कोण्डागांव
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
कोण्डागांव, 12 फरवरी। जिला पंचायत के सभाकक्ष में 12 फरवरी को बस्तर क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण के तत्वावधान में विशाल आदिवासी समृद्ध संस्कृति के संरक्षण व उनके अभिलेखीकरण के संबंध में एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया था। इस कार्यशाला में डिप्टी कमिश्नर जगदलपुर भूआल सिंह सिदार, नोडल अधिकारी अखिलेश मिश्रा, सहायक आयुक्त आरएस भोई, प्राचार्य डॉ. किरण नुरूटी सहित आदिवासी संस्कृति के संरक्षक व ज्ञाता डॉ. जयमति कश्यप, डॉ. सीआर कोर्राम, रामसिंह नाग, ईश्वर लाल कोर्राम, फूलसिंह नेताम सहित अन्य समाज प्रमुख उपस्थित थे।
बस्तर क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष लखेश्वर बघेल की पहल पर आदिवासी समृद्ध संस्कृति को विलुप्तिकरण से बचाने के लिए बस्तर आयुक्त जीआर चुरैन्द्र के मार्गदर्शन पर उक्त कार्यशाला का आयोजन किया गया। इसमें वक्ताओं ने बस्तर संभाग में निवासरत् जनजातीय समाज के नामों, उनके सामाजिक ताने-बाने जैसे रीति-रिवाज, पहनावा, उनके शारीरिक सौंदर्य साधन, जन्म से जुड़ी प्रथाएं, घर-परिवार, रिश्ते-नाते की व्यवस्था, वैवाहिक रीतियों, मृत्यु नियम किर्याक्रम, उनके धार्मिक क्रियाकलाप, देवी-देवता मान्यताएं, पूजा-पद्धति, उनके शारीरिक बनावट व मूल निवास, भाषा, बोली, लिपि जैसे बिन्दुओं के अभिलेखीकरण के कार्य को प्रमुखता देते हुए अपने विचार व्यक्त किए।
बैठक में डिप्टी कमिश्नर ने कहा कि, बस्तर की पूरातन काल से चली आ रही व्यवस्था व उसकी समृद्ध संस्कृति को विलुप्ति से बचाने तथा उन्हें भावी पीढ़ी को अवगत कराने के लिए यह जरूरी हैं कि, इसका दस्तावेजीकरण किया जाए। इस दस्तावेज में बस्तर के इतिहास, राजनीतिक व्यवस्था, ग्राम व्यवस्था, उसके मौखिक साहित्य, गीत-गान के अलावा यहां की कौशल कला जैसे माटी, काष्ट, धातु, बुनकर शिल्प, बस्तर क्षेत्र के प्रमुख नृत्य, उसके प्रकार, महत्व, उत्सव, गीत परम्परा, बस्तर संभाग के मेला-जातरा, पुरातात्विक संपदा एवं उसके पर्यटन स्थलों का विस्तार से विवरण उल्लेखित होगा।