सुकमा

सलवा जुडूम के बाद जगरगुंडा टापू में तब्दील, गांव में घुसने तीन दरवाजे, जो रात होते ही बंद हो जाते हैं
31-Oct-2023 3:24 PM
सलवा जुडूम के बाद जगरगुंडा टापू में तब्दील,  गांव में घुसने तीन दरवाजे, जो रात होते ही बंद हो जाते हैं

  नक्सल दहशत के बाद भी  बढ़-चढक़र देते हैं वोट  

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

सुकमा, 31 अक्टूबर। नक्सल टापू में तब्दील जगरगुंडा की तस्वीर बदल रही है। जहां कटीले तारों के बीच ग्रामीण जीवनयापन कर रहे थे, लेकिन अब बासागुड़ा व दंतेवाड़ा से जगरगुंडा जुड़ रहा है। तेजी से स्टेट हाईवे का काम चल रहा है। लगभग मिट्टी व मुरूम का काम पूरा हो चुका है। लेकिन दोरनापाल व जगरगुंडा के बीच सडक़ आज भी अधूरी है। पिछले 10 साल से निर्माण चल रहा है। चारों तरफ दहशत का माहौल और परेशानियों के बावजूद भी लोग मतदान में बढ़-चढ़ कर भाग लेते हैं और इसी उम्मीद के साथ लोकतंत्र पर्व मनाते हंै ताकि उनकी जिदंगी और आसान हो जाए।

जिला मुख्यालय से करीब 90 किमी. दूर स्थित जगरगुंडा गांव जो नक्सल प्रभावित है, अब वहां के हालात सुधर रहे हैं। गांव में करीब 300 परिवार निवासरत हैं। बाकी आसपास दर्जन से ज्यादा गांव के लोग दैनिक उपयोगी सामग्री के लिए जगरगुंडा आते है। 

यहां 2005 के बाद हालात ज्यादा खराब हो गए थे। कभी अधिकारी यहां घूमने के लिए आते थे, लेकिन सलवा जुडूम के बाद जगरगुंडा टापू में तब्दील हो गया। गांव के चारों और कंटीले तारों से बाड़ाबंदी की गई है और गांव में घुसने के लिए तीन दरवाजे हैं, जिसमें से एक दोरनापाल, दंतेवाड़ा और दूसरा बीजापुर की तरफ स्थित है। यहां आज भी रात होते ही दरवाजे बंद हो जाते हैं, अगर कोई जरूरी काम है या फिर रात में कोई बाहर से आ रहा है तो दरवाजे पर तैनात जवान दरवाजा खोल देते है। 

तारबंदी को लेकर ग्रामीणों का भी मानना है कि इससे गांव सुरक्षित है। क्योंकि कुछ माह पहले ही जगरगुंडा के पास नक्सलियों ने एंबुस लगाकर जवानों को नुकसान पहुंचाया था, लेकिन अब हालात बदल रहे हंै। वहां के लोग बाड़ाबंदी के बीच भी लोकतंत्र का पर्व धूम-धाम से मनाते है। इस साल भी इसी उम्मीद के साथ लोग मतदान करेंगें ताकि उनकी जिदंगी में बड़े बदलाव आऐं और विकास के साथ-साथ उन्हें मूलभूत सुविधाएं मिले।

सडक़ों का निर्माण व आवागमन के साधन
2005 के बाद कुछ साल तक जगरगुंडा गांव के लोग छ: माह लग जाते थे गांव से बाहर आने के लिए, लेकिन अब हालात बहुत बदल गए है। ग्रामीण बताते हंै कि दिन हो या रात दंतेवाड़ा मार्ग पर आना-जाना चालू रहता है। जगरगुंडा से दंतेवाड़ा, बीजापुर व सुकमा की दूरी बराबर है। और दंतेवाड़ा के लिए सडक़ लगभग पूरी बन चुकी है यहां के दुकानदार अधिकांश समान नुकुलनार से ही खरीदते हैं। वहीं स्टेट हाईवे का काम तेजी से चल रहा है। जगरगुंडा से लगभग सिलगेर होते हुए बीजापुर जुड़ गया है। आने वाले समय में ये सडक़ पक्की बन जाएगी, तब जगरगुंडा की और तरक्की होगी। सडक़ों के निर्माण के कारण आवागमन के संसाधन बढ़ गए है। लेकिन दोरनापाल से जगरगुंडा की सडक़ 12 साल बीत जाने के बावजूद पुरी नहीं बन पाई है।  

सुविधाओं में इजाफा
जगरगुंडा में अस्पताल खोला गया, जहां मरीजों का इलाज होता है। वहीं गांव के पास आश्रम खोला गया, जहां बच्चे पढ़ाई कर रहे है। जगरगुंडा को तहसील बनाया गया। गांव में दुकानें खुल गई हैं, जहां दैनिक उपयोगी सामग्री मिलती है। पहले लोग बाड़ाबंदी के बाहर जाने से डरते थे लेकिन आज ग्रामीण आसपास खेती-किसानी का काम कर रहे हंै।

 पिछले कुछ साल में लगातार यहां विकास कार्य हुए हैं और आसपास कैंप खुलने के कारण यहां दहशत में कमी आई है। लिहाजा बाहर से भी व्यापारी यहां आकर रहने लगे हंै। हालांकि सलवा जुडूम के समय करीब 3 हजार परिवार रहते थे, आज मात्र 3 सौ परिवार ही रह रहे है। बाकी लोग अपने-अपने गांव चले गए।

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