महासमुन्द

गांवों में भी बैल दौड़ स्पर्धा नहीं हो रही
02-Sep-2024 2:46 PM
गांवों में भी बैल दौड़ स्पर्धा नहीं हो रही

नंदी बैल, जांता, चुकी, कृषि व अन्य घरेलू उपयोग की वस्तुओं की पूजा

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

महासमुंद,2 सितंबर। जिला मुख्यालय समेत जिले के गांवों में आज पोला का पर्व उल्लास पूर्वक माहौल में मनाया जा रहा है। शहर के मुख्य मार्ग में फुटपाथ पर आज भी मिट्टी के रंग-बिरंगे बैल तथा किचन सामान की जोरदार बिक्री हो रही है।

महासमुंद शहर के सिटी कोतवाली, नेहरु चौक तथा बाजार के हंडी पसरा में एक से बढक़र एक मिट्टी के बैल, खिलौने बिकने के लिए पहुंचे हुए हैं। बच्चों ने मिट्टी के कुकर, चूल्हे, जांता और नंदिया बैलों की खरीदी की। आज सुबह से घरों में मिट्टी के बैलों की पूजा कर चीला, ठेठरी, खुरमी जैसे पारंपरिक व्यंजनों का भोग लगाया गया।

किसानों का प्रमुख त्यौहार होने के कारण गांवों में इसका खासा उत्साह है। हालांकि अब शहरों में बैल नहीं दिखते और गांवों में गिनती के बैल बच गये हैं। और अब गांवों में भी लगभग बैल दौड़ की स्पर्धा प्रथा लगभग समाप्ति पर है। ऐसे में जिंदा बैलों की बनिस्बत मिट्टी के बैल आज शहर-गावों की गलियों में दौड़ रहा है।

प्रत्येक घरों में सुबह से आज ठेठरी, खुरमी और चीला व्यंजन तैयार है। लोक आस्था में यह प्रचलित है कि ठेठरी की आकृति जलहरी प्रतीक स्वरूप माता पार्वती और खुरमी शिवलिंग का प्रतीक माना जाता है। यह भी प्रचलित है कि नंदी पर शिव पार्वती सवार होकर निकले हैं। इसी दिन एक दूसरे के घर इन व्यंजनों का आदान-प्रदान भी किया जाता है। शाम को गांव के बाहर चौराहे पर लड़कियों व महिलाओं द्वारा पोरा पटकने की परंपरा है। वे चुकिया में ठेठरी-खुरमी भरकर पत्थर पर पटकती है। इसका मतलब धरती माता को भोग अर्पण करना होता है। पश्चात कोई पारंपरिक मनोरंजनात्मक खेल-खेला जाता है।

यह त्यौहार बैैल, अन्न, धरती और बेटियों के सम्मान का सूचक माना जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह त्यौहार विशेष रूप से कृषि कर्म से संबंधित होते हैं। इस त्यौहार में नंदी बैल, जांता, चुकी, कृषि व अन्य घरेलू उपयोग की वस्तुओं की पूजा की जाती है। कई घरों में इस दिन कच्ची मिट्टी से बैल बनाकर, नए कपड़े ओढ़ाकर उनकी पूजा की जाती है। परिवार के सभी लोग पूजा कर यह कामना करते हैं कि बैल स्वस्थ रहे। क्योंकि आज भी बैल ही कृषि के आधार स्तंभ में से प्रमुख स्तंभ हैं ।

पूजा पश्चात लडक़ों को बैल और लड़कियों को जांता, पोरा, चूल्हा, चुकी खेलने के लिए दिया जाता है। यह श्रम विभाजन को स्पष्ट करता है। पूजा में प्रसाद स्वरूप ठेठरी, खुरमी और नारियल चढ़ाया जाता हैं।

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