सरहद में बसा गांव सिलेगर पिछले दो साल से सुर्खियों में है। यहां पर संचालित आदिवासी विरोध आज भी निरंतर चल रहा है।
सिलगेर कोंटा विधानसभा का पहला मतदान केन्द्र है। आजादी के बाद से यहां के लोग मतदान के लिए 16 किमी. दूर जगरगुंडा जाते थे। कुछ ग्रामीणों ने बताया कि उन्होंने 2003 में मतदान हुआ था, उस समय मतदान दिया था उसके बाद से मतदान करने नहीं गए।
यहां के युवाओं ने बताया कि आज तक उन्होंने मतदान नहीं किया और मतदान को लेकर क्या प्रक्रिया होती है, उन्हें जानकारी नहीं है।
गांव के अधिकांश लोगों के पास आधार कार्ड तो है, लेकिन मतदाता परिचय पत्र नहीं है। कई लोगों को यह तक नहीं पता कि उनका नाम मतदाता सूची में है या नहीं। गांव में जब हमारी टीम गई तो एक अजीब सी खामोशी थी। गांव में एक्का-दुक्का लोग खेत में काम करते नजर आए। सिलेगर में संचालित राशन दुकान में जरूर लोग दिखे, लेकिन उन्होंने चुनाव को लेकर बात करने से परहेज किया।
गांव में दो झोपड़ी बनाई गई, जहां पर सिलगेर आंदोलन चल रहा है। वहां पर धारा 144 लागू होने के कारण मात्र 5 लोग ही विरोध प्रदर्शन कर रहे हंै। उन्होंने भी चुनाव को लेकर कोई भी चर्चा नहीं की, हालांकि नाम नहीं छापने की शर्त पर ये जरूर बताया कि इस बार चुनाव में मतदान को लेकर ग्रामीणों को कोई विचार नहीं है। दरअसल ये लोग सरकार से नाराज हैं। उनकी माने तो सिलगेर आंदोलन में उनको अभी तक न्याय नहीं मिला, इसलिए वो लोग मतदान नहीं करेंगे।
कुछ साल में पहुंची मूलभूत सुविधाएं
सिलगेर गांव जो कि खासपारा, नंदापारा, तिम्मापुरम, बंजारपारा मंडीमरका, मंडीमरका में विभाजित है और यहां करीब 889 मतदाता हैं। कुछ साल पहले इस गांव में पहुंचना किसी चुनौती से कम नहीं था। क्योंकि गांव तक न तो सडक़ थी और न ही पुल-पुलिया, आलम ये था कि जगरगुड़ा से आने के लिए बड़े नाले को पार करना पड़ता था। लेकिन आज यहां पर सडक़ बन गई है।
स्टेट हाईवे 5 का निर्माण चल रहा है। जगरगुड़ा हो या फिर बीजापुर आसानी से चार पहिया वाहन से पहुंचा जा सकता है। वर्तमान में सिलगेर से दो बसें बीजापुर के लिए चल रही है। स्वास्थ्य के लिए पहले 100 किमी. दूर सुकमा या बीजापुर जाना पड़ता था लेकिन आज गांव में ही स्वास्थ्य सुविधाएं मिल रही है। बीएसएनल नेटर्वक काम कर रहा है। गांव में स्कूल खुल गई है जहां करीब 160 बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। पीने के लिए पर्याप्त नलकूप है, जहां साफ पानी आ रहा है। गांव में बिजली लग गई है हर घर में मूलभूत सुविधाऐं पहुंच गई है। उसके बावजूद यहां का वातावरण नहीं बदला, यहां के ग्रामीण मतदान को लेकर चुप्पी साधे हुए हंै।
न स्वीप पहुंचा और न ही चुनाव प्रचार
बीजापुर व सुकमा से सिलगेर की दूरी लगभग बराबर है, मतदाताओं को जागरूक करने के लिए प्रषासन की और से स्वीप कार्यक्रम चलाया जा रहा है। लेकिन सिलगेर में ये कार्यक्रम नहीं पहुंचा है। यहां के लोगो को नामांकन की प्रक्रिया के बारे में जानकारी नहीं है। उनके नाम लिस्ट में या नहीं ये भी जानकारी में नहीं है। यही हाल राजनीतिक दलों का भी है यहां पर चुनाव प्रचार करने अभी तक कोई भी दल नहीं पहुंचा।